“सत्यार्थ प्रकाश : समीक्षा की समीक्षा का जवाब PART 12”

इस्लाम, नारी और महिला विकास का अवरोधक बुरका

“ग्यारहवे अध्याय का जवाब पार्ट 1 ”

सत्यार्थ प्रकाश समीक्षा की समीक्षा पुस्तक में सतीशचंद गुप्ता जी एक अध्याय प्रस्तुत करते हैं “क्या पर्दा नारी के हित में नहीं है ?” अपनी परदे वाली थियोरी को जायज़ (वैध) सिद्ध करने के चक्कर में लेखक इतने मशगूल हुए की बिना सिद्धांतो के ही कुतर्क और मिथ्याभाषण करते हुए, वर्तमान युग में भारतीय नारी का उद्धार करने वाले ऋषि दयानंद को इस्लाम और मुसलमानो का कटुआलोचकर बना दिया। क्या ये समाज को सच्चाई दिखाने की जगह खुद ही सच्चाई पर पर्दा डालने वाली बात न हुई ? लेखक को चाहिए था की नारी की मनोस्थति को समझते हुए उसकी भावनाओ का सम्मान करते, मगर इस्लामी धारणा से ओतप्रोत हुए लेखक ने सच को नकारते हुए, विशुद्ध रूप से मजहबी कट्टरता का परिचय देकर सम्पूर्ण नारी जाती का अपमान कर दिया। क्या ये आक्षेपकर्ता का मानसिक दिवालियापन नहीं है ?

देखिये, पर्दा प्रथा न तो भारतीय संस्कार हैं, न ही ये शब्द ही भारतीय हिंदी भाषा से सम्बंधित है, “पर्दा” शब्द स्वयं विदेशी है जो फ़ारसी भाषा से है, संपादक “डॉ सैयद असद अली” प्रकाशक राजपाल इन संस, दिल्ली से प्रकाशित “व्यवहारिक उर्दू हिंदी शब्दकोष” पृष्ठ संख्या १८८ में शब्द “पसेपर्दा” आता है, जो “फ़ारसी पुल्लिंग” शब्द है। जिसका अर्थ है आड़ में। तो ये बात तो क्लियर है की पर्दा शब्द खुद में ही विदेशी शब्द है, तो इसका मूल भी भारतीय नहीं हो सकता, वैदिक संस्कृति में नारी को सम्मान का सूचक “देवी” कहा गया है, जो कभी भी छुपाने की वस्तु वाले नजरिये से नहीं देखि गयी। क्योंकि “औरत” शब्द अरबी है जो अरबी धातु औराह या आईन-वाव-रा (ayn-waw-ra) से जिसका मतलब है कानापन या एक आंख से देखना से बना है। सीधा सीधा अर्थ है, शायद अरब के लोग नारी को केवल भोग की वस्तु या शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाली नजर से ही देखते थे, जिस कारण नारी को “औरत” शब्द यानी छुपाने वाली बना दिया ताकि ऐसी दुष्ट और काम वास्नामयी नजरो से बचा सके।

जबकि भारतीय पद्धति में महिला को देवी का दर्जा प्राप्त है, जिससे ज्ञात होता है की भारतीय परंपरा और संस्कार नारियो के प्रति कितने उदारशील और संस्कारी थे। अब जो बात है पर्दा की तो किसी भी वैदिक साहित्य में महिला को छुपाने या पर्दा करने का विवरण प्राप्त नहीं होता देखिये :

निरुक्त में पर्दा प्रथा का विवरण कहीं मौजूद नहीं।

निरुक्तानुसार संपत्ति संबंधी मामले निपटाने के लिए न्यायालयों में स्त्रियों के आने जाने के लिए कहीं पर्दा व्यवस्था का विवरण नहीं, बल्कि अधिकार है।

रामायण और महाभारत काल में भी महिलाओ की पर्दा प्रथा नहीं पायी जाती, इसके उल्ट रावण की बहन जब श्री राम और लक्ष्मण के सामने आई तब भी कोई पर्दा न था, जब रावण माता सीता को ले जाकर, अशोक वाटिका में रखा वहा भी कोई पर्दा व्यवस्था नहीं थी। रामायण और महाभारत कालीन इतिहास में स्वयंवर होते थे, तब भी पर्दा व्यवस्था का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता।

