यद्यत्परवशं कर्म तत्तद्यत्नेन वर्जयेत् । यद्यदात्मवशं तु स्यात्तत्तत्सेवेत यत्नतः ।

मनुष्य जो पराधीन कर्म हो उस – उस को प्रयत्न से सदा छोड़े और जो – जो स्वाधीन कर्म हो उस – उस का सेवन प्रयत्न से किया करे ।

(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)

‘‘जो – जो पराधीन कर्म हो उस – उस का प्रयत्न से त्याग और जो – जो स्वाधीन कर्म हो उस – उस का प्रयत्न के साथ सेवन करे ।’’

(स० प्र० चतुर्थ समु०

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *