एक से अधिक लोगों ने यह प्रश्न पूछा है कि आपने ऋषि जीवन में माई भगवती जी को माई लिखा है। हमने औराी कई लेखों में ऐसा ही पढ़ा है परन्तु दयानन्द संदेश दिल्ली में किसी ने उसे ‘लड़की’ लिखा है। वह ‘हरियाणा’ ग्राम की थी परन्तु उस लेखक ने उसके ठिकाने का भी कुछ और ही नाम लिखा है। यथार्थ इतिहास क्या है?
हमारी विनीत विनती तो यही है कि हमने जो कुछ भी लिखा है इतिहास की प्रमाणिक सामग्री के प्रमाण देकर लिखा है। ‘प्रकाश’ जैसे प्रतिष्ठित पत्र की फाईल देाकर समाचार का स्कैनिंग करवाकर दिया है। स्वामी श्रद्धानन्द जी उसे माई जी लिखते हैं। अब दिल्ली राजधानी का कोई रिसर्च स्कालर अपनी रिसर्च का चमत्कार दिखा दे तो उसकी मनोकामना को पूरा करने में हम क्यों बाधक बनें। माई जी विधवा साध्वी थी। लड़की नहीं थी। इतिहास का मुँह चिढ़ाने से क्या लाभ? आर्य समाज का दुर्भाग्य जो इतिहास प्रदूषण की फैक्टरियाँ धड़ाधड़ गप्पें सप्लाई कर रही हैं। गुरुमुख हार गया, जग जीता। हम अपनी हार स्वीकार करते हैं।
सबसे बड़ी प्रामाणिक विषय सूची? यशस्वी विद्वान् लेखक तथा विचारक श्रीयुत सत्येन्द्रसिंह जी आर्य ने एक गभीर चिन्ताछोड़कर पं. भगवद्दत्त जी द्वारा सपादित सत्यार्थप्रकाश की विस्तृत विषय सूची की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘ऐसी सूची पण्डित जी की कोटि काविद्वान् ही बना सकता है। यह अति कठिन कार्य सबके बस की बात नहीं है।’’
यह सुनकर इस सेवक ने उन्हें बताया कि यह सूची पण्डित जी ने नहीं बनाई थी। यह कठिन कार्य श्री विजय कुमार आर्य जी (श्री अजय आर्य के पिताजी) की श्रद्धा व पुरुषार्थ का फल है। वह यह सुनकर दंग रह गये। तब उन्हें बताया गया कि विजय जी ने अपना नाम नहीं दिया था।हम ऐसे ही विचार विमर्श कर रहे थे कि विजय जी ने स्वयं हमें यह जानकारी दी थी । यह घटना हमने किसी पुस्तक में कभी दी भी थी। पण्डित जी के जीवन काल में हमें इसकी पूरी जानकारी थी।
तब श्री सत्येन्द्र जी को बताया कि सत्यार्थप्रकाश की प्रथम, प्रामाणिक और विस्तृत विषय-सूची लाहौर के दृढ़ आर्य डाक्टर देवकीनन्दन जी ने कभी बनाई थी। सत्यार्थप्रकाश के प्रथम उर्दू अनुवाद में इसे पढ़कर व्यक्ति दंग रह जाता है। अब तो पं. उदयवीर जी शास्त्री की कोटि के विद्वान् ने उससे भी कहीं आगे की विषय सूची बना दी है।