हदीस : प्रार्थना की समय मुद्रायें

प्रार्थना की समय मुद्रायें

मुस्लिम प्रार्थना किसी एक शांत मुद्रा में खड़े होकर या बैठकर सम्पन्न नहीं होती। वह कई अंग-संचालनों के साथ की जाती है। मुहम्मद के व्यवहार और निर्देशों के आधार पर इन संचालनों की विधि निश्चित की गई है। इस विषय पर अनेक अहादीस हैं। एक वृत्तांतकार ने देखा कि ”प्रार्थना शुरू करने के समय मुहम्म्द ने कंधों के सामने अपने हाथ उठाये और नीचे झुकने के पहले तथा झुकने के उपरांत सीधे खड़े होने के बाद भी उन्हें हाथ उठाये देखा। लेकिन दो सजदों के बीच में हाथ उठे हुए नहीं दिखे“ (758)। दूसरे ने देखा कि ”उनके हाथ कानों के सामने तक उठे हुए थे।“ उसने यह भी देखा कि ”फिर उन्होंने अपने हाथ अपने कपड़ों से ढक लिये, और अपना दाहिना हाथ अपने बायें हाथ के ऊपर रखा और जब वे झुकने को हुए तो हाथों को कपड़ों से बाहर निकाल कर ऊपर उठाया…….और सजदा करते समय उन्होंने दो हथेलियों के बीच सिर रखकर सजदा किया“ (792)।

 

अल्लाह ने मुहम्मद को हुक्म दिया कि ”उन्हें सात हड्डियों सहित सजदा करना चाहिए और केश तथा वस्त्र पीछे की तरफ नहीं बांधने चाहिए।“ सात हड्डियां ये हैं-”दोनों हाथ, दोनों घुटने, पैरों के दो छोर और माथा“ (991)। पर मुहम्मद ने अपने अनुयायियों से कहा कि ”सजदे में संयम बरतें“ और ”अपनी बाहें जमीन पर कुत्ते की तरह न पसारें“ (997)।

 

प्रारम्भ में दस्तूर था कि एक हाथ को दूसरे पर हथेली से हथेली सटा कर जांघों के बीच में रखा जाय। पर बाद में यह प्रथा रद्द कर दी गई और अनुयायियों को ”हुक्म दिया गया कि हाथों को घुटनों पर रखा जाय“ (1086-1092)।

 

एक और एहतियात-”लोगों को नमाज के समय दुआ करते वक्त अपनी आंखें आकाश की ओर नहीं उठानी चाहिए, नहीं तो उनकी आंखें नोच डाली जायेंगी“ (863)।

author : ram swarup

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