मुहम्मद की आखि़री वसीयत
एक जुमेरात को जब उनकी बीमारी भयानक हो उठी, तो मुहम्मद ने कहा-“मैं तीन बातों के बारे में वसीयत करता हूं। बहुदेववादियों को अरब के इलाक़े से निकाल बाहर करो, विदेशी प्रतिनिधियों की वैसी ही मेज़बानी करो जैसी मैं करता रहा हूं।“ तीसरी बात हदीस सुनाने वाला भूल गया (4014)।
मुहम्मद अपने आखि़री क्षणों में एक वसीयत भी लिखना चाहते थे। उन्होंने लिखने के उपकरण मांगते हुए कहा-“आओ, मैं तुम्हारे लिए एक दस्तावेज लिख जाता हूं। उसके बाद तुम गुमराह नहीं होंगे।“ लेकिन उमर ने, जो वहां मौजूद थे, कहा कि लोगों के पास कुरान पहले से ही है। उमर ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ”अल्लाह की किताब हमारे लिए काफ़ी है“, और मुहम्मद को उस नाजुक हालत में परेशान नहीं करना चाहिए। जब उनके बिस्तर के इर्द-गिर्द एकत्र लोग आपस में वाद-विवाद करने लगे तो मुहम्मद ने उनसे कहा-”उठो और बाहर चले जाओ“ (4016)।
मुमकिन है कि उमर मृतप्राय व्यक्ति के प्रति सच्ची संवेदना से भर उठे हों। लेकिन बाद में अली के समर्थकों ने दावा किया कि मुहम्मद अपनी आखिरी वसीयत में अली को अपना वारिस बनाना चाहते थे और उमर ने अबू बकर से सांठ-गांठ करके एक गंदी चाल द्वारा उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
author : ram swarup
Very nice post मुहम्मद की आखि़री वसीयत