ध्यान करने के लिए ईश्वर की आकृति आवश्यक नहीं है, बिना आकृति के भी ध्यान हो सकता है। आप लोग सुख का ध्यान करते हैं कि सुख मिलना चाहिए। सुख का ध्यान करते हैं न, तो क्या सुख की आकृति बनाकर ध्यान करते हैं या बिना आकृति बनाए? हम बिना आकृति बनाए ध्यान करते हैं और दुःख का भी ध्यान करते हैं, कि ‘हे भगवान दुःख न आ जाए।’ रोज ध्यान करते हैं, लेकिन दुःख की कोई आकृति नहीं बनाते। इसलिए ध्यान करने के लिए आकृति बनाना आवश्यक नहीं है।
पृथ्वी के अन्दर गुरूत्वाकर्षण (ग्रबिटेशन फोर्स( की कोई आकृति है क्या? उसकी शक्ल, कोई रूप, रंग, कलर, कुछ नहीं है। फिर भी देखो निराकार स्वरुप में उसको लोग पढ़ते भी हैं, पढ़ाते भी हैं, समझाते भी हैं और सारे व्यवहार भी चल रहे हैं। कोई भी साइंटिस्ट (वैज्ञानिक( यह नहीं कहता, कि ग्रेविटेश्न फोर्स की कोई पीली आकृति है, लाल आकृति है या किस रंग की है? और सब मानते हैं, पढ़ते हैं, पढ़ाते भी हैं। ऐसी पता नहीं कितनी चीजे हैं, जिनका कोई रूप, रंग, आकृति नहीं है, फिर भी उनको सब स्वीकार करते हैं। उनको मानते हैं उनके आधार पर सारा व्यवहार भी चलता है।
एक्स-रे नहीं दिखती, अल्फा-रे नहीं दिखती, बीटा-रे नहीं दिखती, गामा रेज नहीं दिखती, ग्रेविटेशन फोर्स नहीं दिखती, इनफ्रारेड लाईट नहीं दिखती, अल्ट्रासाउण्ड नहीं दिखती, पता नहीं कितनी चीजें हैं, जो नहीं दिखती। रेडियो और टेलीविजन का प्रसारण हो रहा है कि नहीं ? यहाँ उनकी किरणे हैं कि नहीं? जो सारे चैनल चल रहे, इस समय भी तो चल रहे हैं न। तो यहाँ पर उनकी सारी किरणें हैं, पर ये नहीं दिखतीं। ऐसी बहुत सारी चीजें हैं, जो होती है, अपना-अपना काम करती है और दिखती एक भी नहीं। और वो सब माननी पड़ती है। ईश्वर भी ऐसा है, कि कोई आकृति नहीं है। बिना आकृति के ही उसका ध्यान करेंगे, धीरे-धीरे अभ्यास करेंगे हो जाएगा ।