(ज्येष्ठः यवीयसः भार्याम्) बड़ा भाई छोटे भाई की स्त्री के साथ और (यवीयान् + अग्रज-स्त्रियम्) छोटा भाई बड़े भाई की स्त्री के साथ (अनापदि) आपत्तिकाल (=सन्तानाभाव) के बिना (नियुक्तौ + अपि गत्वा) नियोग-विधिपूर्वक भी यदि संभोग करें तो वे (पतितौ भवतः) पतित माने जाते हैं ।
“मनुजी ने लिखा है कि (सपिण्ड) अर्थात् पति की छः पीढ़ियों में पति का छोटा वा बड़ा भाई अथवा स्वजातीय तथा अपने स् उत्तम जातिस्थ पुरुष से विधवा स्त्री का नियोग होना चाहिये । परन्तु जो वह मृतस्त्री पुरुष और विधवा स्त्री सन्तानोत्पत्ति की इच्छा करती हो तो नियोग होना उचित है । और जब सन्तान का सर्वथा क्षय हो तब नियोग होवे । जो आपत्काल अर्थात् सन्तानों के होने की इच्छा न होने में बड़े भाई की स्त्री से छोटे का और छोटे की स्त्री से बड़े भाई का नियोग होकर सन्तानोत्पति हो जाने पर भी पुनः वे नियुक्त आपस में समागम करें तो पतित हो जायें । अर्थात् एक नियोग मे दूसरे पुत्र के गर्भ रहने तक नियोग की अवधि है, इसके पश्चात् समागम न करे ।”