पिता, भ्राता, पति और देवर को योग्य है कि अपनी कन्या, बहन, स्त्री और भौजाई आदि स्त्रियों की सदा पूजा करें अर्थात् यथायोग्य मधुरभाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रक्खें जिन को कल्याण की इच्छा हो वे स्त्रियों को क्लेश कभी न देवें ।
(सं० वि० गृहाश्रम)