श्रुतिः तु वेदः विज्ञेयः श्रुति को वेद समझना चाहिए, और धर्म – शास्त्रं तु वै स्मृतिः धर्मशास्त्र को स्मृति समझना चाहिए ते ये श्रुति और स्मृति शास्त्र सर्वार्थेषु सब बातों में अमीमांस्ये तर्क न करने योग्य हैं अर्थात् इनमें प्रतिपादित बातों का तर्क के द्वारा खण्डन नहीं करना चाहिए हि क्यों कि ताभ्याम् उन दोनों प्रकार के शास्त्रों से धर्मः धर्म निर्बभौ उत्पन्न हुआ है ।