हम देखते हैं कि सच्चा आदमी, ईमानदार आदमी दुनिया में ज्यादा मार खा रहा है। उसको धन भी कम मिलता है, सम्मान भी कम मिलता है,। गालियां भी पड़ती है, झूठे आरोप भी लगते हैं। और ऑफिस में लोग उसको परेशान भी खूब करते हैं। गंदे व्यापार में भी उसकी पिटाई ज्यादा होती है। हम यह भी देखते हैं, कि जो बेईमान है, छली-कपटी, धोखेबाज, चालाक आदमी है, वो दूसरों से छीन-झपट के खा जाता है। और वो खूब पैसे वाला, संपन्न दिखता है, सुखी दिखता है। तो ऐसी स्थिति में ईश्वर के अस्तित्त्व पर शंका तो होती है।
स उसका समाधान यह है, कि एक बार तो मार खानी पड़ेगी। चाहे इस जन्म में खाओ या अगले जन्म में खाओ। इस जन्म में हम मनुष्य बनकर इन संसार के लोगों की मार खा लेंगे। अगर ईमानदारी से चलेंगे, तो संसार के लोगों की मार खायेंगे। पर ईश्वर की मार से बच जायेंगे। आगे जन्म बढ़िया हो जायेगा। यदि बेईमानी करेंगे, छल-कपट करेंगे, धोखेबाजी करेंगे तो लोगों से शायद कम मार खायेंगे, लेकिन फिर आगे चलकर ईश्वर की मार खानी पड़ेगी। हमें सूअर, गधा, कुत्ता, बिल्ली बनना पड़ेगा ।
स अब आप सोच लीजिए, कि दोनों में से कौन सी मार खानी है। कोई एक तो खानी पड़ेगी। आप ईमानदारी से चलकर लोगों की मार खा लें, या बेईमानी करके ईश्वर की मार खा लें। विचारणीय यह है कि कौन सी मार सस्ती है।
स विचारेंगे तो पता चलेगा कि – लोगों की मार खानी सस्ती है। इसीलिए ईमानदारी से चलना चाहिए। लोग थोड़ा परेशान करेंगे। उसको सहन करने के तीन शब्द आपको दे दिये- कोई बात नहीं। इससे आपको शक्ति मिलेगी और आप लोगों की मार खा लेंगे, आसानी से सह लेंगे। पर इसके परिणाम स्वरुप आपका अगला जन्म अच्छा होगा। आगे अच्छे मनुष्य बनेंगे और ऐसे पुरुषार्थ कर-कर के मोक्ष भी हो जायेगा। इसलिए ईमानदारी से चलना ज्यादा अच्छा है।
स जो बेईमानी करते हैं, वो बड़े सुखी दिखते हैं। वो केवल सुखी दिखते हैं, लेकिन सुखी हैं नहीं सुखी। ऊपर-ऊपर से सुखी दिखते हैं केवल। हम बड़े-बड़े करोड़ पति, अरब पति, सेठों के यहां पर भी जाते हैं। और वो स्वयं हाथ जोड़कर के बोलते हैं, कि महाराज जी। आप बहुत सुखी हो, हम बहुत दुखी हैं।’ तो वो सुखी केवल बाहर से दिखते हैं। अंदर से बेचारे बहुत दुःखी हैं। उनके मन में हमारे प्रति श्र(ा है, इसलिए अपने दिल की बात वो सबको नहीं बताते, हमको बताते है। वे आपको नहीं बतायेंगे। कुछ पूर्वजन्म के भी कर्म है, इस जन्म के भी है, दोनों मिलजुल कर के वो इतने संपन्न हो जाते हैं। परन्तु वे पैसे के कारण बहुत सुखी नहीं हैं। आपको केवल सुखी दिखते हैं।
स सुख तो अंदर की (मन की( चीज है, बाहर की चीज नहीं है। बाहर तो आपको मोटर-गाड़ी दिखती है, धन दिखता है, भवन दिखता है, सोना-चांदी दिखता है। बाहर की चीजें अच्छी-अच्छी चमकीली दिखती हैं। उन चीजों से कोई सुख नहीं होता है।
स देखिये, हम जंगल में रहते हैं, यह मकान भी हमारा नहीं है। यह संसार वालों का है। हम तो यहां मेहमान के तौर पर रहते हैं। हमारे पास कुछ नहीं है। कोई बैंक-बैलेंस नहीं, कोई व्यक्तिगत संपत्ति नहीं। और आप बताइये, हम कितने सुखी हैं। खूब आनंद से रहते हैं, विद्या पढ़ते हैं, योगाभ्यास करते हैं, समाज की सेवा करते हैं, निष्काम भाव से करते हैं, खूब भगवान हमको सुख देता है। जो भी संपत्ति है, सब समाज की है। और भगवान की है और फिर भी हम बहुत सुखी हैं। उनके पास खूब संपत्ति है, फिर भी बेचारे दुःखी हैं। सि(ांत की बात यह है कि-केवल संपत्ति होने से कोई सुखी नहीं होता। सुखी होता है-विद्या से, सत्संग से, वैराग्य से, आचरण से। इन चीजों से व्यक्ति सुखी होता है। तो वो लोग सुखी जरूर दिखते हैं, हैं नहीं।
स एक बात इसमें आई है, कि कोई अच्छा ईमानदार आदमी दुखी होता है तो ईश्वर के न्यायकारी होने पर शंका होती है। इसका उत्तर यह है, कि जो अच्छे लोग मेहनत और ईमानदारी से काम कर रहे हैं, उनको जो दुःख भोगने पड़े रहे हैं, वो दुख उनको ईश्वर दे रहा है या समाज के लोग दे रहे हैं। समाज के लोग। तो फिर समाज के लोग अन्यायकारी हुये, ईश्वर कहां अन्यायकारी हुआ। ईश्वर पर शंका क्यों? ईश्वर ने थोड़े ही किया अन्याय। वो अन्याय तो समाज के लोगों ने किया। उसका दण्ड उनको मिलेगा। ईश्वर तो पूर्ण न्यायकारी है। वो तो जब फल देता है, ठीक न्याय से ही देता है। अन्याय का जो रूप दिख रहा है, यह तो ईश्वर का किया हुआ है ही नहीं। फिर ईश्वर पर हम क्यों शंका करें। इसीलिए ईश्वर पर शंका नहीं करनी चाहिए। संसार के प्राणियों को देखिये, पता चल जाता है। ईश्वर ने कैसा बढ़िया न्याय किया। जो अच्छे काम करते हैं, उनको मनुष्य बनाता है। और जो बुरे काम करते हैं, उनको कौआ, कबूतर, गिलहरी, सूअर, बंदर इत्यादि बना देता है।