राजकोट से हमने महर्षि के जन्म स्थान टंकारा के लिये प्रस्थान किया। इस यात्रा में हमने महर्षि की उस यात्रा (सन् 1875) के कुछ विशेष प्रसंगों के सिलसिले में महर्षि की देन के ऐतिहासिक महत्त्व क ो एक-एक पड़ाव पर कुछ-कुछ प्रकाश डालकर उद्घाटित किया। राजकोट के धर्मशाला चौक में महर्षि ने देश-भाषा (गुजराती) में व्यायान दिया था। इस व्यायान का विशेष प्रभाव पड़ा था। पं. लेखराम जी के इस कथन को गुजरात की धरती पर पहली बार उठाया गया। ऋषि के जीवन पर लिखने वाले किसी भी लेखक ने कभी यह नहीं बताया था कि पं. लेखराम जी ने गुजराती भाषा के लिए ‘देशभाषा’ शद का प्रयोग किया है। गुजरात की जनता को पहली बार यह जानकारी दी गई कि महर्षि दयानन्द प्रथम भारतीय विचारक सुधारक जो कभी सागर पार तो नहीं गया था परन्तु उनका चित्र सबसे पहले अमरीका के एक पत्र Sunday Magazine (सण्डे मैगज़ीन) में छपा था।
गुजरात निवासी धरती पुत्र महर्षि दयानन्द की इस विलक्षणता को जानकर गौरवान्वित हुए। टंकारा पहुँचने पर टंकारा आर्य समाज, आर्यवीर दल तथा टंकारा गुरुकुल के ब्रह्मचारियों के साथ गुजरात सभा के मन्त्री जी ने हमारा स्वागत किया। महर्षि दयानन्द स्मारक ट्रस्ट में हमें ठहराया गया। आर्य समाज टंकारा में एक कार्यक्रम रखा गया। श्रीमान् धर्मवीर जी तथा श्रीयुत् ओममुनि जी ने अपने विचार रखे। श्री पं.ाूपेन्द्र जी के भजन हुए।
मुझे कुछ कहने को कहा गया। मैंने अभी ये शद ही कहे, ‘‘कुछ वर्ष पूर्व श्रीमती जिज्ञासु महर्षि का जन्म गृह व माण्डवी देखने आईं। मैंने चलते समय उन्हें कहा, टंकारा ट्रस्ट को कुछ दान अवश्य देकर आना तथा श्री दयालमुनि जी के घर जाकर उनको मिलकर आना………।’’ मुझे महात्मा आनन्द स्वामी जी की टंकारा यात्रा की याद आ गई। महात्मा जी महर्षि जी के जन्म गृह को देखने गये तो पं. रघुवीर सिंह शास्त्री जी उनके साथ थे। जन्म-गृह के ऐतिहासिक कमरे में अपनी भावपूर्ण शैली में अपनी ऊँची आवाज में महात्मा जी ने कहा, ‘‘हे टंकारा की धरती एक और दयानन्द को जन्म देकर हमारा उद्धार कर दे। बेड़ा पार कर दे।’’ इतना कहकर उनके नयन सजल हो गये । गला रुंध गया। साथ खड़े पण्डित रघुवीर सिंह जी के नयनों से टप-टप अश्रुकण गिरने लगे।
उपरोक्त शद बोलते ही मेरी अश्रुधारा भी रोके न रुकी। महात्मा आनन्द स्वामी ने मुझे रुला दिया। जब पहली बार मैं जन्म-गृह देखने गया तबाी श्री महात्मा जी के उपरोक्त कथन को स्मरण करके मैं उस कमरे में जी भरकर रोया था। मैं अपने मनोभावों में बह गया।
जन्म गृह तो देखा ही। हम दयाल मुनि जी के दर्शनार्थ उनके घर पर भी गये। टंकारा ट्रस्ट के कार्यक्रम में केरल से यात्रा में भाग लेने आये श्रीयुत् अरुण प्रभाकर जी के स्वागत के साथ श्रीमान् राजेश जी द्वारा अनूदित महर्षि की एक पुस्तक के मलयालम संस्करण का श्री दयाल मुनि जी से विमोचन करवाया। टंकारा गुरुकुल के आचार्य श्री रामदेव जी, श्री रमेश मेहता जी के प्रभावशाली व्यायान हुए। श्री धर्मवीर जी, ओम्मुनि जी तथा इस सेवक नेाी अपने विचार व्यक्त किये। श्री नौबतरामजी, पं. लेखराज जी और भूपेन्द्र जी के मधुर भजन सुनकर सब आनन्दित हुए।
