Arya Invasion an Analysis Where man was first created? Q.~ In Trivishtap otherwise called Tibet. Q. Were all men of one class or divided into different classes at the time of Creation? A.~ They all belonged to one class, viz., that of man, but later on they were divided into two main classes, – the good and the wicked. The good were called Aryas and the wicked Dasyus. Says the Rig Veda, “Do ye know (there are) two classes of men – Aryas and Dasyus.” The good and learned were also called Devaas, while the ignorant and wicked, such as dacoits (robbers), were called Asura. TheAryas were again divided into four Classes, viz., Braahmana (teachers), … Continue reading Arya Invasion an Analysis→
Are even women and Shudraas (low-caste) allowed to study the Vedas? Q- What shall we do if they take to reading? Besides, there is no authority for their doing so. On the other hand, is condemned by the Vedas thus – Shruti “Never should women and the Shoodraas study.” A. ~ All men and women ( i.e., the whole of mankind) have a right to study. You may go and hang yourselves. As for the text you have quoted, it is of you own fabrication, and is no where to be found either in the Vedas or any other authoritative book. On the other hand, here is a verse from the Yajur Veda that authorizes all men to study … Continue reading Are even women and Shudraas (low-caste) allowed to study the Vedas?→
लेखक – स्वामी ओमानंद जी सरस्वती मांस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं हम यह सिद्ध कर चुके हैं कि मानव शरीर की रचना की तुलना मांसाहारी पशुओं की शरीर रचना से करने पर यह भली-भांति पता चलता है कि भगवान् ने मनुष्य का शरीर मांस खाने के लिये नहीं बनाया । इस अध्याय में यह सिद्ध किया जायेगा कि शरीर ही नहीं, किन्तु मनुष्य का स्वभाव भी मांस खाने का नहीं है । संसार में प्रत्यक्ष देखने में आता है कि जितने भी मांसाहारी जीव हैं, चाहे वे स्थलचर, जलचर अथवा नभचर हों, वे सभी अपने शिकार अन्य जीव को बिना चबाये ही निगल जाते हैं और उसे पचा लेते हैं । जैसे जल में रहने वाली मछलियां, … Continue reading मांस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं→
लेखक – स्वामी ओमानंदजी सरस्वती मानव की शरीर रचना और भोजन संसार में अनेक प्रकार के जीव देखने में आते हैं, जिनके भोजनों में विभिन्नता है । ध्यान से देखने पर पता चलता है कि भोजन की विभिन्नता के अनुसार ही उनकी शरीर रचना में भी विभिन्नता है । १. फलाहारी जीव बन्दर, गुरिल्ला आति कन्द फूल ही खाते हैं । १ : इनके दाँत चपटे, एक दूसरे से मिले हुए और उनकी दाढ़ भोजन की पिसाई का कार्य करने योग्य होती है । २ : इनके जबड़े छोटे, तीनों ओर, सब ओर हिल सकने वाले अर्थात् ऊपर-नीचे, दायें-बायें, इधर-उधर हिलने वाले होते हैं । ३ : ये घूंट भरकर जल पीते हैं । ४ : शरीर … Continue reading मानव की शरीर रचना और भोजन→
लेखक – स्वामी ओमानंद्जी सरस्वती मांसाहारी लोगों द्वारा हानि मांसाहारी लोग उपकारी पशु पक्षियों का अपने स्वार्थवश नाश करके जगत् की बड़ी भारी हानि करते हैं । किसी कवि ने एक भजन द्वारा इसका बड़ा अच्छा दिग्दर्शन कराया है । श्री पूज्य स्वामी धर्मानन्द जी महाराज का यह बड़ा प्रिय भजन है । मांसाहार का खण्डन करते हुये वे इसे बहुत प्रेम से उत्सवों में गाया करते हैं यह भजन वैदिक भावनाओं के अनुरूप है । (दोहा) जो गल काटै और का अपना रहै कटाय । साईं के दरबार में बदला कहीं न जाय ॥ मांसाहारी लोगों ने भारत में विघ्न मचा दिये ॥टेक॥ गोमाता सा दुखी ना कोई, घी और दूध कहां से होई । सारा कर्म बलबुद्धि … Continue reading मांसाहारी लोगों द्वारा हानि→
