राजपुरुषों का दायित्व -रामनाथ विद्यालंकार ऋषिः वसिष्ठः । देवता बृहस्पतिः। छन्दः भुरिक् पङ्किः। शन्नो भवन्तु वाजिनो हवेषु देवतता मितद्रवः स्वः । जम्भयन्तोऽहिं वृकुरक्षासि सनेम्यस्मद्युयवन्नमवाः ॥ यजु० ९ । १६ हे बृहस्पति राजन् ! ( मितद्रव:१) मपी-तुली गतिवाले, (स्वक:२) शुभ अर्चिवाले (वाजिनः ) वीर राजपुरुष ( देवताता ) यज्ञ में, और ( हवेषु ) संग्रामों में ( नः ) हमारे लिए ( शं भवन्तु ) सुखशान्तिकारी हों। वे ( अहिं ) साँपको, ( वृकं ) भेड़िये को, और (रक्षांसि ) राक्षसों को ( जम्भयन्तः५) विनष्ट करते हुए ( अस्मद् ) हमसे ( सनेमि६ ) शीघ्र ही ( अमीवाः ) रोगों को ( युयवन्) दूर कर देवें । | राजपुरुषों की नियुक्ति उनके पदों पर उन्हें सम्मान देने के लिए या प्रजा … Continue reading राजपुरुषों का दायित्व -रामनाथ विद्यालंकार→
हम पुरोहित राष्ट्र में जागरुक रहें -रामनाथ विद्यालंकार ऋषिः वसिष्ठः । देवता प्रजापतिः । छन्दः स्वराड् आर्षी त्रिष्टुप् । वाजस्येमं प्रसवः सुषुवेऽग्रे सोमराजानमोषधीष्वप्सु ताऽअस्मभ्यं मधुमतीर्भवन्तु वयश्राष्ट्र जागृयाम पुरोहिताः स्वाहा॥ -यजु० ९।२३ | ( वाजस्य ) अन्नादि ऐश्वर्य से भरपूर जगत् के ( प्रसवः ) उत्पत्तिकर्ता प्रजापति ने (अग्रे) सृष्टि के आरम्भ में ( ओषधीषु अप्सु ) ओषधियों और जलों में ( इमं सोमं ) इस सोम ओषधि को ( राजानं ) राजा ( सुषुवे ) बनाया। ( ताः ) वे ओषधियाँ और जल (अस्मभ्यं) हमारे लिए ( मधुमतीः भवन्तु ) मधुमय होवें। ( पुरोहिताः वयं ) पुरोहित हम, अग्रगण्य पद पर स्थित हम ( राष्ट्रे ) राष्ट्र में ( जागृयाम ) जागरूक रहें, ( स्वाहा ) आहुति देने के लिए। … Continue reading हम पुरोहित राष्ट्र में जागरुक रहें -रामनाथ विद्यालंकार→
तुम दाता हो, मुझे भी दो -रामनाथ विद्यालंकार ऋषि: तापसः । देवता अग्निः । छन्दः भुरिग् आर्षी अनुष्टुप् । अग्नेऽअच्छा वदेह नुः प्रति नः सुमना भव। प्र नो यच्छ सहस्रजित् त्वहि धनदाऽअसिस्वाहा। -यजु० ९।२८ ( अग्ने ) हे अग्रनेता तेजस्वी परमात्मन् ! आप (इह ) यहाँ, इस संसार में (नः अच्छ) हमारे प्रति ( वद ) सदुपदेश करते रहो। ( नः प्रति ) हमारे प्रति ( सुमनाः भव) शुभ मनवाले होवो। हे ( सहस्रजित् ) सहस्रों ऐश्वर्यों के विजेता ! आप ( नः प्र यच्छ) हमें ऐश्वर्य देते रहो, ( हि ) क्योंकि ( त्वम् ) आप ( धनदाः असि ) ऐश्वर्यों के प्रदाता हो। (स्वाहा ) हम आपके प्रति आत्मसमर्पण करते हैं। हे ज्योतिर्मय प्रभु ! हमने अपने हृदय … Continue reading तुम दाता हो, मुझे भी दो -रामनाथ विद्यालंकार→
हम नायकों को पुकारते हैं -रामनाथ विद्यालंकार ऋषिः तापसः । देवताः मन्त्रोक्ताः सोमः, अग्निः, आदित्याः, विष्णुः,सूर्यः, ब्रह्म, बृहस्पति: । छन्दः आर्षी अनुष्टुप् । सोमेश्राजानमवसेऽग्निमन्वारभामहेआदित्यान्विष्णुसूर्यं ब्रह्माणं च बृहस्पतिस्वाहा ।।। -यजु० ९ । २६ हम ( अवसे ) रक्षा के लिए ( सोमं राजानम् ) सौम्य तथा ज्योति से राजमाने परब्रह्म को, ( अग्निम्) अग्रनेता तेजस्वी जननायक को, ( आदित्यान्) सूर्यसदृश तेजस्वी वीर सैनिकों को, (विष्णुम्) अपने प्रभाव से सकल राष्ट्र में व्यापक राजा को, ( सूर्यम् ) विद्या और सदाचार के सूर्य उपदेशक को, ( ब्रह्माणम्) यज्ञ के नेता ब्रह्मा को, (बृहस्पतिं च) और वाक्पति आचार्य को (अन्वारभामहे ) स्वीकार करते हैं, ( स्वाहा) इनके प्रति हमारा समर्पण फलदायक हो । हम आत्मरक्षा और आत्मोन्नति के लिए केवल स्वयं पर ही … Continue reading हम नायकों को पुकारते हैं -रामनाथ विद्यालंकार→
राज्याधिकारियों से निवेदन -रामनाथ विद्यालंकार ऋषिः तापसः । देवता मन्त्रोक्ता: । छन्दः भुरिग् आर्षी गायत्री । प्रनों यच्छत्वर्यमा प्रपूषा प्र बृहस्पतिः। प्र वाग्देवी ददातु नः स्वाहा।। -यजु० ९ । २९ | ( अर्थ्यमा ) न्यायाधीश ( नः ) हमें (प्रयच्छतु ) अपनी देन दे। ( प्र पूषा) पुष्टि, पशुपालन और यातायात का मन्त्री अपनी देन दे। ( प्र बृहस्पति:३) शिक्षामन्त्री भी अपनी देन दे। ( वाग् देवी ) दिव्य वेदवाणी भी (नः प्र ददातु ) हमें अपनी देन दे। हम चाहते हैं कि राष्ट्र के सब अधिकारी हमें अपने-अपने अधिकार और सेवा से लाभ पहुँचाएँ।’ अर्यमा’ अपनी देन दे। जो ‘अर्यो’ अर्थात् श्रेष्ठों का मान करता है और अश्रेष्ठों को दण्डित करता है वह न्यायाधीश अर्यमा कहलाता है। उसका कर्तव्य … Continue reading राज्याधिकारियों से निवेदन -रामनाथ विद्यालंकार→
हे प्रभु, यजमान की पुकार सुनो -रामनाथ विद्यालंकार ऋषिः देववातः । देवता अग्निः । छन्दः निवृद् आर्षी अनुष्टुप् । अग्ने सर्हस्व पृतनाऽअभिमतीरपस्य। दुष्टरस्तरन्नरातीर्वचधा यज्ञवहसि ॥ -यजु० ९ । ३७ | ( अग्ने) हे अग्रनायक वर्चस्वी परमात्मन्! आप (पृतना: ) सेनाओं को ( सहस्व ) पराजित करो, ( अभिमाती: ) अभिमानवृत्तियों को ( अपास्य ) दूर करो। ( दुष्टर: ) दुरस्तर आप ( अरातीः३) अदानवृत्तियों को एवं अदानी रिपुओं को ( तरन्) तरते हुए, तिरस्कृत करते हुए ( यज्ञवाहसि) यज्ञवाहक यजमान के अन्दर ( वर्चः धाः५) वर्चस्विता को धारण करो। हे परमेश्वर ! आप अग्रनायक और जलती आग के समान जाज्वल्यमान, तेजस्वी, वर्चस्वी होने के कारण ‘अग्नि’ कहलाते हो। आप अपनी ज्वाला से मुझे भी प्रज्वलित कर दो। मुझे ऐसा बना … Continue reading हे प्रभु, यजमान की पुकार सुनो -रामनाथ विद्यालंकार→
नवनिर्वाचित राजा का अभिषेक -रामनाथ विद्यालंकार ऋषिः वरुणः । देवता क्षत्रपति: । छन्दः आर्षी पङ्किः। सोमस्य त्वा द्युम्नेनाभिषिञ्चाम्यग्नेजसा सूर्यस्य वर्चसेन्द्र स्येन्द्रियेण क्षत्राणी क्षत्रपतिरेध्यति दिद्यून् पहि ॥ -यजु० १० । १७ हे नवनिर्वाचित राजन् ! ( सोमस्य द्युम्नेन ) सोम के यश से ( त्वी अभिषिञ्चामि ) तुझे अभिषिक्त करता हूँ, ( अग्नेः भ्राजसा ) अग्नि के तेज से, ( सूर्यस्य वर्चसा ) सूर्य के वर्चस् से, (इन्द्रस्य इन्द्रियेण ) इन्द्र के इन्द्रत्व से । तू ( क्षत्राणां क्षत्रपतिः) क्षात्रकुलोत्पन्नों का क्षत्रपति ( एधि) हो। ( दिद्युन् अति ) मारक शास्त्रास्त्रों को विफल करके, तू ( पाहि ) राष्ट्र की रक्षा कर।। हे क्षत्रियश्रेष्ठ! आप मतदाताओं द्वारा बहुसम्मति से राष्ट्र के राजा निर्वाचित हुए हैं। इस अवसर पर हम राष्ट्रवासियों की … Continue reading नवनिर्वाचित राजा का अभिषेक -रामनाथ विद्यालंकार→
बादलों में ऊपर-नीचे चलनेवाले विमान-रामनाथ विद्यालंकार ऋषिः देववातः । देवता नावः । छन्दः विराड् ब्राह्मी त्रिष्टुप् । प्र पर्वतस्य वृषभस्य पृष्ठान्नावश्चरन्ति स्वसिचऽइयानाः । ताऽआर्ववृत्रन्नधुरागुक्ताऽअहिं बुध्न्युमनुरीयमाणाः । विष्णोर्विक्रमणमसि विष्णोर्विक्रान्तमसि विष्णोः क्रान्तमसि॥ -यजु० १० । १९ ( वृषभस्य) वर्षा करनेवाले ( पर्वतस्य ) मेघ’ के ( पृष्ठात् ) पृष्ठ से ( स्वसिचः) स्वयं को मेघजल से सिक्त करनेवाली ( इयानाः३ ) गतिशील, वेगवती (नावः ) विमान रूपिणी नौकाएँ ( चरन्ति ) चलती हैं । ( ताः ) वे ( बुध्न्यम् अहिम् अनु रीयमाणाः५) अन्तरिक्षवर्ती मेघ में गति करती हुई ( अधराक् उदक्ताः ) नीचे से ऊपर जाती हुई (आववृत्रन्६ ) चक्कर काटती हैं। हे विमानरूप नौका की उड़ान ! तू (विष्णोःविक्रमणम् असि ) सूर्य का विक्रमण है, सूर्य की यात्रा के समान … Continue reading बादलों में ऊपर-नीचे चलनेवाले विमान -रामनाथ विद्यालंकार→
निर्वाचित राजा की यज्ञाहुतियाँ -रामनाथ विद्यालंकार ऋषिः देवरातः । देवता अग्न्यादयो मन्त्रोक्ताः । छन्दः आर्षी जगती । अग्नये गृहपतये स्वाहा सोमय् वनस्पतये स्वाहा मुरुतमोजसे स्वाहेन्द्रस्येन्द्रियाय स्वाहा । पृथिवि मातुर्मा मा हिसीर्मोऽअहं त्वाम् ॥ -यजु० १० । २३ राज्याभिषेक के समय नवनिर्वाचित राजा आहुतियाँ दे रहा है—(अग्नयेगृहपतयेस्वाहा) गृहपति अग्नि के लिए आहुति हो। ( सोमाय वनस्पतयेस्वाहा) सोम वनस्पति के लिए आहुति हो। ( मरुताम् ओजसे स्वाहा ) सैनिकों के ओज के लिए आहुति हो। ( इन्द्रस्य इन्द्रियाय स्वाहा ) इन्द्र के इन्द्रत्व के लिए आहुति हो। ( पृथिवी मातः ) हे पृथिवी माता ! ( मा मा हिंसीः ) तू मेरी हिंसा न करना, ( मो अहं त्वाम् ) न मैं तेरी हिंसा करूंगा। मुझे आप प्रजाजनों ने राजा के पद … Continue reading निर्वाचित राजा की यज्ञाहुतियाँ -रामनाथ विद्यालंकार→
राजपत्नी के प्रति -रामनाथ विद्यालंकार ऋषिः वामदेवः। देवता राजपत्नी। छन्दः भुरिग् आर्षी अनुष्टुप् । स्योनासि सुषदसि क्षेत्रस्य योर्निरसि स्यनामासद सुषदमासीद क्षत्रस्य योनिमासीद॥ -यजु० १० । २६ हे राजपत्नी! तू वेद की दृष्टि में (स्योना असि) सुखदायिनी है, ( सुषदा असि ) शोभन व्यवहार में स्थित है, ( क्षत्रस्य योनिः असि ) क्षात्रबल, राजन्याय तथा राजनीति का केन्द्र है, अत: (स्योनाम् ) सुखदान की विद्या को ( आसीद ) प्राप्त कर, ( सुषदाम् ) शोभन व्यवहार की विद्या को ( आसीद) प्राप्त कर, ( क्षत्रस्य योनिम् ) क्षात्रबल, राजन्याय तथा राजनीति की विद्या को ( आसीद) प्राप्त कर । हे राजपत्नी! आज आपके पति को प्रजा ने राजा के रूप में निर्वाचित किया है। राज्यसञ्चालन में राजपत्नी के भी कुछ कर्तव्य … Continue reading राजपत्नी के प्रति -रामनाथ विद्यालंकार→