टंकारा से यात्रा गांधीधाम के लिए चल पड़ी। देर रात वहाँ पहुँचे। वहाँ के भव्य भवन व कई संस्थायें श्री वाचोनिधि जी ने दिखाई। जब गंगा-पार गुरुकुल कांगड़ी था तब महात्मा मुंशीराम की घास-फूस की झोंपड़ी राजनेताओं व साम्राज्यवादियों के बड़े-बड़े सत्ताधारियों के लिए आकर्षण का केन्द्र था। जब भव्य भवन बन गये तो सत्ता वालों को विनती करके बुलाना पड़ता है। गुजरात में भव्य भवन तो बहुत देखने को मिले परन्तु गुजरात में लोग ऋषि के नाम को अब भी नहीं जानते। ऋषि गुजरात में जन्मे थे, यह जानकारी ग्राम-ग्राम देनी होगी। इसके लिए दर्दीला दिल व मिशनरी भाव रखने वाले समाजी चाहिएँ।
जिस ऋषि को इतिहासकारों ने, विदेशी लेखकों व पत्रकारों ने युग का सबसे बड़ा एकेश्वरवादी और पाषाण-पूजा का सबसे बड़ा विरोधी जाना व माना आज उसकी धरती गुजरात मूर्तिपूजा व बहुदेववाद की सन्देशवाहक बन रही है। यह चिन्ता का विषय है। इस चुनौती को स्वीकार करके आर्यों को आगे बढ़ना होगा।
मुन्दरा, भुज, लुडवा और नखत्राणा की यात्रा बहुत आनन्ददायक रही। यहाँ के कार्यक्रम तथा मेल मिलाप सबकी अपनी ही विशेषतायें थीं। लुडवााुज आदि गुजरात के आर्यसमाज सुधारक, गो भक्त, यज्ञ प्रसारक-प्रचारक शिवगुण बापू तथा धर्मवीर ेातसी भाई की कर्मभूमि रही है। इन्होंने इसे तप से सींचा। एक इतिहास बनाया हमने देखा नखत्राणा में एक ही परिवार के सगे सात भाई समाज के कर्णधार हैं। सब दैनिक यज्ञ करते हैं तथा सब के घरों में गऊ का पालन होता है। अतिथि सेवा जो इस क्षेत्र में देखी वह अनुकरणीय है। मुन्दड़ा में हमें ऋषि-उद्यान के गुरुकुल का ब्रह्मचारी कश्यप अपने घर पर ले कर गया। परिवार सपन्न है। वेद-भक्त और ऋषि-भक्त है। इस परिवार के तीन युवा पुत्र ऋषि-उद्यान में आर्ष-ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। कश्यप के माता-पिता को नमन क रके हम सबने स्वयं को धन्य-धन्य माना। यहाँ पर एक परिवार ने अतिथि-सत्कार का चमत्कार कर दिखाया।
इन समाजों के सुपठित, सपन्न कर्णधार यदि सप्ताह में एक दिन धर्म प्रचार के लिये दें तो आर्य समाज जन-आन्दोलन बन सकता है। धर्म-प्रचार करना अब प्रचारक ों पर छोड़ दिया गया है। आर्यसमाजी धर्म-प्रचार करना भूल गये। महात्मा मुंशीराम, महात्मा नारायण स्वामी, पं. गंगा प्रसाद द्वय, ला. मुरलीधर और पं. श्यामााई सब मिशनरी थे।
