मुसलमान बड़े मूर्तिपूजक

masjid

मुसलमान बड़े मूर्तिपूजक

-निश्चय हम तेरे मुख को आसमान में फिरता देखते हैं अवश्य हम तुझे उस कि़बले को फेरेंगे कि पसन्द करे उसको, बस अपना मुख मस्जि दुल्हराम की ओर फेर, जहाँ कहीं तुम हो अपना मुख उसकी ओर फेर लो।। मं0 1। सि0 2। सू02। आ0 1443

समी0 -क्या यह छोटी बुत्परस्ती है? नहीं, बड़ी।

पूर्वपक्षी-हम मुसलमान लोग बुत्परस्त नहीं हैं।किन्तु,बुत्शिकन अर्थात् मुर्तों को तोड़नेहारे है, क्योंकि हम कि़बले को खुदा नहीं समझते।

उत्तरपक्षी-जिनको तुम बुत्परस्त समझते हो,वे भी उन उनमुर्तों को ईश्वर नहीं समझते किन्तु उनके सामने परमेश्वर की भक्ति करते हैं। यदि बुतों के तोड़ने हारे हो तो उस मस्जिद कि़बले बड़े बुत को क्यों न तोड़ा?

पूर्वपक्षी-वाह जी! हमारे तो कि़बले की ओर मुख फेरने का कुरान में हुक्म है और इनको वेद में नहीं है फिर वे बुत्परस्त क्यों नहीं ? और हम क्यों ? क्योंकि हमको खुदा का हुक्म बजाना अवश्य है।

उत्तरपक्षी- जैसे तुम्हारे लिये क़ुरान में हुक्म है, वैसे इनके लिये पुराण में आज्ञा है। जैसे तुम क़ुरान को खुदा का कलाम समझते हो, वैसे पुराणी भी पुराणों को खुदा के अवतार व्यासजी का वचन समझते हैं। तुममें और इनमें बुत्परस्ती का कुछ भिन्न भाव नहीं है | प्रत्युत,तुम बड़े बुत्परस्त और ये छोटे हैं | क्योंकि, जब तक कोई मनुष्य अपने घर में से प्रविष्ट हुई बिल्ली को निकालने लगे तब तक उसके घर में ऊंट प्रविष्ट हो जाय,वैसे ही मुहम्मद साहेब ने छोटे बुत् को मुसलमानों के मत से निकाला,परन्तु बड़ा बुत् जो कि पहाड़ के सदृश मक्के की मस्जिद है, वह सब मुसलमानों के मत में प्रविष्ट करा दी, क्या यह छोटी बुत्परस्ती है ? हाँ, जो हम लोग वैदिक हैं, वैसे ही तुम लोग भी वैदिक हो जाओ तो बुत्परस्ती आदि बुराइयोंसे बच सको, अन्यथा नहीं | तुमको, जब तक अपनी बड़ी बुत्परस्ती को न निकाल दो, तब तक दूसरे छोटे बुत्परस्तों के खण्डन से लज्जित हो के निवृत रहना चाहिये और अपने को बुत्परस्ती से पृथक् करके पवित्र करना चाहिये |

-जब हमने लोगों के लिये काबे को पवित्र स्थान सुख देने वाला बनाया तुम नमाज़ के लिये इबराहीम के स्थान को पकड़ो।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 1251

समी0 -क्या काबे के पहिले पवित्र स्थान खुदा ने कोई भी न बनाया था ? जो बनाया था तो काबे के बनाने की कुछ आवश्यकता न थी, जो नहीं बनाया था तो विचारे पूर्वोत्पन्नों को पवित्र स्थान के बिना ही रक्खा था ? पहिले ईश्वर को पवित्र स्थान बनाने का स्मरण न हुआ होगा |

-वो कौन मनुष्य है जो इबराहीम के दीन से फिर जावे परन्तु जिसने अपनी जान को मूर्ख बनाया और निश्चय हमने दुनियां में उसी को पसन्द किया और निश्चय आख़रत में वो ही नेक है।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 1302

समी0 -यह कैसे सम्भव है कि इबराहीम के दीन को नहीं मानते वे सब मूर्ख हैं ? इबराहीम को ही खुदा ने पसन्द किया, इसका क्या कारण है ? यदि धर्मात्मा होने के कारण से किया तो धर्मात्मा और भी बहुत हो सकते हैं ? यदि बिना धर्मात्मा होने के ही पसन्द किया तो अन्याय हुआ। हां, यह तो ठीक है कि जो धर्मात्मा है,वही ईश्वर को प्रिय होता है, अधर्मी नहीं |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *