यो यदैषां गुणो देहे साकल्येनातिरिच्यते । स तदा तद्गुणप्रायं तं करोति शरीरिणम्

जो गुण इन जीवों के देह में अधिकता से वर्तता है वह गुण उस जीव को अपने सदृश कर लेता है । (स. प्र. नवम समु.)

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