संसार में व्यक्ति को सबसे अधिक दुःख तब होता है, जब कोई प्राप्त वस्तु व्यक्ति से छूटने लगती है। जब प्राप्त वस्तु छूटती या उसमें कोई ह्रास होता है, उसमें कोई कमी आती है, उसमें विकृति पैदा होती है तो व्यक्ति को दुःख होता है। प्रायः व्यक्ति इस दुःख को सहन नहीं कर पाता। योगदर्शन के भाष्यकार महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि समस्त पदार्थों को दो भागों में बाँटा जा सकता है, जड़ और चेतन। इन दोनों प्रकार के पदाथरें से व्यक्ति का सम्पर्क/सम्बन्ध रहता है। जब इनकी बढ़ोत्तरी वृद्धि होती है तो व्यक्ति को अच्छा लगता है और जब दोनों में अवनति होती है, ह्रास होता है तो व्यक्ति को दुःख होता है। वस्तुतः दुनिया में दुःख उसी को … Continue reading दुःख उसी को होता है जो नासमझ होता है। स्वामी विश्वंग→
स्तुता मया वरदा वेदमाता-७ अनुव्रतः पितुः पुत्रो मात्रा भवतु संमनाः। जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम्।। मन्त्र कहता है परिवार में समन्वय का अभाव ही दुःख का कारण है। परिवार विविधता की दृष्टि से अपूर्व इकाई है। इसमें पति-पत्नी समान युवा होने पर भी स्त्री-पुरुष के भेद से नितान्त भिन्न हैं। बच्चे और बूढ़े एक-दूसरे आयुवर्ग से नितान्त भिन्न होते हैं। माता-पिता और बालक सम्बन्ध से सबसे निकट होने पर भी योग्यता सामर्थ्य से शून्य और शिखर का अन्तर रखते हैं। इन सबको मिलाकर एक इकाई बनती है जिसे हम परिवार के रूप में जानते हैं। अधिक समय तक एक साथ समय बिताने वाली इस इकाई में विविधता के कारण समस्याओं की अधिकता तथा विविधता होना स्वाभाविक है। परिवार में … Continue reading परिवार में समन्वय का अभाव ही दुःख का कारण है→
कीर्तिर्यस्य स जीवति-अपार धैर्य के साथ जिनका संघर्षमय जीवन समाज, देश व जाति के लिए व्यतीत हुआ हो, ऐसी आत्माएँ धन्य होती हैं। शरीर से वे इस संसार में न रहते हुए भी उनकी अमर कीर्ति गाथाएँ युगों-युगों तक आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्तम्भ बन जाती हैं। आर्य जगत् दक्षिण भारत के देशभक्तों से भलीभाँति परिचित हैं हैदराबाद स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास को अपने अनोखे शौर्य व बलिदान से अमरता प्रदान करने वाले कई नरवीरों की गाथाएँ भले ही ज्ञात हैं, लेकिन प्रखर धैर्यधुरन्धर आर्य सेनानी, ऋषिभक्त स्वामी स्वात्मानन्द जी (रामचन्द्र जी मन्त्री-बिदरकर) के क्रान्तिकारी जीवन व साहस भरे कार्यों से शायद सभी परिचित नहीं होंगें। पद, प्रतिष्ठा व प्रसिद्धी से कोसों दूर रहकर श्री स्वामी जी ने मातृभूमि … Continue reading देश व जाति के लिये जो जिए….. कृतिशील आर्य सेनानी – स्वामी स्वात्मानन्द – डॉ. नयनकुमार आचार्य→
