केवल अल्लाह को मान लेना ही काफी नहीं। साथ ही मुहम्मद को अल्लाह का रसूल मानना भी जरूरी है। रबिया कबीले का एक प्रतिनिधि-मण्डल मुहम्मद के पास आता है। मुहम्मद उस मण्डल से कहते हैं-”मैं आदेश देता हूँ कि तुम लोग केवल अल्लाह पर आस्था जमाओ।“ फिर मुहम्मद उन लोगों से पूछते हैं-”क्या तुम जानते हो कि अल्लाह पर आस्था रखने का सही अर्थ क्या है ?“ और मुहम्मद अपने-आप ही प्रश्न का उत्तर देते हैं-”इसका अर्थ है इस सत्य की गवाही देना कि अल्लाह के सिवाय कोई अन्य आराध्य नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।“ नमाज, जकात, रमजान इत्यादि के साथ वे यह भी बतलाते हैं कि ”तुम लोग लूट के माल का पंचमांश अदा करो“ (23)। लूट के माल के विषय में हम यथा प्रसंग और भी बहुत कुछ मुहम्मद के मुख से सुनेंगे।
- सही की सारी हदीसों का संख्याक्रम है। अनुवादक की टिप्पणियों का भी। उदाहरण देते समय कोष्टक में उनका उल्लेख है।
इसी प्रकार की बातें, मुआज को यमन का शासक बनाकर भेजते हुए, मुहम्मद कहते हैं-”अव्वल उन्हें गवाही देने के लिए कहो कि अल्लाह के सिवाय कोई अन्य आराध्य नहीं है और मैं (मुहम्मद) अल्लाह का रसूल हूँ। यदि वे इसे मंजूर कर लेते हैं तो उनसे कहो कि अल्लाह ने उनके लिए ज़कात की अदायगी का एक जरूरी फर्ज़ तय किया है“ (27)।
मुहम्मद के मिशन का एक और भी स्पष्टतर विवरण इन पंक्तियों में मिलता है-”मुझे लोगों के खिलाफ तब तक लड़ते रहने का आदेश मिला है, जब तक वे यह गवाही न दें कि अल्लाह के सिवाय कोई अन्य आराध्य नहीं है और मुहम्मद अल्लाह का रसूल है और जब तक वे नमाज न अपनाएं तथा जकात न अदा करें यदि वे यह सब करते हैं, तो उनके जान और माल की हिफाजल की मेरी ओर से गारंटी है“ (33)।
मुहम्मद ”अल्लाह“ शब्द का प्रयोग प्रचुरता से करते हैं। पर कई बार अल्लाह भी पीछे पड़ जाता है। अपने ऊपर आस्था रखने वालों से मुहम्मद कहते हैं-”तुममे से कोई तब तक मुसलमान नहीं है, जब तक कि मैं उसे अपने बच्चे, अपने पिता और सारी मानव-जाति से अधिक प्यारा नहीं हूँ“ (71)।
अल्लाह और उनके रसूल-सच कहें तो मुहम्मद और उनके -नमाज, जकात, रमजान और हज, इन पांचों को कई बार इस्लाम के पांच स्तम्भ कहा जाता है। किन्तु हदीस में ऐसी कुछ अन्य आस्थाओं और अनुशासनों का जिक्र भी जगह-जगह मिलता है, जो इन पांचों से कम महत्त्वपूर्ण नहीं। इनमें से कुछ खास-खास ये हैं-जन्नत, जहन्नुम, कयामत का दिन, जिहाद (बहुदेववादियों के खिलाफ लड़ी जाने के कारण पवित्र मानी जाने वाली जंग), जजिया (बहुदेववादियों से वसूला जाने वाला व्यक्ति-कर), गनीमा (युद्ध में लूटा गया माल) और खम्स (पवित्र पंचमांश)। मुहम्मद-प्रणीत मज़हब के ये मुख्य अंग हैं। अल्लाह जब जहन्नुम में मिलने वाली सजाओं की धमकियां देता है और जन्नत में मिलने वाली नेमतों के वायदे करता है, तब वह साकार हो उठता है। इसी तरह, इस्लाम के इतिहास में, जिहाद और युद्ध में लूटे गये माल ने हज और जकात से भी ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रस्तुत अध्ययन में इन समस्त अवधारणाओं की यथाक्रम यथास्थान समीक्षा होगी।
लेखक : रामस्वरूप