राजनेताओं की धार्मिकता व भक्ति भावना देख-देख कर आश्चर्य होता है। लोकसभा के चुनाव के दिनों काशी में गंगा स्नान और गंगा जी की आरती की प्रतियोगिता देखी गई। केजरीवाल भी धर्मात्मा बनकर साथियों सहित गंगा में डुबकियाँ लगाते हुए मोदी को गंगा की आरती में सम्मिलित होने के लिए ललकार रहा था। अजमेर की कबर-यात्रा पर एक-एक करके कई नेता पहुँचे। चुनाव समाप्त होते ही दिग्विजय के गुरु स्वरूपानन्द जी ने साई बाबा भगवान् का विवाद छेड़ दिया। सन्तों का सम्मेलन होने लगा। स्वरूपानन्द जी संघ परिवार विरोधी माने जाते हैं। इन्हें हिन्दू हितों का ध्यान आ गया। हिन्दुओं को जोड़ने व हिन्दुओं की रक्षा के लिए कभी कोई आन्दोलन छेड़ा?
क्या ब्राह्मणेतर कुल में जन्मे किसी व्यक्ति को अपना उत्तराधिकारी बनाने का साहस आप में है? क्या दलित वर्ग में जन्मे किसी भक्त से जल लेकर आचमन कर सकते हैं?
हिन्दुओं के कितने भगवान् हैं? यह उमा जी ने चर्चा छेड़ी है। संघ परिवार को और स्वरूपानन्द जी को हिन्दुओं के भगवानों की अपनी-अपनी सूची जारी करनी चाहिये। यह भी बताना होगा कि भगवान् एक है या अनेक? भगवानों की संख्या निश्चित है या घटती-बढ़ती रहती है। अमरनाथ यात्रा वाले अब लिंग की बजाय ‘बर्फानी बाबा’ का शोर मचाने लगे हैं। यात्री बम-बम भोले रटते हुए ‘ऊपर वाले’ की दुहाई देते हैं। क्या भगवान् सर्वत्र नहीं? ऊपर ही है? यह संघ व स्वरूपानन्द जी को स्पष्ट करना चाहिये। अमरनाथ यात्री टी.वी. में बता रहे थे कि ऊपर वाले की कृपा से हमें कुछ नहीं होगा। यदि भगवान् ऊपर ही है तो ‘ईशावास्य’ यह ऋचा ही मिथ्या हो गई। प्रभु कण-कण में है- यह मान्यता निरर्थक हो गई। हिन्दुओं को हिन्दू साधु, आचार्य, सन्त भ्रमित कर रहे हैं। धर्म रक्षा व धर्म प्रचार कैसे हो? एकता का कोई सूत्र तो हो।
मन्नतें पूरी होती हैंः– साई बाबा विवाद में उमा जी ने यह भी कहा है कि अनेक भक्तों की मन्नतें साई बाबा ने पूरी कीं। मन्नतें पूरी करने वाले देश में सैकड़ों ठिकाने हैं। उमा जी जैसे भक्तों को राम मन्दिर निर्माण, कश्मीर के हिन्दुओं का पुनर्वास, धारा ३७०, निर्धनता निवारण, आतंकवाद से छुटकारे के लिए मन्नत माँग कर देश में सुख चैन का युग लाना चाहिए।
मन्नतों का अन्धविश्वास फैलाकर देश को डुबोया जा रहा है। केदारनाथ, बद्रीनाथ यात्रा की त्रासदी को कौन भूल सकता है? मन्नतें माँगने गये सैकड़ों भक्त जीवित घरों को नहीं लौटे। कई भगवान् बाढ़ में बह गये। इससे क्या सीखा? आँखें फिर भी न खुलीं।
भावुकता से अन्धे होकरः– जामपुर (पश्चिमी पंजाब) में एक आर्य कन्या ने आर्यसमाज के सत्संग में एक कविता सुनाई। उसकी एक पंक्ति थी-
मेरी मिट्टी से बूये वफ़ा आयेगी।
अर्थात् मरने के पश्चात् मेरी कबर से निष्ठा की गन्ध आयेगी। पं. चमूपति जी ने वहीं बोलते हुए कहा, क्या शिक्षा दे रहे हो? क्या मेरी यह पुत्री मुसलमान के रूप में मरना चाहती है? चिता की, दाहकर्म की बजाय कबर की बात जो कर रही है। बोलते और लिखते समय अन्धविश्वास तथा भ्रामक विचार फैलाने से बचने के लिए सद्ग्रन्थों के आधार पर ही कुछ लिखना-बोलना चाहिए।
आर्यसमाज की हानिः– संघ का गुरु दक्षिणा उत्सव था। संघ वाले स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी के पास अपने कार्यक्रम की अध्यक्षता करने का प्रस्ताव लेकर आये। लोकैषणा से कोसों दूर महाराज ने यह कहकर उनकी विनती ठुकरा दी कि इसमें आर्यसमाज की हानि है।
उन्होंने पूछा, ‘क्या हानि है?’
स्वामी जी ने कहा, ‘मेरी अध्यक्षता में आप जड़ पूजा करेंगे। झण्डे को गुरु मानकर दक्षिणा चढ़ायेंगे, इससे आर्यसमाज में क्या सन्देश जायेगा?’
आर्यसमाज अपनी मर्यादा, अपने इतिहास को भूलकर योगेश्वर नामधारी थोथेश्वरों को अपना पथ प्रदर्शक मानकर भटक रहा है। एक योग गुरु ने मिर्जापुर में मजार पर चादर चढ़ाई। कोई गंगा की आरती उतार रहा है तो कोई म.प्र. जाकर मूर्ति पर जल चढ़ा रहा है।
ऋषि ने लिखा है, उसी की उपासना करनी योग्य है। यही वेदादेश है।