यह उचित नहीं है। किसी शास्त्र में नहीं लिखा, कि हरिद्वार में जाओ, गंगा जी में उन अस्थियों को डालो, या नर्मदा जी में डालो, या और किसी नदी में डालो। ऐसा कोई विधान नहीं है। बल्कि उससे नुकसान होता है। जल अशु( होता है। लोग वहाँ पर स्नान करते हैं, उनके पाँव में हड्डी टकराती है, तो कितना खराब लगता है। उसका नाम हर की पेड़ी नही है, उसका नाम हाड़पेड़ी है। वहाँ पर हड्डियाँ, ही हड्डियाँ इतनी हड्डियाँ डाल दी गई, कि लोगों को स्नान करना कठिन हो गया। तो वहाँ नहीं डालना चाहिये, ऐसा कोई विधान नहीं है। तो फिर क्या करें? स्वामी दयानंद जी ने संस्कार-विधि में लिखा है, मृतक का अंतिम संस्कार करने के बाद उसकी अस्थियाँ चयन करके, त्र (इकट्ठी करके( कहीं कोने में गड्ढ़ा खोदकर के उसमें गाड़ देनी चाहिये। बस, और इसके बाद कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।