बाइबिल के प्रथम वाक्य आकाश (Heaven) को ईश्वर द्वारा बनाया गया, लिखा है और फिर आठवें वाक्य में दोबारा Heaven (आकाश) का सृजन हुआ। आकाश दो बार क्यों रचना पड़ा? पहले जो आकाश बनाया गया था, उसमें क्या दोष था? आश्चर्य है कि बहुत पठित लोग भी इस भूल-भुलैयाँ को ईश्वरीय ज्ञान मानते हैं।
यही नहीं बाइबिल की 26वीं आयत में आता है, ÒLet us make man in our own image.Ó अर्थात् परमात्मा ने अपनी आकृति पर मनुष्य को बनाने का मन बनाया। परन्तु अपने देह को कब और कैसे बनाया- यह बाइबिल में इस से पहले कहीं बताया ही नहीं गया।
उत्पत्ति 2-7 में पुनः God formed man of the dust of the ground.. लिखा मिलता है अर्थात् धरती की धूलि मट्टी से मनुष्य को बनाया गया। प्रश्न उठता है कि जब ईश्वर के सृदश ही मनुष्य को बनाया तो क्या फिर परमात्मा की देह भी धूलि मट्टी से निर्मित होगी। इस शंका का समाधान कैसे हो?
प्रत्येक आर्य को श्री हरिकृष्ण जी की पूना से प्रकाशित पुस्तक पढ़नी व पढ़ानी चाहिये।
श्री विशाल का प्रश्नः– दिल्ली के श्री विशाल धर्मनिष्ठ व लगनशील युवक हैं। अभी अनुभवहीन हैं। उन्हें निरन्तर स्वाध्याय करके अपनी योग्यता बढ़ानी चाहिये। आप विधर्मियों को बहुत सुनते व पढ़ते हैं। उनके प्रत्येक आक्षेप का उत्तर देने की योग्यता तो समय पाकर ही आयेगी। आपने एक मुसलमान का यह आक्षेप सुनकर उसका उत्तर माँगा है कि अथर्ववेद के एक मन्त्र में, ‘‘हमारे शत्रुओं को मारने की प्रार्थना है।’’ मैं समझ गया कि किसी मियाँ ने जेहाद की वकालत में उसकी पुष्टि में वेद के मन्त्र का प्रमाण दे दिया। इससे इतना तो पता चल गया कि जेहाद को कुरान से तो न्याय संगत सिद्ध नहीं किया जा सका। जेहाद की पुष्टि में मियाँ लोग वेद को घसीट लाते हैं। कुरान का जेहाद विशुद्ध मजहबी लड़ाई व रक्तपात है। वेद में किसी भी मजहब की चर्चा नहीं, अतः वेद में मजहबी लड़ाई (Crusade) की गंध तक नहीं। तब मत पंथ थे ही नहीं। वेद में भले व बुरे, सज्जन व दुर्जन का तो भेद है। अन्यायी दुर्जन से लड़ाई में विजय की प्रार्थनायें हैं।
कुरान व बाइबिल दोनों हमारी इस मान्यता की पुष्टि करते हैं। कुरान की सूरते बकर की आयत संया 213 का प्रामाणिक अनुवाद है “Mankind was [of] one religion [before their deviation], then Allah sent the prophetes as………” अर्थात् धरती के वासियों की एक ही भाषा और एक ही वाणी थी। वह वाणी कौनसी थी? वेदवाणी ही सृष्टि के आरभ में मनुष्य धर्म था। इसी को शद प्रमाण माना जाता था। बाइबिल का घोष विश्व को सुनाना समझाना होगा, In the beginning was the Word, and the Word was with God, and the Word was God. कितने स्पष्ट शदों में घोषणा की गई है कि आदि में शब्द (शब्द प्रमाण-वेद) था, शब्द ईश्वर के पास था और शब्द (ज्ञान) परमात्मा था। मित्रो! मत भूलिये बाइबिल में तीन बार आने वाले इस शब्द Word का W अक्षर Capital बड़ा है। व्यक्तिवाचक जातिवाचक संज्ञाओं में धर्म ग्रन्थों का पहला अक्षर सदैव कैपिटल ही होता है। यहाँ Word संज्ञा होने से W कैपिटल है। निर्विवाद रूप से यहाँ शब्द Word वेद के लिये प्रयुक्त हुआ है। आयत का सीधा सा भाव सृष्टि के आदि में अनादि वेद का आविर्भाव हुआ। गुण-गुणी के साथ ही रहता है, सो ईश्वर का वेद ज्ञान ईश्वर के साथ था। ईश्वर ज्ञान स्वरूप माना जाता है, सो शद ज्ञान वेद का परमात्मा ब्रह्म कहा जाता है। हिन्दू समाज घर-घर में बाइबिल के इस घोष को गुञ्जा कर मार्गभ्रष्ट जाति बन्धुओं का उद्धार करे।
मैंने विशाल से कहा, अरे भाई विधर्मी से वार्ता करते हुए सदा अपना पक्ष वैज्ञानिक ढंग से रखो। प्रभु निर्मित किसी वस्तु व नियम में कुछ भी दोष आज तक नहीं पाया गया। सूर्य चाँद नये नहीं बने। मनुष्य, पशु-पक्षियों की निर्माण विधि (Design) विधि पुराना है। अग्नि, जल, वायु और सृष्टि के सब वैज्ञानिक नियम (Laws) न घटे, न घिसे और न बढ़े, फिर ईश्वरीय ज्ञान, मानव धर्म नया (इलहाम) कैसे आ गया। यह मान्यता हठ, दुराग्रह व अन्धविश्वास है।
नन्दकिशोर जी के अनुरोध को शिरोधार्य करके मैं नये सिरे से एक ऐसी पुस्तक अवश्य लिखूँगा। मुसलमानों व ईसाइयों के साहित्य में जो वेदानुकूल नई-नई शिक्षायें व मान्यतायें मिलती है, सूझबूझ से आर्य युवकों को उनको संग्रहीत करके प्रचारित करना चाहिये।