मासिक धर्म (हैज़)
तीसरी किताब मासिक धर्म पर है। इस किताब और पूर्वचर्चित किताब के विषय मिलते-जुलते हैं, क्योंकि दोनों का सम्बन्ध कर्मकांडी शुद्धता से है। इसीलिए दोनों का मिलान अपरिहार्य है। वस्तुतः इस अध्याय में ठेठ मासिक धर्म पर कुछ अधिक नहीं कहा गया है, वरन् मैथुन के उपरान्त कर्मकाण्डी प्रक्षालन एवं स्नान पर ही विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
मासिक धर्म के मुद्दे पर, मुहम्मद का व्यवहार, कुछ मामलों में कुरान के इलहाम में निहित निर्देशों से भिन्न दिखता है। कुरान में इस विषय पर तीखी भाषा का प्रयोग है-”वे तुमसे स्त्री के हैज़ के बारे में पूछते हैं। उनसे कहो-यह घाव है और प्रदूषण है। इसलिए उस वक्त औरतों से दूर रहो और जब तक वे पाक-साफ न हो जाएं उनसे मुलाकात मत करो“ (2/222)।
यहां मुलाकात से मतलब शायद मैथुन से है, क्योंकि मैथुन के अतिरिक्त अन्य सभी सम्पर्कों की पैगम्बर ने अनुमति दी है। मैमूना हमें बतलाती हैं-”जब मैं रजस्वला रहती थी तब भी अल्लाह के पैगम्बर मेरे साथ सोते थे और मेरे और उनके बीच एक कपड़ा होता था“ (580)। उम्म सलमा भी ऐसा ही बतलाती हैं (581)। आयशा कहती हैं-”जब हममें से कोई रजस्वला होती, तो अल्लाह के पैगम्बर उसको कटि-वस्त्र लपेटने के लिए कहते और तब उसे आलिंगन में भर लेते“ (577)।
अन्य हदीसों में भी यही बात कही गई है। उनसे पैगम्बर की नितांत निजी आदतों पर दिलचस्प रोशनी पड़ती है। आयशा बतलाती हैं-”जब मैं रजस्वला होती थी, अल्लाह के पैगम्बर मेरी गोद में लेट जाते थे और कुरान का पाठ करते थे“ (591)। स्वाध्याय या धर्मग्रंथ पढ़ने के लिए यह स्थान कम जंचता है। फ्रायड द्वारा बतायी गयी यौन-अभिव्यंजना के अनुरूप, आयशा यह भी बतलाती हैं-”रजोकाल में मैं कुछ पीती हूँ और पात्र पैगम्बर को दे देती हूँ तब वे उस पात्र में वहीं पर मुंह लगाते हैं जहां मैंने लगाया था। और मैं रजोकाल में हड्डी पर लगा गोश्त खाती हूँ तथा उसे पैगम्बर को दे देती हूँ और वे उस पर वहीं मुंह लगाते हैं जहां मेरा मुंह था“ (590)।
पैगम्बर आयशा को रजोकाल में बालों में कंघी करने की अनुमति भी देते हैं और वे एतिकाफ करने के भी खिलाफ हैं। एतिकाफ का अर्थ है रमजान के महीने में कुछ दिनों के लिए, खासकर आखिरी दस रोज के लिए, मस्जिद में अलग रहना। आयशा बतलाती हैं-”अल्लाह के रसूल एतिकाफ़ के दौरान अपना सिर मस्जिद में से मेरी तरफ निकाल देते हैं (मेरा कमरा मस्जिद की ओर खुलता है) और मैं रजास्वला होती हुई भी उनका सिर धोती हूँ“ (584)।
यह आचार यहूदी आचार से उल्टा था। यहूदियों के यहां रजोधर्म की अवधि में न केवल समागम निषिद्ध है, अपितु चुम्बन तथा शारीरिक सम्पर्क के अन्य प्रकार भी वर्जित हैं। कुछ मुसलमान यहूदी आचार के विरोध में पूरी तरह विपरीत आचार चाहते थे और उन्होंने मुहम्मद को सुझाव दिया कि रजःस्राव के दौरान मैथुन की अनुमति दी जाए। किन्तु मोहम्मद उतनी दूर तक नहीं गए।
author : ram swarup