ब्रह्म और जीव की एकता

(साधु मायाराम परमहंस, बनारस वासी से प्रश्नोत्तरसन् १८६९)

ब्रह्म और जीव की एकता पर प्रश्न

साधु मायाराम जी परमहंस उदासी ने वर्णन किया कि जब स्वामी जी

का काशी में शास्त्रार्थ हुआ तब हम कलकत्ता में थे । हमने एक साधु के

मुख से सुना था कि बनारस में दयानन्द के साथ विशुद्धानन्दादि ने बुद्धिपूर्वक

शास्त्रार्थ नहीं किया प्रत्युत धूर्तता की, जो बुरी बात है । एक बार हम एक

ब्रह्मचारी के साथ आनन्दबाग में जहां दयानन्द जी उतरे हुए थेविचरते हुए

गये । हमारा विचार तो नहीं था परन्तु ब्रह्मचारी ले गया । उनके पास पहुंचकर

ब्रह्मचारी ने प्रश्न किया कि शारीरक पर शटर और रामानुजादि लोगों के भाष्य

हैंएक द्वैत और दूसरा अद्वैत बताता है, हम किस को मानें ।

स्वामी दयानन्द ने कहा किदोनों का ठीक नहीं, प्रत्युत भेद अभेद

दोनों हैं । ब्रह्म सर्वव्यापक है इसलिए अभेद है । ब्रह्म जीव नहीं इसलिए

भेद है । हमने आक्षेप किया कि फिर शटर मतवाले जो अभेद मानते हैं अर्थात्

जीव—ब्रह्म की एकता, उनको क्या फल प्राप्त होगा ?

उत्तर दिया कि उनका निश्चय मिथ्या है, मिथ्या फल होगा ।

हम कोई और प्रश्न करना चाहते थे परन्तु ब्रह्मचारी ने चलने का निश्चय

किया । स्वामी जी संस्कृत के बड़े विद्वान् थे । (लेखराम पृ० १५३)