सारे संसार का उपकार करना अपना भी उद्धार करना है। शारीरिक-आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना ही परोपकार करना है।। सारी सुख-सुविधा और विद्या हमारा कल्याण करती है, छोड़ देना उन्हें तो अपने आप मरना है।। हवा हमने सुवासित की,घरों में यज्ञ करने पर, सुगन्धित घृत जड़ी-बूटी जलाई अग्नि जलने पर। ऋचायें वेद की गाई हृदय में भावना भर ली। जगत कल्याण करने की व्यवस्था सार्थक कर ली। श्रुति की निःसृत वाणी कल्पतरु पुण्य झरना है।। ज्यों सूरज तप्त करके जल सुखाता और उड़ाता है, प्रकाशित कर धरा को प्रदूषण को भगाता है। स्वयं छुप कर हमें विश्राम करने की दे छुट्टी, अन्न फल फूल दे हम को, गरम कर देता है मुट्ठी। हमें भी अपने जीवन में सूरज बन उभरना … Continue reading कविता – सारे संसार का उपकार करना , सत्यदेव प्रसाद आर्य मरुत,→
आचार्य सोमदेव जी ने अपने प्रवचन क्रम में मनुस्मृति का स्वाध्याय कराया। मनु के श्लोकों की धर्म, सदाचार, संस्कृति, चरित्र-निर्माण आदि के अनेक दृष्टान्तों के माध्यम से सरल व्याख्या प्रस्तुत की। अपने दार्शनिक प्रसंग में आपने बताया कि सांसारिक मनःस्थिति और आध्यात्मिक मनःस्थिति में अन्तर होता है। जहाँ सांसारिक स्थिति में जो हम चाहते हैं, प्रायः वैसा होता नहीं है, और जो होता है वह प्रायः हमें भाता नहीं है (अच्छा नहीं लगता है) और यदि संसार में कुछ अच्छा भी लगने लगता है तो वह ज्यादा दिन टिक नहीं पाता- अर्थात् संसार में जो चाहते वह होता नहीं, जो होता है वह हमें भाता नहीं, और जो भाता है वह ठहरता नहीं है। इसके विपरीत आध्यात्मिक स्थिति में जो होने … Continue reading ऋषि दयानन्द के दृष्टान्त :आचार्य सोमदेव जी→
जिज्ञासा– मैं आपसे अपनी ही नहीं अपितु आम व्यक्तियों की जिज्ञासा हेतु कुछ जानना चाहता हूँ। कृपया समाधान कर कृतार्थ करें- (क) तमाम कथावाचक, उपदेशक, साधु व सन्त नरक, स्वर्ग व मोक्ष की बातें करते हैं। आप इन को विस्तृत रूप से समझायें और अपने विचार दें। समाधन– (क) वेद विरुद्ध मत-सम्प्रदायों ने अनेक मिथ्या कल्पना कर, उन कल्पनाओं को जन सामान्य में फैलाकर पूरे समाज को अविद्या अन्धकार में फँसा रखा है, जिससे जगत् में दुःख की ही वृद्धि हो रही है। ये मत-सम्प्रदाय ऊपर से अध्यात्म का आवरण अपने ऊपर डाले हुए मिलते हैं। यथार्थ में देखा जाये तो जो वेद के प्रतिकूल होगा वह अध्यात्म हो ही नहीं सकता। कहने को भले ही कहता रहे। महर्षि दयानन्द … Continue reading नरक, स्वर्ग व मोक्ष क्या हैं ? – आचार्य सोमदेव→
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का प्रभाव केवल धनी-मानी सम्पन्न लोगों एवं राजा महाराजाओं पर ही नहीं पड़ा, अपितु सामान्य लोगों पर भी पड़ा। ‘‘आर्य प्रेमी’’ पत्रिका के फरवरी-मार्च १९६९ के महर्षि श्रद्धाञ्जलि अंक में प्रकाशित आलेख हम पाठकों के लाभार्थ प्रकाशित कर रहे हैं – सम्पादक ‘मेरी अन्त्येष्टि संस्कार विधि के अनुसार हो’ वेदोद्धारक महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जब तीर्थराज पुष्कर पधारते थे तब सुप्रसिद्ध ब्रह्मा जी के मन्दिर में विराजते थे। मन्दिर के महन्त पारस्परिक मतभेदों की उपेक्षा करते हुए संन्यासी मात्र का स्वागत सत्कार करते थे। महर्षि का आसन दक्षिणाभिमुख तिबारे में लगता था और महर्षि इसी तिबारे में विराजकर वेदभाष्य करते थे। सांयकालीन आरती के पश्चात् महर्षि के प्रवचन ब्रह्मा जी के घाट … Continue reading तीर्थराज पुष्कर में महर्षि के प्रचार का प्रभाव→