भाभर छोटा सा स्थान है। यहाँ श्री धनजी भाई समाज के प्रधान हैं। आचार्य ओ3म् प्रकाश जी गुरुकुल आबू पर्वत इसी ग्राम के हैं। युवा आचार्य जी की लगन, उत्साह, कर्मण्यता व सद्व्यवहार देखकर हमें बड़ा गौरव हुआ। ऐसे निर्भीक, स्पष्टवादी, सत्यवादी आर्यों पर हम जितना भी अभिमान करें थोड़ा है। आपके पिता श्री यहाँ के समाज के एक माननीय कर्णधार हैं।
श्री आचार्य जी भाभर से बहुत पहले हमें मार्ग में भटक ने से बचाने के लिए पहुँच गये। उनके पहले पहुँचने से हम परेशानी से बच गये। अन्यत्र भी यदि कोई दिलजला ऐसे ही करता तो संयम व शक्ति का अपव्यय न होता। इस बीस दिन की प्रचार-यात्रा में श्रीमान् कमलेश जी शास्त्री तथा आचार्य ओमप्रकाश जी का सर्वाधिक व ठोस सहयोग रहा।
भाभर की गोशालायें :- गोशालायें तो इस यात्रा में कई देखीं परन्तु, गो-सेवा व गो-रक्षा में भाभर की गोशाला तो देशभर में अद्वितीय कही जा सकती हैं। यहाँ की गोशाला की तीन श्रेणियाँ । दूर-दूर से रुग्ण, घायल व अंधी गउओं को यहाँ लाया जाता है। इनकी संया आठ सहस्र से ऊपर है। कई डॉक्टर, गो-सेवक, गो-पालक दिन-रात इनकी रक्षा व उपचार में लगे रहते हैं। असाध्य रोगों से पीड़ित, घायल गउयें जब कुछ ठीक होती हैं तो उनको दूसरी गोशाला में रखा जाता है। जब पूरी रोग मुक्त हो जाती हैं तो तीसरी गोशाला में ले जाया जाता है।
ग्राम के 25-30 युवक नित्यप्रति प्रातःकाल स्वयं स्फूर्ति से इन गउओं की सेवा करने आ जाते हैं। सब निष्काम सेवा करते हैं। जब कोई यात्री बाहर से आते हैं तब भी ये युवक सहयोग व सेवा करने अपने आप आ जाते हैं। यह दृश्य देखकर हमें अपार प्रसन्नता हुई। आज के अर्थ-प्रधान युग में ऐसे युवक कहाँ मिलेंगे? न धन का लोा और न फोटो खिंचवाने की लालसा।
गुजरात में हमने कई गोशालायें देखीं। भारतीय वंश की गऊओं की रक्षा व संवर्द्धन की गो-सेवकों में सर्वत्र चिन्ता देख कर बहुत हर्ष हुआ। एक गोशाला में गो-पालन व गो-हत्या निषेध विषयक कई विद्वानों व नेताओं की सूक्तियाँ पढ़ीं । इनमें पं. नेहरु का भी एक वचन था। यह कितने दुर्भाग्य व दुःख का विषय है कि गो-शाला व गो-रक्षा आन्दोलन के जन्मदाता महर्षि दयानन्द की गो-करु णानिधि आदि पुस्तकों में से ऋषि का एक वचन वहाँ पढ़ने को न मिला। क्या यह गुजरात के लिए लज्जाजनक नहीं है। ऐसे लगा कि गुजरात में सुनियोजित नीति से राजनेताओं ने ऋषि से दूरी बना रखी है।
गुजरात की विशाल सड़कों व स्वच्छता को देखकर (अपवाद तो सर्वत्र होता ही है) हमें बड़ा आनन्द हुआ परन्तु भाभर में भाजपा कार्यालय में एक साा में मैंने सरदार पटेल जी विषयक कई प्रश्न पूछे तो सुपठित श्रोताओं में से कोई भी मेरे द्वारा पूछे गये किसीाी प्रश्न का उत्तर न दे सका यथा –
- सरदार पटेल के अन्तिम भाषण का विषय क्या था?
- सरदार पटेल ने अन्तिम भाषण कहाँ दिया?
- अन्तिम भाषण किस दिन, कब दिया गया?
- हैदराबाद का पुलिस ऐक्शन किस दिन आरभ हुआ?
- मन्त्री परिषद ने किस दिन पुलिस ऐक्शन का निर्णय लिया था?
