जब संसार प्रलय अवस्था में चला जाता है तो ईश्वर निठल्ला नहीं बैठता। जो आत्मायें मुक्ति में जा चुकी हैं, उनको आनंद देता रहता है। उसका यह काम होता है। बाकि जो ब( आत्माऐं हैं, वे प्रलय अवस्था में पड़ी रहती हैं, सोती रहती हैं, विश्राम करती है। ईश्वर बिल्कुल निठल्ला नहीं होता, वो काम करता रहता है। उस समय उसका थोड़ा काम तो घट ही जाता है, क्योंकि तब उसको सृष्टि चलाने का भार नहीं रहता। लेकिन आप ऐसा मत समझिये, कि उसकी मुसीबत छूट गई। इतने दिन छुट्टी हो गई। दरअसल, ऐसा नहीं है। वो सृष्टि चला दे, तब भी उसे भार नहीं पड़ता। सहज स्वभाव से बड़ी आसनी से वो सृष्टि का संचालन करता है। जैसे हम आँखें झपकाते रहते हैं, दिन भर आँख झपकाते हैं, कोई भार लगता है क्या? पता भी नहीं चलता। तो भगवान के लिए सृष्टि का संचालन करना ऐसा ही काम है। जैसे हम श्वास-प्रश्वास लेते-छोड़ते हैं। कोई भारी काम नहीं है। इसीलिए भगवान को कोई फर्क नहीं पड़ता। सृष्टि हो या प्रलय हो, उसको कोई भार नहीं लगता। बस इतना है, कि सृष्टि चलती है, जीवात्मा को कर्मफल देता है, सृष्टि की व्यवस्था करता रहता है। और अगर प्रलय हो जाती है, तो मुक्त आत्माओं को आनंद देता रहता है। उसको कोई फर्क नहीं पड़ता। सृष्टि या प्रलय होने पर हमको फर्क पड़ता है।