अर्थकामेष्वसक्तानां धर्मज्ञानं विधीयते । धर्मं जिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः ।

अर्थकामेषु असक्तानाम् जो पुरूष अर्थ – सुवर्णादि रत्न और काम – स्त्रीसेवनादि में नहीं फंसते हैं धर्मज्ञानं विधीयते उन्हीं को धर्म का ज्ञान होता है धर्मं जिज्ञासमानानाम् जो धर्म के ज्ञान की इच्छा करें, वे प्रमाणं परमं श्रुतिः वेद द्वारा धर्म का निश्चय करें , क्यों कि धर्म – अधर्म का निश्चय बिना वेद के ठीक – ठीक नहीं होता ।

(स० प्र० तृतीय समु०)

‘‘परन्तु जो द्रव्यों के लोभ और काम अर्थात् विषय – सेवा में फंसा हुआ नहीं होता, उसी को धर्म का ज्ञान होता है । जो धर्म को जानने की इच्छा करें उनके लिए वेद ही परम प्रमाण है ।’’

(स० प्र० दशम समु०)

‘‘धर्मशास्त्र में कहा है कि – अर्थ और काम में जो आसक्त नहीं, उनके लिये धर्मज्ञान का विधान है ।’’

(द० ल० वे० ख० ६)

‘‘जो मनुष्य सांसारिक विषयों में फंसे हुए हैं उन्हें धर्म का ज्ञान नहीं हो सकता । धर्म के जिज्ञासुओं के लिए परम प्रमाण वेद है ।’’

(पू० प्र० १०५)

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