आयुर्वेद में लिखा है, कि ‘मांस खिलाओ और वह वैद्य माँस खिलाये, तो क्या उसको पाप नहीं लगेगा।’

आयुर्वेद में भी मिलावट है। आयुर्वेद कौन से ग्रन्थ का उपवेद है? वेद का है न। तो आयुर्वेद का बेस तो वेद है। अब बेसिक ग्रन्थ वेद को देखो। क्या उसमें मांस खाने को लिखा है। हाँ या न? नहीं। जब नहीं लिखा वेद में मांस खिलाना, तो क्यों खिलायें। तो इससे पता चला कि आयुर्वेद में मिलावट है। वो आयुर्वेद का अपना सि(ांत है ही नहीं।
स आयुर्वेद के अंदर, चरक के अंदर, राजयक्ष्मा रोग की उत्पत्ति क्या लिखी है। चन्द्रमा की सत्ताइस कन्यायें थीं। और उसके कारण वो रोग हुआ। क्या गप्पें मार रहे हैं। क्या चन्द्रमा की सत्ताइस कन्यायें हो सकती हैं। ऐसी-ऐसी कत्थकड़ आयुर्वेद के अंदर, बिना सिर पैर की बातें मिला दी हैं। तो माँस खाने का विधान चाहे वो चरक में हो, चाहे अन्य ब्राह्मण ग्रन्थ में हो, वो सब बाद की मिलावट है। वो वेद के अनुकूल नहीं है।
स वेद के अंदर व्यक्ति को शाकाहारी भोजन खाने का विधान किया है। यजुर्वेद का मंत्र हैः- ‘गोधूमाश्च यवाश्च तिलाश्च माशाश्च’ अथर्ववेद का मंत्र हैः- रसमोषधीनाम् अर्थात् औषधियों का रस पियो। ‘सं सिंचामि गवां क्षीरम्’ अर्थात् ईश्वर कहता है, कि मैं मनुष्यों के लिये गाय का दूध दे रहा हूँ, गाय का दूध पियो, यह अथर्ववेद में लिखा हैः- ‘पृषदाज्यम्’- ‘प्रसादायम्’ घी खाओ, दही खाओ, मक्खन खाओ, मलाई खाओ, शाकाहारी भोजन खाओ। वेद का यह सि(ान्त है। तो जो आयुर्वेद में मांस खाने का लिखा है, वह मिलावट है।
स जब वेद कहता है, ‘मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षत्ताम् क्षन्ताम्’ सब प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखो। भेड़-बकरी मार के खायेंगे, तो मित्र को कोई मारता है क्या? इसलिये वे सब गड़बड़ बातें हैं, उनको छोड़ देना चाहिये।
स शरीर में मांस की कमी हो गई तो मांसवर्धक शाकाहारी भोजन बहुत मिलता है, जो मांस की वृ(ि करता है। आप घी खाईये, मक्खन, मलाई, मिठाई, केला, आलू, अरबी आदि लीजिये, देखिये मांस बढ़ जायेगा। अच्छा खुश रहिये और थोड़ा अच्छे से सो जाईये। खूब खाए और खूब सोए, देखो आदमी मोटा हो जायेगा। खामख्वाह कुढ़ता रहे, दुःखी होता रहे, तो सारी चरबी उतर जायेगी, कमजोर पड़ जायेगा, घिस जायेगा। आयुर्वेद में अपने शाकाहारी तरीके से भी शरीर की वृ(ि, विकास बहुत लिखा है। उस हिसाब से हमको करना चाहिये।

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