इन सब तथ्यों से ज्ञात हो जाता है की आर्य सभ्यता में पर्दा व्यवस्था थी ही नहीं, क्योंकि आर्य जाति सदैव सदाचारी और संयमी रही है, अतः पुरुषो को अपनी इन्द्रियों को वश में करना ही सदाचार है, महिलाओ को ढक कर, छिपा कर पुरुष इन्द्रियों को वश में नहीं कर सकता, खैर ये ढकने और छिपाने जैसी प्रथा से पुरुष की इन्द्रिय संयम में रहती हैं और पुरुष सदाचार की शिक्षा प्राप्त करता है, इतना विज्ञानं अरबी सभ्यता में ही था।

अब हम आपको वेद से प्रमाण दिखाते हैं, देखिये :

सुमंगलीरियं वधुरिमा समेत पश्यत
सौभाग्यमस्यै दत्वायाथास्तं वि परेतन

ऋग्वेद (10.85.33)

हे विवाह में उपस्थित भद्र स्त्री पुरुषो ! यह वधु शुभा और सौभाग्यशालिनी है। आप लोग आइये, देखिये और इसे सौभाग्य का आशीर्वाद देकर अनन्तर अपने अपने घरो को जाइए।

यहाँ स्पष्ट है की पर्दा प्रथा का कोई औचित्य भारतीय संस्कृति में महिलाओ के लिए निर्धारित नहीं किया गया। बल्कि आश्वलायनगृह्यसूत्र (1/8/7) के अनुसार वधु को अपने घर ले आते समय वर को चाहिए कि वह प्रत्येक निवेश स्थान (रुकने के स्थान) पर दर्शकों को ऋग्वेद के उपर्युक्त मंत्र के साथ दिखाए। इससे स्पष्ट है कि वैदिक सभ्यता (भारतीय संस्कृति) में वधुओं द्वारा अवगुण्ठन (पर्दा) नहीं धारण किया जाता था, प्रत्युत वे सबके सामने निरावगुण्ठन आती थी। पर्दा प्रथा का उल्लेख सबसे पहलेे महाकाव्यों में हुआ है पर उस समय यह केवल कुछ राजपरिवारों तक ही सीमित था। (धर्मशास्त्र का इतिहास पृ.336)

अब मूल सवाल यह है की ये पर्दा प्रथा जैसी कुप्रथा हमारे भारतीय समाज में कैसे दाखिल हुई ? इसका जवाब हमें हुतात्मा पंडित लेखराम कृत “महर्षि दयानंद सरस्वती का जीवन चरित्र” नामक पुस्तक में बेहद तर्कपूर्ण आधार पर मिलता है, जहाँ महर्षि ने एक शंकालु की शंका समाधान करते हुए कहा :

“स्त्रियों को परदे में रखना आजन्म कारागार में डालना है। जब उनको विद्या होगी वह स्वयं अपनी विद्या के द्वारा बुद्धिमती होकर प्रत्येक प्रकार के दोषो से रहित और पवित्र रह सकती हैं। परदे में रहने से सतीत्व रक्षा नहीं कर सकती और बिना विद्या प्राप्ति के बुद्धिमती नहीं हो सकती हैं और परदे में रखने की प्रथा इस प्रकार प्रचलित हुई की जब इस देश के शासक मुस्लमान हुए तो उन्होंने शासन की शक्ति से जिस किसी की बहु बेटी को अच्छी रूपवती देखा उसको अपने शासनाधिकार से बलात छीन लिया और दासी बना लिया। उस समय हिन्दू विवश थे, इस कारण उनमे सामना करने की सामर्थ्य न थी। इसलिए अपने सम्मान की रक्षा के लिए उन्होंने अपनी स्त्रियों और बहु बेटियो को घर से बाहर जाने का निषेध कर दिया। सो मूर्खो ने उसको पूर्वजो का आचार समझ लिया। देखो, मेमो अर्थात अंग्रेज की स्त्रियों को, वे भारत की स्त्रियों की अपेक्षा कितनी साहसी, विद्यावती और सदाचारिणी होती हैं।”

