पैगम्बर के पिता और चाचा
यह बात हमें माननी ही होगी कि मुहम्मद अविचल थे। उन्होंने अपनी शक्ति अपनी उम्मा के बचाव के लिए सुरक्षित रखी। उम्मा यानि वे लोग जो लोग अल्लाह और उज्जा को त्याग कर अल्लाह पर और मुहम्मद की पैगम्बरी पर ईमान लाए। अपनी शक्ति का उपयोग उन्होंने अपने प्रियतम एवं निकटतम जनों, जैसे पिता एवं चाचा को बचाने में भी नहीं किया। एक प्रश्नकत्र्ता से उन्होंने उनके पिता के बारे में कहा-”दरअसल, मेरे और तुम्हारे वालिद जहन्नुम की आग में हैं“ (368)। पर अपने चाचा के वास्ते वे कुछ सहृदय थे। ये चाचा थे अबू तालिब, जिन्होंने उन्हें पाला-पोसा था, और उनकी रक्षा भी की थी पर उनका मज़हब नहीं माना था। उनके बारे में मुहम्मद बतलाते हैं-”मैने उन्हें आग की सबसे निचली सतह पर पाया और मैं उन्हें छिछली सतह पर ले आया“ (409)। पर आग की यह छिछली सतह भी चाचा जी को भून तो रही ही होगी। मुहम्मद हमें आश्वस्त करते हैं-”आग के निवासियों में से अबू तालिब को सबसे कम तकलीफ होगी और वे आग के दो जूते पहनें होंगे, जिससे उनका दिमाग खौल उठेगा“ (413)। क्या इसे हम राहत कहें ?
यद्यपि मुहम्मद रिश्ते कायम करने में गौरव का अनुभव करते थे, तथापि अपने पुरखों की पीढ़ियों और उनके उत्तरकालीन लोगों से अपने सम्बन्धों का उन्होंने पूर्णतः प्रत्याख्यान कर दिया था। मुहम्मद की घोषणा है-”ध्यान दो ! मेरे पुरखों के वारिस……. मेरे दोस्त नहीं हैं“ (417)। कयामत के दिन उनके शुभ कर्म काम नहीं आयेंगे। पैगम्बर की युवा पत्नी आयशा बतलाती हैं-”मैंने कहा, अल्लाह के रसूल ! जुदान के बेटे (आयशा का एक रिश्तेदार और कुरैश के नेताओं में से एक) ने रिश्ते कायम किये और निभाये तथा गरीबों का पोषण किया। क्या वह सब उसके कुछ काम आयेगा ? उन्होंने कहा-वह सब उसके किसी काम न आयेगा“ (416)।
बहुदेववादियों के बारे में अल्लाह ने निर्णय कर लिया है। इसलिए किसी सच्चे मोमिन को उनके वास्ते आर्शीवाद तक की याचना नहीं करनी चाहिए। कुरान का वचन है-”पैगम्बर के लिए और मोमिनों के लिए यह उचित नहीं कि वे बहुदेववादियों के लिए अल्लाह से माफी मांगे, भले ही वे सगे-सम्बन्धी ही क्यों न हों। उन्हें यह जता दिया गया है कि काफिर जहन्नुम के बाशिन्दे हैं“ (9/113)।
लेखक : राम स्वरुप