यः द्विजः जो कोई मनुष्य ते मूले वेद और वेदानुकूल आप्तग्रन्थों का हेतुशास्त्राश्रयात् तर्कशास्त्र के आश्रय से अवमन्येत अपमान करे सः उसको साधुभिः बहिष्कार्यः श्रेष्ठ लोग जातिबाह्य कर दें, क्यों कि वेदनिन्दकः जो वेद की निन्दा करता है नास्तिकः वही नास्तिक कहाता है ।
(स० प्र० दशम समु०)
‘‘जो तर्कशास्त्र के आश्रय से वेद और धर्मशास्त्र का अपमान करता अर्थात् वेद से विरूद्ध स्वार्थ का आचरण करता है, श्रेष्ठ पुरूषों को योग्य है कि उसको अपनी मण्डली से निकाल के बाहर कर देवें क्यों कि वह वेदनिन्दक होने से नास्तिक है ।’’
(द० ल० वे० ख० ४८)
‘‘जो वेद और वेदानुकूल आप्त पुरूषों के किये शास्त्रों का अपमान करता है, उस वेदनिन्दक नास्तिक को जाति, पंक्ति और देश से बाह्य कर देना चाहिये ।’’
(स० प्र० तृतीय समु०)