जो संन्यासी यथार्थज्ञान वा षड्दर्शनों से युक्त हैं वह दुष्टकर्मों से बद्ध नहीं होता और जो ज्ञान, विद्या, योगाभ्यास सत्संग, धर्मानुष्ठान वा षड्दर्शनों से रहित विज्ञान हीन होकर सन्यास लेता है वह संन्यास पदवी और मोक्ष को प्राप्त न हो कर जन्म – मरण रूप संसार को प्राप्त होता है ।
(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)