शेर बनाया, भेडिया बनाया। ईश्वर ने उनको इतनी ताकत दी, कि वे खरगोश,हिरण आदि प्राणियों के उपर हमला कर उन्हें खा जातें हैं। भगवान ने बलवान का, अत्याचारी का साथ दिया, ऐसा लगता है। परन्तु भगवान ने जो किया, ठीक किया। उसकी पॉलिसी (नीति( को समझ पाना हमारे वश की बात नहीं है। जरा सोचिये शाकाहारी प्राणी घास-पात खाकर अपना जीवन जिऐंगे। और जब मर जाऐंगे, तो उनके शव (डेड बॉडीज( से दुर्र्गंध फैलती रहेगी। तो उनकी साफ-सफाई करने के लिए कुछ प्राणी ऐसे बना दिए, जो प्राणी मर-मरा जाऐं तो उनको खा जाओ ताकि शव साफ हो जाए और दुर्गंध न फैले, रोग न फैले। अब कितने प्राणी मर जाते है, जंगल में तो गि( खा जाते हैं, पक्षी खा जाते हैं। और ऐसे ही शेर, भेड़िया हैं, वो खा जाते हैं। आपके घरों में कहीं-कहीं कॉकरोच मर जाते हैं, तो चीटियाँ उठाकर ले जाती हैं, साफ-सफाई कर जाती है। छिपकलियाँ बना दी, मकड़ियाँ बना दी। प्राणी जगत के अंदर एक नियम चलता है – ‘जीवों वो जीवस्य भोजनम्’। एक जीव दूसरे जीव का भोजन है। यह सारी व्यवस्था ईश्वर ने की है, कुछ सोच-समझकर की होगी। हम नहीं समझ पा रहें हैं वो हमारी कमी है। पर ‘जीवो जीवस्य भोजनम्ः’ यह नियम सब प्राणियों पर लागू होता है, मनुष्यों पर भी। मनुष्यों का भोजन कौन सा जीव है?
ख् समाधान- आप भी शेर-भेड़िया मार-मारकर खाऐं, या गाय को बकरी को मार-मारकर खाऐं और कहें – ‘जीवो जीवस्य भोजनम्’ ऐसा नहीं है। मांस मनुष्य का भोजन नहीं है । मनुष्य का भोजन तो वनस्पति है। वनस्पति में भी जीव है। मनुष्यों के लिए इतना नियम लागू होता है, कि वह वनस्पति को ठीक तरह से विधिपूर्वक काटकर-पकाकर खा सकता है।