लेखक – स्वामी ओमानंदजी सरस्वती वेद में मांस भक्षण निषेध वैसे तो मानने को वेद, धम्मपद, तौरेत, जबूर, इञ्जील, बाईबल और कुरान सभी धार्मिक ग्रन्थ माने जाते हैं । किन्तु वेद को छोड़कर सब अन्य ग्रन्थ भिन्न-भिन्न मत और सम्प्रदायों के हैं । इन सम्प्रदायों के पुराने से पुराने ग्रन्थ महाभारत काल से पीछे के ही हैं । इन की आयु चार हजार वर्ष से अधिक किसी की भी नहीं है । यथार्थ में ये ग्रन्थ धार्मिक ग्रन्थ की कोटि में नहीं आते । इनको किसी सम्प्रदाय विशेष का ग्रन्थ कहा जा सकता है, फिर भी इनके इन सम्प्रदायों में से भी अधिकतर सम्प्रदायों के ग्रन्थों में मांस भक्षण का निषेध किया है । यथार्थ में सच्चे धर्म का आदि … Continue reading वेद में मांस भक्षण निषेध→
निश्चित सिद्दांत १. किसी भी तत्व में परस्पर विरोधी गुण नहीं होते है | २. किसी एक तत्व का स्वयं पर बिना किसी दुसरे तत्व के परिणाम नहीं होता | ३. किसी भी तत्व को स्वयं के स्वरूप (गुणों) की प्रतीति नहीं होती | ४. जड़ तत्व को स्वयं की या किसी दुसरे तत्व की अनुभूति नहीं होती है ! जिसे अनुभूति होती है वह तत्व चेतन है | ५. जिस वस्तु का सर्वथा अभाव है उस वस्तु का कभी भाव नहीं हो सकता | ६. कोई भी मूल तत्व अपने गुणों (स्वभाव) का त्याग नहीं करता है | ७. कोई भी तत्व अपने स्वाभाविक गुणों (स्वभाव) का त्याग करता है, तो वह … Continue reading निश्चिन्त सिद्धांत→
Among the”great company of remarkable figures that will appear to the eye of posterity at the head of the Indian Renascence, one stands out by himself with peculiar and solitary distinctness, one unique in his type as he is unique in his work. It is as if one were to walk for a long time amid a range of hills rising to a greater or lesser altitude, but all with sweeping contours, green-clad, flattering the eye even in their most bold and striking elevation. But amidst them all, one hill stands apart, piled up in sheer strength, a mass of bare and puissant granite, with verdure on its summit, a solitary pine jutting out into the blue, a great cascade … Continue reading DAYANANDA THE MAN AND His WORK Shri – Aurobindo→
परमात्मा – अर्थात परम याने पूज्यनीय,आत्मा याने सर्वत्र उपलब्ध पूरा अर्थ है, जो पूजने लायक है, उपासना के योग्य है उस जैसा दूसरा कोई नहीं | आत्मा का दूसरा भी अर्थ है – जो सर्वत्र विचरण करता है, यह दोनों ही अर्थ एक दूसरे के विपरीत है और किसी भी एक तत्त्व में विपरीत योग्यता नहीं हो सकती | व्यापक भी होना और विचरण भी करना ऐसा नहीं हो सकता, इसलिए आत्मा दो है – एक आत्मा परमात्मा कहलाता है, जो व्यापक है और दूसरा जीवात्मा कहलाता है जो विचरण करता है जन्म – मृत्यु के द्वारा अनंत जन्मो में और लाखो योनियों में विचरता है | परमात्मा सर्वत्र व्यापक है, उससे रहित यहाँ न कोई वस्तु है, न … Continue reading परमात्मा का स्वरुप→
DAYANANDA accepted the Veda as his rock of firm foundation,he took it for his guiding view of life, his rule of inner existence and his inspiration for external work, but he regarded it as even more, the word of eternal Truth on which man’s knowledge of God and his relations with the Divine Being and with his fellows can be rightly and securely founded. This everlasting rock of the Veda, many assert, has no existence, there is nothing there but the commonest mud and sand; it is only a hymnal of primitive barbarians, only a rude worship of personified natural phenomena, or even less than that, a liturgy of ceremonial sacrifice, half religion, half magic, by which superstitious … Continue reading DAYANANDA AND THE VEDA SH- Aurobindo→