समझाना-बुझाना
किन्तु यह पद्धति भी दोषरहित नहीं थी। उनके कुछ पुराने समर्थकों में इससे बड़ा असंतोष उभरा और उन्हें शांत करने के लिए मुहम्मद को कूटनीति एवं खुशामद की अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग करना पड़ा। मक्का-विजय के बाद, इस सफलता के मुख्य सहभागी अंसारों ने लूट के वितरण में अन्याय के शिकवे किए। वे बोले-”यह अजीब है क हमारी तलवारां से जिनका खून टपक रहा है, उन (कुरैशों) को ही हमारे द्वारा युद्ध में लूटा गया माल दिया जा रहा है।“ मुहम्मद उनसे बोले-”क्या तुम्हें इस पर खुशी नहीं महसूस हो रही है कि (दूसरे) लोग धन के साथ (मक्का की ओर) लौटें, और तुम अल्लाह के रसूल के साथ (मदीना) वापस जाओ“ (2307)।
मुहम्मद ने और भी खुशामद करते हुए अंसारों से कहा कि वे उनके ”भीतरी वस्त्र“ हैं। (यानी ज्यादा नजदीक हैं), जबकि लूट का माल पाने वाले कुरैश उनके सिर्फ ”बाहरी वस्त्र“ हैं। फुसलाहट को पंथमीमांसा के साथ जोड़ते हुए वे उनसे बोले कि ”हौज़ कौसर में मुझसे मिलने तक तुम्हें धीरज दिखाना चाहिए“ (2313)। हौज़ कौसर जन्नत की एक नहर है। अंसार लोग खुश हो गए।
author : ram swarup