पेरियार रचित सच्ची रामायण का खंडन भाग-१६
*अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
*-कार्तिक अय्यर*
नमस्ते मित्रों! आगे पेरियार साहब ने किसी श्रीनिवास आयंगर की पुस्तक “अयोध्या कांड पर टिप्पणी” का प्रमाण देकर दशरथ पर १२ आक्षेप लगाये हैं।जैसे ऊतनाथ वैसे भूतनाथ! जैसे पेरियार साहब वैसे उनके साक्षी! अब आयंगर जी के आक्षेपों पर हमारी आलोचनायें पढें और आनंद लें:-
*आक्षेप-१५- प्रश्न-१*दशरथ ने बिना विचार किये कैकेयी को दो वरदान देने की भूल की।
*समीक्षा*- आप इसे महाराज दशरथ की भूल कैसे कह सकते हैं?देवासुर संग्राम में कैकेयी ने महाराज दशरथ की जान बचाई थी।इसलिये प्रसन्न होकर दशरथ जी ने उसे दो वरदान दिये।कैकेयी अपने काम के लिये पारितोषिक की अधिकारिणी थी। दशरथ ने उनको वरदान दिये कैकेयी ने कहा कि समय आने पर मांग लूंगी।हम मानते हैं कि कैकेयी को उसी समय वरदान मांगते थे और दशरथ को भी उसी समय पूर्ण करना था।पर दो वरदान देना गलत नहीं कहा जा सकता।हां,कैकेयी का मूर्खतापूर्ण वरदान मांगना अवश्य भूल थी।
*आक्षेप-१६-प्रश्न-२* कैकेयी के विवाह करने के पूर्व दशरथ ने उससे उत्पन्न पुत्र को राजगद्दी देने की भूल की।
*समीक्षा-*हम पहले बिंदु के उत्तर में सिद्ध कर चुके हैं कि महाराज दशरथ ने कैकेयी के पिता को ऐसा कोई वचन नहीं दिया था।अतः आक्षेप निर्मूल है।इक्ष्वाकुकुल की परंपरानुसार ज्येष्ठ पुत्र ही राजा बनता था।इसके विरुद्ध राजा दशरथ ऐसा अन्यथा वचन नहीं दे सकते।
*आक्षेप-१७-प्रश्न-३* साठ वर्ष का दीर्घ समय व्यतीत कर चुकने के पश्चात भी अपने पशुवत विचारों का दास बने रहने के दुष्परिणाम स्वरूप अपनी प्रथम स्त्री कौसल्या तथा द्वितीय स्त्री सुमित्रा के साथ वह व्यवहार न कर सका जिनकी वो अधिकारिणी थीं।
*समीक्षा-* यह आक्षेप निर्मूल है। महाराज दशरथ पशुवत विचारों के नहीं थे,अपितु महान मानवीय विचारों के स्वामी थी।उनके गुणों का वर्णन हम पीछे कर चुके हैं।क्या ६० वर्ष के बाद वानप्रस्थ की इच्छा करना और अपने ज्येष्ठ पुत्र को राजगद्दी देना भी पशुवत व्यवहार है?,यदि उनका व्यवहार पशुवत था तो उनको मरते दम तक राज्य भोग करना था पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।महाराज दशरथ जितेंद्रिय, वेदज्ञ,अश्वमेधादि यज्ञ करने वाले और श्रेष्ठ प्रजापालक थे। उनके पशुवत कहने वाले स्वयं पशुओं के बड़े भाई हैं ।
आपको प्रमाण देना चाहिये कि दशरथ ने कौसल्या और सुमित्रा से यथायोग्य व्यवहार नहीं किया। वे सभी रानियों से यथायोग्य प्रेम करते थे।यह ठीक है कि कैकेयी से उनका विशेष स्नेह था पर यह सत्य नहीं कि उन्होंने कौसल्या और सुमित्रा से यथायोग्य व्यवहार नहीं किया। क्या कौसल्या के पुत्र श्रीराम को राजगद्दी देना कौसल्या का सम्मान नहीं है?क्या पुत्रेष्टि यज्ञ की खीर का अतिरिक्त भाग सुमित्रा को देना उनका उनके प्रति प्रेम सिद्ध नहीं करता?आपका आक्षेप निर्मूल है।