सरदार पटेल की जन्म भूमि के लोग सरदार पटेल के भक्त व नामलेवा हैं, यह गौरव की बात है परन्तु ऐसे प्रश्नो का उत्तर न दे पाना तो अशोभनीय है।
पोरबन्दर में माता कस्तूरबा विषयक एक प्रश्न मुझसे पूछा गया। मैं प्रश्न सुनकर चौंक गया। उस युवक को उत्तर तो दिया परन्तु दुःख तो हुआ कि हमारे युवक…………इस यात्रा से बहुत अनुभव प्राप्त हुआ। यात्रायें तो उपयोगी हैं परन्तु यात्रा में आठ-दस व्यक्ति से अधिक नहीं होने चाहिये। यात्रा में कुछ लगनशील तथा सूझबूझ वाले युवक अवश्य होने चाहियें ताकि उनको शोध व प्रचार का प्रशिक्षण प्राप्त हो। यात्रियों को यह आशा लेकर नहीं निकलना चाहिये कि हमारे आवास-निवास व भोजन की सर्वत्र व्यवस्था होगी ही। यात्रा में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए एक स्थानीय मार्गदर्शक होना ही चाहिये। इससे व्यर्थ की परेशानियों से बचा जा सकता है।
यात्रा दस-बारह दिन से अधिक की न हो । यात्रा का उद्देश्य अखबारी न हो, वेद-प्रचार-ऋषि सन्देश हो। भ्रूण हत्या व बेटी बचाओ यात्राओं से समाचार तो बन जाता है। इसकी ठ्ठद्गख्ह्य क्ड्डद्यह्वद्ग (समाचार महत्त्व) तो है किन्तु वैचारिक महत्त्व (क्द्बद्गख्ह्य क्ड्डद्यह्वद्ग) तो कुछ भी नहीं। वेद-प्रवचन करते हुए अन्य-अन्य कुरीतियों व बुराइयों के साथ भ्रूण हत्या के दोष व दुष्परिणाम भी जनता को हृदयङ्गम करवाये जा सकते हैं।
यात्रा में बड़े-बड़े ग्रन्थ भी हों परन्तु कुछ ऐसी पुस्तकें व ट्रैक्ट अधिक हों जो हमारे मूलभूत सिद्धान्तों की ठोस जानकारी दें । हमारी इस यात्रा में आर्य हुतात्माओं पर एक भी पुस्तक हमारे पास नहीं थी। मांसाहार, वेद ईश्वरीय ज्ञान है, ईश्वर की सत्ता व स्वरूप, पुनर्जन्म, नरक क्या? स्वर्ग क्या, पञ्च-महायज्ञ, अग्निहोत्र, पाप, पुण्य, तीर्थ क्या? कर्मफल सिद्धान्त, अंधविश्वास, क्या पाप क्षमा हो सकते हैं? इत्यादि विषयों पर अच्छी-अच्छी लघु पुस्तिकायें हम लेकर जाते तो अधिक लाभ होता तथापि वैदिक पुस्तकालय के पर्याप्त साहित्य की बिक्री हुई। जो बड़े-बड़े ग्रन्थ सपन्न समाजों ने लिए- वे कोई विरला विद्वान् ही पढ़ेगा। मध्यम आकार की पुस्तकें व लघु पुस्तिकायें सब पढ़ते हैं।
जैनियों के जिस विशाल आधुनिकतम पुस्तकालय को हमने देखा उसमें आर्य विद्वानों का सहित्य तो है परन्तु बहुत थोड़ा। आचार्य उदयवीर जी की बहुत सी पुस्तकें उसमें देखकर हम हर्षित हुए। कोई दानी सभा को सहयोग करें तो आर्य विद्वानों की दो तीन सौ उत्तम कृतियाँ वहाँ पहुँचाई जा सकती हैं। पूज्य उपाध्याय जी का सहित्य वहाँ नाम-नाम को ही है। पं. लेखराम जी, देवेन्द्र बाबू जी, हरविलास जी व पं. लक्ष्मण जी लिखित ऋषि-जीवन, ऋषि का पत्र-व्यवहार, पं. इन्द्र जी का कोई उत्तम ग्रन्थ वहाँ नहीं था। स्वामी दर्शनानन्द जी का कुछ साहित्य था परन्तु, उपनिषद् प्रकाश नहीं था। गुजराती में ऋषि का वेद-भाष्य वहाँ पहुँचना चाहिये। अहमदाबाद का समाज यह कार्य जितना शीघ्र हो सके कर दे तो यश पायेगा।
स्वामी नारायण मत के गुरुकुल में सामवेद पर जो समेलन हुआ उसमें डॉ. धर्मवीर जी के विद्वत्तापूर्ण भाषण की वहाँ के प्रमुख स्वामी जी ने भी बहुत प्रशंसा की। परोपकारिणी सभा को ऐसे प्रत्येक समेलन में डॉ. वेदपाल जी आदि किसी विद्वान् को भेजना चाहिये अन्यथा हम सायणवादियों व मूर्तिपूजकों से पिछड़ जायेंगे। हमने यात्रा में यह अनुभव किया कि हिन्दू समाज के तथाकथित नेता हिन्दुओं की कुरीतियों व सामाजिक रोगों के बारे में एक भी शद कहने को तैयार नहीं। ये लोग तुलसी के पौधे भेंट करके उनको आरोपित करके हिन्दू धर्म को बचाना फैलाना चाहते हैं। विधर्मियों के प्रचार को ये लोग क्या रोक सकेंगे? जातिवाद का अजगर देश को निगलने पर तुला बैठा है।
वेद सदन, अबोहर, पंजाब-151116