. जो पुरूष स्त्री को प्रसन्न नहीं करता तो उस स्त्री के अप्रसन्न रहने में सब कुल भर अप्रसन्न, शोकातुर रहता है और जब पुरूष में स्त्री प्रसन्न रहती है तब सब कुल आनन्दरूप दीखता है ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
‘‘स्त्री की प्रसन्नता में सब कुल प्रसन्न होता है उसकी अप्रसन्नता में सब अप्रसन्न अर्थात् दुःखदायक हो जाता है ।’’
(स० प्र० चतुर्थ समु०)