ऋषि ने जो समझाया उसे न समझकर पूर्वाग्रह से ग्रसित हो आक्षेपकर्ता ने कुछ और ही समझा, स्त्रियों को परदे में रखना आजन्म कारागार है, क्योंकि ये महिला की इच्छा विरुद्ध है, अनेको मुस्लिम महिलाये ही बुरखा का विरोध करती हैं, यहाँ तक की अनेको मुस्लिम महिलाओ ने तो नग्न तक होकर विरोध किया है, ऐसी अनेको खबरों से फ्रांस, ब्रिटेन आदि देशो के समाचार पत्र भरे पड़े हैं। हम नग्न्ता का समर्थन तो बिलकुल नहीं करते, विरोध सदैव ही शालीन और मर्यादित होना चाहिए, लेकिन शायद उन मुस्लिम महिलाओ को नग्न्ता की राह दिखाने वाला भी बुरखा ही था जिसमे उन्हें घुटन महसूस हो रही थी। खैर हम ऋषि की दूसरी बात समझते हैं, उन्होंने कहा महिला कभी भी परदे से अपनी सतीत्व रक्षा नहीं कर सकती, ये कटु सत्य है, क्योंकि भारत में ही अनेको मुस्लिम परिवारो में मुस्लिम बहु की इज्जत को तार तार करने में उसके ही अपने मुस्लिम ससुर का योगदान था। मुजफ्फरनगर उ० प्र० में इमराना का केस मात्र एक उदहारण है, मुस्लिम पति नूर इलाही की जो पत्नी इमराना थी, उसके ससुर अली मोहम्मद ने बलात्कार किया था, तब इस्लामी कानून अनुसार दारुल उलूम देवबंद ने एक फतवा निकाला जो दुनिया से मानवता शर्मसार करने वाला था, इस कानून में पीड़ित महिला जो ससुर की हैवानियत का शिकार हुई थी, उसे उस हैवान की पत्नी बना दिया गया, और जो उसका पति था, जिससे उस महिला को पांच बच्चे थे, उसे बेटा बना दिया, अंततः पीड़ित ने भारतीय संविधान का दरवाजा खटखटाया और पीड़िता को इंसाफ मिला। अब सवाल ये है, क्या बुरखा यहाँ स्त्री की सतीत्व रक्षा कर पाया ? क्या ये जरुरी नहीं था, की पुरुष अपनी इन्द्रियों को वश में करना सीखे। महिलाओ को शिक्षित करने से ही महिलाओ का शोषण रुकेगा, क्योंकि महिलाओ को जो अधिकार प्राप्त हैं, वो शरिया कानून नहीं देता, क्योंकि इस्लाम में महिलाओ का पढ़ना लिखना हराम है, महिलाओ का नौकरी करना हराम है, महिलाओ का पर पुरुषो (ऑफिस सहकर्मी) के साथ बैठना, काम करना, सब हराम है। खैर इस विषय पर हम अगले लेख में विचार करेंगे। आप अभी केवल ये सोचिये की यदि महिला शिक्षित होकर नौकरी करना चाहे तो क्या वो ऑफिस में बुरखा पहने हुए, बैठ सकती है ? क्या ये एक प्रकार का मानसिक अत्याचार नहीं है ? क्या पुरुष को भी बुरखे में रहने की आज्ञा है ? यदि नहीं, तो क्यों एक नारी पर अत्याचार किया जाता है, वो भी मजहब के नाम पर ? फिर भी कहते हैं की महिला और पुरुष को इस्लाम में समान अधिकार प्राप्त हैं ? क्या ये एक प्रकार का बेहूदा मजाक नहीं ?

