*सच्ची रामायण की पोल खोल-९
अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
-लेखक कार्तिक अय्यर ।
*प्रश्न-९आगे रामायण को धर्मसंगत न होना तथा चेतन प्राणियों के लिये अनुपयोगी होना लिखा है।राक्षसों का यज्ञ में विघ्न,ब्रह्मा जी की विष्णु जी से प्रार्थना, विष्णु के अवतार का उल्लेख किया है विष्णु द्वारा जालंधर की पत्नी का शीलहरण करके आक्षेप किया है।आपने कहा है “इसका वर्णन आर्यों के पवित्र पुराण करते हैं!”*
*समीक्षा*-प्रथम,रामायण धर्मसंगत,अनुकरणीय है वा नहीं ये आगे सिद्ध किया जायेगा।
दूसकी बात,श्रीराम ईश्वरावतार नहीं थे,अपितु महामानव,आप्तपुरुष, राष्ट्रपुरुष आर्य राजा थे।इसका स्पष्टीकरण ‘श्रीराम’के प्रकरणमें करेंगे।
यहां आपने रामायण से छलाँग मारी और पुराणों पर पहुंच गये।पेरियार साहब! भागवत,मार्कंडेय,शिवपुराणादि ग्रंथों का नाम पुराण नहीं है। *वेद के व्याख्यानग्रंथ ऐतरेय,साम,गोपथ और शतपथ इतिहास व पुराण कहलाते हैं।*वर्तमान पुराण व्यासकृत नहीं हैं। ये १०००-१५०० वर्ष पूर्व ही बनाये गये हैं।इनको वैदिक धर्म के दुश्मन वाममार्गियों तथा पोपपंडितों ने बनाये हैं।इनमें स्वयं राम,कृष्ण, शिव,विष्णु, ब्रह्मा,शिव आदि की निंदा की गई हैं।मद्यपान,मांसभक्षण,पशुबलि,व्यभिचार आदि वेदविरुद्ध कर्मों का महिमामंडन इनमें हैं।अतः पुराण वेदविरुद्ध होने से प्रामाणिक नहीं हैं।
महर्षि दयानंद सत्यार्थप्रकाश मेंपुराणों के विषय में प्रबल प्रमाण एवं युक्तियां देकर लिखते हैं:-
( एकादश समुल्लास पृष्ठ २९७)
*”जो अठारह पुराणोंके कर्ता व्यासजी होते तो उनमें इतने गपोड़े नहीं होते।क्योंकि शारीरिक सूत्रों,योगशास्त्र के भाष्य और व्यासोक्त ग्रंथों को देखने से विदित होता है कि व्यास जी बड़े विद्वान, सत्यवादी,धार्मिक, योगी थे।वे ऐसी मिथ्या कथा कभीन लिखते।*
*……वेदशास्त्र विरुद्ध असत्यवाद लिखना व्यासजी सदृश विद्वानों का काम नहीं किंतु यह काम वेदशास्त्र विरोधी, स्वार्थी,अविद्वान लोगों का है..*
*….”ब्राह्मणानीतिहासान पुराणानि कल्पान् गाथानराशंसीदिति।”(यह ब्राह्मण व सूत्रों का वचन है-(१) ब्राह्मण ग्रंथों का नाम इतिहास पुराण है।इन्हीं ग्रंथों के ही इतिहास, पुराण,कल्प,गाथा और नाराशंसी ये पांच नाम है*
विस्तार से जानने के लिये सत्यार्थप्रकाश एकादश समुल्लास देखने का कष्ट करें।
अतः अष्टादशपुराण वेदविरुद्ध होने से अप्रमाण हैं ।इससे सिद्ध है कि विष्णु-जालंधर आदि की कथायें मिथ्या हैं। *और जहां-जहां पुराणोक्त गल्पकथायें रामायण में मिलें,वे भी कालांतर में धूर्तों द्वारा प्रक्षेपित की गई होने से अप्रमाण हैं-ऐसा जानना चाहिये।*
नोट : इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आर्यमंतव्य टीम या पंडित लेखराम वैदिक मिशन उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. |