[विशेष टिप्पणीः-सम्वत् १९२६ (सन् १८६९) का महर्षि का काशी शास्त्रार्थ नवयुग की आहट था। श्रद्धेय लक्ष्मण जी लिखित ऋषि जीवन का अनुवाद तथा सम्पादन करते हुए विनीत तत्कालीन कई पत्रों तथा पुराने स्रोतों के प्रमाणों से युक्त अनेक टिप्पणियाँ देकर गवेषकों, लेखकों व विद्वानों के लाभार्थ पर्याप्त नई जानकारी दी है। ऋषि के विरोधियों तथा अन्य मतावलम्बियों के शास्त्रार्थ विषयक विचार भी ग्रन्थ में उद्धृत किये गये हैं। उस ग्रन्थ पर कार्य करते समय भरसक प्रयत्न व भागदौड़ करने पर भी तब हमें ‘आर्य दर्पण’ मासिक का वह अंक न मिल सका जिसमें यह शास्त्रार्थ छपा था। मेरठ के ऋषि भक्त धर्मपाल के हाथ आर्य दर्पण के कई महत्वपूर्ण अंक लगे परन्तु फरवरी सन् १८८० का वह अंक उन्हें न … Continue reading काशी शास्त्रार्थ का वृत्तान्त – राजेन्द्र जिज्ञासु→
कविता – सत्यदेव प्रसाद आर्य मरुत, सारे संसार का उपकार करना अपना भी उद्धार करना है। शारीरिक-आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना ही परोपकार करना है।। सारी सुख-सुविधा और विद्या हमारा कल्याण करती है, छोड़ देना उन्हें तो अपने आप मरना है।। हवा हमने सुवासित की,घरों में यज्ञ करने पर, सुगन्धित घृत जड़ी-बूटी जलाई अग्नि जलने पर। ऋचायें वेद की गाई हृदय में भावना भर ली। जगत कल्याण करने की व्यवस्था सार्थक कर ली। श्रुति की निःसृत वाणी कल्पतरु पुण्य झरना है।। ज्यों सूरज तप्त करके जल सुखाता और उड़ाता है, प्रकाशित कर धरा को प्रदूषण को भगाता है। स्वयं छुप कर हमें विश्राम करने की दे छुट्टी, अन्न फल फूल दे हम को, गरम कर देता है मुट्ठी। हमें भी … Continue reading सारे संसार का उपकार करना- – सत्यदेव प्रसाद आर्य मरुत,→
आज भाषा मनुष्य के जीवन में काम चलाऊ साधन के रूप में उपयोग में आती है। भाषा के महत्व को आज के वैज्ञानिक और तकनीकी युग में गौण समझ लिया गया है, जबकि मनुष्य का जीवन विचारों पर ही निर्भर करता है। मनुष्य का शरीर जैसे भोजन से बनता है, उसी प्रकार मनुष्य का व्यक्तित्व विचारों से बनता है। विचारों की श्रेष्ठता, गम्भीरता, व्यापकता के लिए भाषा अनिवार्य है। भाषा के बिना चिन्तन, भाषण, लेखन, पठन कुछ भी सम्भव नहीं है। संस्कृत पुरातन काल से विचार व व्यवहार की भाषा रही है, इसलिये उसके पास ज्ञान-विज्ञान का विशाल भण्डार है। इस ज्ञान-विज्ञान तक पहुँचने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान अनिवार्य है। आज विद्याध्ययन जीविकोपार्जन के लिए स्वीकार किया गया … Continue reading संस्कृत भाषा की उन्नति के अवसर प्रो धर्मवीर→