हदीस : पंथमीमांसा नैतिकता को विकृत करने वाली है

पंथमीमांसा नैतिकता को विकृत करने वाली है

अपनी पंथमीमांसा के आग्रह वाली ऐसी साम्प्रदायिक दृष्टि यदि यत्र-तत्र उल्टी सीधी नैतिकताएं सिखाती दिखे, तो उसमें क्या अचरज। फलतः इस दृष्टि के अनुसार किसी समूचे जनगण को लूट लेना पुण्यकर्म है, यदि वह जनगण बहुदेववादी हो। किन्तु जब लूट का माल मुसलमानों के हाथ में आ जाए तब उसकी चोरी महापातक है। मुहम्मद का एक गुलाम जिहाद में खेत रहा। इस तरह एक शहीद के नाते जन्नत में उसकी जगह अपने-आप तय हो गई। लेकिन मुहम्मद को दिखाई दिया कि ”वह दोजख की आग में जल रहा है, क्योंकि उसने युद्ध में लूटे गये माल में से पोशाक या लबादा चुरा लिया था।“ यह सुन कर कुछ लोग परेशान हो उठे। उनमें से एक ने अनुमानतः इसी किस्म की उठाईगीरी कर रखी थी। वह ”एक या दो तसमें लेकर मुहम्मद के पास आया और बोला-अल्लाह के रसूल, ये मुझे खैबर (एक युद्ध का नाम) के रोज मिले थे। पवित्र पैगम्बर ने कहा-ये (दोजख की) आग की एक डोर है या दो डोरें हैं“ (210)। जैसा कि एक अन्य पाई में कहा गया है, इसका अर्थ यह हुआ कि उस आदमी को उसके द्वारा चुराये गये दो तसमों के बदले परलोक में आग की दो लपटों में जलना पड़ेगा।

 

एक समूचे जनगण की लूट सत्कर्म है, किन्तु लूटे गये माल में से कोई नगण्य वस्तु चुपके से उठा लेना ऐसा प्रचंड नैतिक भ्रष्टाचरण है कि उसके लिए अनन्त आग में जलना होगा। सामान्य प्रलोभनों से प्रेरित हो कर लोग छोटे-मोटे अपराध छोटी-मोटी भूलें ही कर पाते हैं। घोर दुष्कर्मों के करने के लिए एक विचारधारा, एक इलहाम, एक ईश्वर-प्रदत्त मिशन का आश्रय आवश्यक हो जाता है।

लेखक :  रामस्वरुप

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