यही बात यहाँ महर्षि ने बताई, की महिला को शिक्षित होना चाहिए, ताकि वो अपने अधिकार प्राप्त कर सके, मगर खेद की इस्लाम में महिलाओ का पढ़ना लिखना, उनको अधिकार देना इस्लामी शरिया में हराम है, पाकिस्तान की मलाला युसूफ ज़ई से ज्यादा इस बात को कोई नहीं समझ सकता।

उपरोक्त तथ्यों से सिद्ध है की भारतीय सभ्यता में तो पर्दा का कोई रोल नहीं, ये कुप्रथा विशुद्ध रूप से मुस्लिम शासको के कारण ही भारतीय परिवेश में दाखिल हुई। ऋषि ने जो तर्क दिया था, उसका ही समर्थन करते हुए “भारतरत्न पांडुरंग वामन काणे” ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री आफ धर्मशास्त्र (धर्मशास्त्र का इतिहास) में पृष्ठ ३३७ में लिखते हैं :

“उत्तरी भारत एवं पूर्वी भारत में पर्दा की प्रथा जो सर्वसाधारण में पाई जाती है, उसका आरंभ मुसलमानों के आगमन से हुआ।

इसके तीन कारण थे-

हिन्दू स्त्रियों को सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से।

विजेता शासकों की शैली का चाहे-अनचाहे तरीके से अनुसरण।

विपरीत परिस्थितियों के कारण स्त्रियों में बढ़ती अशिक्षा और मुस्लिम शासकों के राज में गिरता स्तर।

इतिहास को आप छुपा नहीं सकते, इस विषय पर अनेको लेखको ने स्वतंत्रता से लिखते हुए अपनी सहमति दी है, क्योंकि मुस्लिम शासक और आक्रांता, इस देश में आक्रमण करते और पुरुषो को मारकर, उनकी स्त्रियों को उठा ले जाते तथा अरब आदि देशो में गुलाम दासी के तौर पर दो दो दिनार में बेच देते थे, ये तो इतिहास था, मगर इतिहास फिर दुहरा गया, सीरिया में इस्लामी आतंकी संगठन ने यजीदी महिलाओ को निर्वस्त्र करके गली मोहल्ले में बोली लगाकर १०० डॉलर में बेचा, ये तो अभी हाल की ही खबर है, बिलकुल यही परिस्थिति मुग़ल काल में भी थी राजपुताना में मौजूद अनेको जौहर स्थल इसके साक्षात प्रमाण हैं। इतिहास साक्षी है, की मुस्लिमो की बादशाहत दौरान हिन्दू महिलाओ को अगवा कर बलात्कार किया जाता था, डॉ श्रीवास्तव अपनी पुस्तक अकबर द मुग़ल पृष्ठ ६३ में लिखते हैं “when people Deosa and other places on Akbar’s route fled away on his approach” अब यहाँ शंका ये है यदि राजा भारमल की पुत्री जोधा का विवाह वधु पक्ष की मर्जी से हुआ था तो अकबर के आने पर जनता भाग क्यों गयी ? जाहिर है, वो विवाह था ही नहीं, ये स्पष्ट है की अकबर ने राजा भारमल की पुत्री की सुंदरता के प्रसिद्द किस्से सुने थे, इसीलिए उसे पाने को राजा भारमल पर आक्रमण किया, यही हाल सती रानी दुर्गावती की कहानी का भी है, हालांकि जौहर करने से दो महिलाये बच गयी थी एक दुर्गावती की बहन कमलावती और दूसरी राजा पुरंगद की बेटी थी जिन्हे अकबर के हरम में पंहुचा दिया गया था (जे एम शेलत, अकबर 1964)

अनेको इतिहासिक दस्तावेजो से ये सिद्ध है की उत्तर भारतीय हिन्दू परिवारो में पर्दा प्रथा मौजूद नहीं थी, ये कुप्रथा हिन्दू समाज में मुस्लिम आक्रंताओ से हिन्दू महिलाओ को बचाने के लिए अपनाया गया, नवाब वज़ीर लखनऊ का तत्कालीन नवाब सुन्दर हिन्दू महिलाओ को अगवा कर उनको प्रताड़ित किया करता था, और जबरन मुसलमान बनवाता था (इट इज कॉन्टिनुएड, अशोक पंत, पृष्ठ १३०)

