सर्वं तु समवेक्ष्येदं निखिलं ज्ञानचक्षुषा । श्रुतिप्रामाण्यतो विद्वान्स्वधर्मे निविशेत वै ।

(विद्वान्) मनुष्य (इदं सर्वं तु निखिलं समवेक्ष्य) सम्पूर्ण शास्त्र वेद, सत्पुरूषों का आचार, अपने आत्मा के अविरूद्ध विचार कर (१।१२५ में वर्णित) ज्ञानचक्षुषा ज्ञान नेत्र करके श्रुतिप्रामाण्यतः श्रुतिप्रमाण से स्वधर्म वै निविशेत स्वात्मानुकूल धर्म में प्रवेश करे ।

(स० प्र० दशम समु०)

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