युग्म अर्थात् सनसंख्या की रात्रियों – छठी, आठवीं, दसवीं, द्वादशी, चतुर्दशी, षोडशी में समागम करने से पुत्र उत्पन्न होते हैं विषम संख्या वाली अर्थात् पांचवीं, सातवीं, नवमी, पन्द्रहवीं रात्रियों में लड़की उत्पन्न होती है इसलिए पुत्र की इच्छा रखने वाला पुरूष ऋतुकाल में समरात्रियों में स्त्री से समागम करे ।
‘‘जिनको पुत्र की इच्छा हो वे छठी, आठवीं, दसमी, बारहवीं, चैदहवीं, और सोलहवीं, ये छः रात्रि ऋतुदान में उत्तम जानें । परन्तु इनमें भी उत्तर – उत्तर श्रेष्ठ हैं और जिनको कन्या की इच्छा हो वे पांचवीं, सातवीं, नवमीं और पन्द्रहवीं ये चार रात्रि उत्तम समझें । इससे पुत्रार्थी युग्म रात्रियों में ऋतुदान देवे ।’’
(स० वि० गर्भाधान सं०)