पीना (पान)
मजहबी अनुष्ठान के अंग के रूप में मुहम्मद ने जमजम के कुएं का पानी भी पिया था। अब्द अल-मुतालिब के कबीले (जो मुहम्मद का अपना कबीला भी था) में आकर वे बोले-”ऐ बनी अब्द-अल मुतालिब ! पानी खींचों। यदि मुझे आशंका न होती कि दूसरे लोग पानी पिलाने का यह हक तुम से छीन लेंगे, तो मैं भी तुम्हारे साथ मिलकर पानी खींचता। इस पर उन्होंने मुहम्मद को एक बाल्टी दी और मुहम्मद ने उससे पानी पिया“ (2803)। पैगम्बर के जीवनीकार कातिब अल-वाकिदी हमें आगे एक ऐसा ब्यौरा देते हैं, जो (पैगम्बर के प्रति) श्रद्धाविहीन लोगों द्वारा गंदा माना जायेगा। मुहम्मद ने कुछ पानी लिया, फिर पानी के बर्तन में अपना मुंह धोया और आदेश दिया कि उसमें जो पानी बचा हो, वह कुएं में वापस डाल दिया जाए। कुएं को आशीष देने का भी उनका एक तरीका था-कुएं में थूकना। अहादीस में कई ऐसे कुओं का उल्लेख है (तबकात किताब 2, पृष्ठ 241-244)।
वे अपने प्रिय पेय नवीज को जो एक सौम्य पेय था भूले नहीं थे। यद्यपि उन्हें जो नवीज दिया गया, वह अनेक हाथों द्वारा गंदला कर दिया गया था, तब भी उन्होंने साफ और शुद्ध नवीज पीने का प्रस्ताव रद्द करते हुए, उसे ही पी लिया। हर पीढ़ी के कट्टर तीर्थयात्रियों ने इस रिवाज को जारी रखा है।
author : ram swarup