औरंगजेब के समय तत्कालीन प्रधान मंत्री का नवासा मिर्ज़ा तवाख्खुर ने हिन्दुओ की दुकानो को नष्ट किया और हिन्दू महिलाओ को अगवा कर बलात्कार किया (India & South East Asia to 1800 सांडर्सन बेक)

औरंगजेब के समय तत्कालीन प्रधान मंत्री का नवासा मिर्ज़ा तवाख्खुर ने घनश्याम जो नवविाहित वधु को डोली में बैठा कर घर ला रहा था, उसे अपने घर के गेट के सामने ही लूट लिया, २ हिन्दू मार दिए गए और घनश्याम की पत्नी को मिर्ज़ा तवाख्खुर अपने घर ले गया (Ahkam-i-Alamgiri)

The Afghan ruler Ahmad Shah Abdali attacked India in 1757 AD and made his way to the holy Hindu city of Mathura, the Bethlehem of the Hindus and birthplace ofKrishna.

The atrocities that followed are recorded in the contemporary chronicle called : ‘Tarikh-I-Alamgiri’ :

“Abdali’s soldiers would be paid 5 Rupees (a sizeable amount at the time) for every enemy head brought in. Every horseman had loaded up all his horses with the plundered property, and atop of it rode the girl-captives and the slaves. The severed heads were tied up in rugs like bundles of grain and placed on the heads of the captives…Then the heads were stuck upon lances and taken to the gate of the chief minister for payment.

“It was an extraordinary display! Daily did this manner of slaughter and plundering proceed. And at night the shrieks of the women captives who were being raped, deafened the ears of the people…All those heads that had been cut off were built into pillars, and the captive men upon whose heads those bloody bundles had been brought in, were made to grind corn, and then their heads too were cut off. These things went on all the way to the city of Agra, nor was any part of the country spared.”

कितने ही प्रमाण दिए जा सकते हैं, जो सिद्ध करते हैं, की हिन्दू महिलाओ पर मुस्लिम आक्रंताओ द्वारा कितना अत्याचार किया गया, की इससे हमारी सभ्यता और संस्कृति में अनेको परिवर्तन आ गए। जिनमे मुख्य रूप से :

पर्दा कुप्रथा का भारतीय महिलाओ द्वारा अपनाना मुख्य है।
बाल विवाह, ताकि हिन्दू महिलाओ को शोषण से बचा सके।
सती प्रथा, ये जौहर का परिणाम था जिसे स्वेच्छा से अपनाया जाने लगा ताकि मृत हिन्दू पति के बाद हिन्दू महिला की आबरू बच सके।

इसके अतरिक्त सतीशचंद गुप्ता से पूछना चाहेंगे की, जो पर्दा प्रथा हालिया हिन्दू समाज में पायी जाती है, वह केवल घूंघट या सर पर पल्लू रख कर देखि जाती है, लेकिन जो पर्दा प्रथा का समर्थन आक्षेपकर्ता ने किया वो बुरखा है, वो किसी भी लिहाज से घूँघट का कार्य तो करता नहीं, फिर बुरखा की बराबरी घूँघट से करना मानसिक दिवालियापन ही है। क्योंकि हालिया समय में हिन्दू समाज में घूँघट या सर पर पल्लू रखना एक नजरिये से देखे तो आदर सूचक ही लगता है जो बड़े बुजुर्गो के सम्मान हेतु रखते हैं, लेकिन बुरखा घूँघट या पर्दा की बराबरी नहीं कर सकता, फिर क्यों बराबर जोड़ा गया ?

अब हम इस लेख में ज्यादा तो अब नहीं लिख सकते, क्योंकि बड़ा हो जाएगा, अतः अब हम अगले लेख में देखेंगे, कि :

बुरका प्रथा मुस्लिम समाज में कैसे आया ?

बुरखे की हानिया और आज का आतंकवाद

बुरखे से महिलाओ को होने वाली बीमारियां तथा बुरखे पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण

बुरखे के कारण मुस्लिम महिलाओ की स्थति

महिला विकास में अवरोधक बुरखा

और क्या बुरखा महिलाओ के प्रति छेड़ छाड़ और बलात्कार रोक पाता है ?

अगले लेख में।

आओ लौट चले वेदो की और।

नमस्ते

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