संगीत, नृत्य और क्रीड़ाएं
आयशा बतलाती हैं-”अल्लाह के रसूल उस वक्त मेरे कमरे में आये, जब वहां दो लड़कियां मेरे साथ बुआस की लड़ाई के गीत गा रही थीं। वे पीठ फेर कर बिस्तर पर लेट गये। तब अबू बकर आये और उन्होंने मुझे झिड़का। वे बोले-ओह ! अल्लाह के रसूल के घर में शैतान के संगीत-वाद्य ! अल्लाह के रसूल उनकी तरफ मुखातिब हुए और बोले-उन्हें रहने दो। और जब वे उधर ध्यान नहीं दे रहे थे, तब मैंने लड़कियों को इशारा किया और वे बाहर चली गई। और वह ईद का दिन था“ (1942)। मुहम्मद बोले-”अबू बकर, सभी लोगों का अपना त्यौहार होता है, और आज हमारा त्यौहार है (इसलिए उन्हें गाने-बजाने दो)“ (1938)।
यह एकमात्र हदीस है, जिसका अर्थ मुहम्मद द्वारा संगीत की मंजूरी के रूप में लगाया जा सकता है। मुख्यतः तो वे अपनी किशोरी पत्नी आयशा को सन्तुष्ट कर रहे थे। किन्तु इस्लाम के सूफी सम्प्रदाय ने इस हदीस का जमकर उपयोग किया। सूफियों के लिए संगीत का बहुत महत्व रहा है।
इसी अवसर पर मुहम्मद एक खेल देख रहे थे। आयशा अपना सिर उनके कंधे पर टिकाये हुए थी। कुछ अबीसीनियाई लोग दिखावटी युद्ध की क्रीड़ा कर रहे थे। उमर आये और कंकड़ फेंककर उन्हें भगाने लगे। मगर मुहम्मद उनसे बोले-”उमर, उन्हें रहने दो“ (1946)।
author : ram swarup