*आक्षेप-१८-प्रश्न-४-*कैकेयी को दिये मूर्खतापूर्ण वचनों से उससे कैकेयी से अपनी खुशामद करवाई।
*समीक्षा-*कैकेयी को वरदान देना राजा का कर्तव्य था और कैकेयी को यह पारितोषिक मिलने का अधिकार था।वरदान देना मूर्खता नहीं अपितु कैकेयी द्वारा अनुचित वर मांगना मूर्खतापूर्ण था।कैकेयी कोे दिये वरदानों को पूरा करने में असमर्थ होने से राजा दशरथ ने उसे अवश्य मनाया,समझाया कि वो ऐसे अन्यथा वरदान न माने।क्या एक पति अपनी पत्नी को मना भी नहीं सकता?क्या इसे भी आप खुशामद कहेंगे?आपको भला पति-पत्नी के मामले के बीच में टीका-टिप्पणी करने क्या अधिकार है?राजा दशरथ का कैकेयी के चरण पकड़ने आदि का पीछे उत्तर दे चुके हैं।
*आक्षेप-१९-प्रश्न-५-*अपनी प्रज्ञा के समक्ष राम को राजतिलक करने की घोषणा कैकेयी व उसके पिता को दिये वचनों का उल्लंघन है।
*समीक्षा-*हम चकित हैं कि आप कैसे बेहूदा आक्षेप लगा रहे हैं!हम पहले सिद्ध कर चुके हैं कि राजा दशरथ ने कैकेयी के पिता कोई वचन नहीं दिया।और राम दी के राजतिलक की घोषणा पहले हुई।उसके बाद में कैकेयी ने यह वरदान मांगे कि ,”राम को दंडकारण्य में वास मिले और जिन सामग्रियों से राम का राज्याभिषेक होने वाला था उनसे भरत का राज्याभिषेक हो।”
कैकेयी के वरदानों के बाद राम राज्याभिषेक की घोषणा की बात कहना मानसिक दीवालियापन और रामायण से अनभिज्ञता दर्शाता है।
पेरियार साहब! आपका *”हुकुम का इक्का तो चिड़ी का जोकर निकला”* श्रीमन्!नकल के लिये भी अकल की जरूरत पड़ती है जो आप जैसे अनीश्वरवादियों से छत्तीस का आंकड़ा रखती है।
*आक्षेप-२०-प्रश्न-६-*कैकेयी की स्वेच्छानुसार उसे दिये गये वरदानों के फल-स्वरूप राम को गद्दी देने की अपनी पूर्ण घोषणा से वह निराश हो गया।
*समीक्षा-*राजा दशरथ ने श्रीराम को गद्दी देने की भरी सभी में घोषणा की थी। अयोध्या की जनता,मंत्रीगण और समस्त जनपदों के राजा भी इसके पक्ष में थे।ऐसे में कैकेयी ने मूर्खतापूर्ण वरदान मांगे जिसमें राम को वनवास देना भी एक वचन था।महाराज दशरथ ने पहले भरी सभा में राज्याभिषेक की घोषणा की थी कि श्रीराम को राजगद्दी मिलेगी।कैकेयी के वरदान के कारण उनकी घोषणा मिथ्या हो जाती।अयोध्या की जनता भी अपने होने वाले शासक से वंचित हो जाती ।दशरथ का बहुत अपयश होता।वैसे भी,१४वर्ष तक पुत्र से वियोग के दुख के पूर्वाभास के कारण ऐसा कौन पिता होगा जो निराश न होगा?अतः आक्षेप पूर्णरूपेण अनर्गल है।
…………क्रमशः
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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की जय।
योगेश्वर कृष्ण चंद्र जी की जय।
नोट : इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आर्यमंतव्य टीम या पंडित लेखराम वैदिक मिशन उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. |