मृत शरीर को वैदिक धर्मानुसार जलाते हैं। कुछ वैज्ञानिक कहते है कि शरीर को गाड़ने से जमीन में अच्छी फसल तैयार होती है, और लकड़ी जो आजकल महंगी है, वो बच जाती है। कृपया इसकी विस्तृत जानकारी दें?

मृत शरीर को गाड़ना अच्छा नहीं है। वेद के अनुकूल नहीं है। वेद में लिखा है – यजुर्वेद पढ़िये, चालीसवां अघ्याय है, उसमें लिखा है -भस्मान्तम शरीरम्। तो वेद में ईश्वर ने बताया है, सबसे बढ़िया तरीका है,अग्नि संस्कार करना।
स ईश्वर कहता है- शरीर को अन्त में भस्म करना चाहिए। यह शरीर का निपटाने का सबसे अच्छा तरीक है। मिटटी में गाड़ते है, तो जमीन खराब होती है। कब्रिस्तान में गाड़ते-गाड़ते इतनी जगह मुर्दों ने ले ली, कि जिन्दों के लिए जगह ही नही बची। जमीन दूषित होती है, खामखां जमीन घेर ली जाती है। सौ आदमी मर गए, तो मरे हुए लोग, सौ जीवित आदमियों के बराबर जगह घेर लेंगे। और अपने यहाँ अन्तिम संस्कार कराने में एक ही चिता पर सौ आदमी जला लो। एक जल गया, दूसरा जल गया, सौ जल गये उससे जमीन भी बचती है और उसका अच्छी तरह से निपटारा हो जाता है, जलाने से थोड़ी सी दुर्गन्ध भी फैलती है, उसके निवारण के लिए घी का प्रयोग करते हैं। तो उससे दुर्गन्ध का भी शु(िकरण हो जाता है।
स रही बात लकड़ी की । उसका उत्तर है- जितने पेड़ काटते है उतने पेड़ और लगाओ, लकड़ी की समस्या हल हो जाती है। फिर कहते हैं, लकड़ी मँहगी हो गई। मँहगाई का उत्तर है, कोई वस्तु यदि आवश्यक है, तो कितनी भी मँहगी हो जाए, उसका प्रयोग तो करेंगे ही । जैसे- पैट्रोल, डीजल, घी, तेल, गेहूँ, चावल आदि क्या मँहगे नहीं हो गये ? क्या उनका प्रयोग करना बन्द कर दिया? जब इनका प्रयोग कर रहे हैं, तो लकड़ी का भी करेंगे, चाहे जितनी भी मँहगी हो जाये।

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