कंकड़ फैंकना
एक अन्य महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान है रमियुररिजाम अर्थात् कंकड़ फैंकना। दसवें दिन, जो ”कुरबानी का दिन“ भी है, तीर्थयात्री जमरात-अल-अकाबा पर, जिसे बड़ा शैतान (शैतानुल कबीर) भी कहा जाता है, सात कंकड़ फैंकते हैं। यह करते समय, वे गाते हैं-”अल्लाह के नाम पर जो सर्वशक्तिमान है, और शैतान से नफरत के कारण तथा उस पर लानत लाने के लिए मैं यह करता हूँ।“ कई एक पंथमीमांसाओं में अल्लाह और शैतान का नाता अटूट रहता है।
यह मजहबी अनुष्ठान उस पुरातन घटना की स्मृति में किया जाता है, जब शैतान क्रमशः आदम, इब्राहिम और इस्माइल के सामने पड़ा था और जिब्रैल द्वारा सिखलाई गई इस आसान विधि से-सात कंकड़ फैंकने से दूर भाग गया था। मीना में स्थित तीन खम्बे, उन तीन अवसरों के प्रतीक हैं, जब यह घटित हुआ था। इसीलिए तीर्थयात्री तीनों में से प्रत्येक पर सात कंकड़ फैंकता है।
कंकड़ फैंकने से मिलने वाले पुण्य के विषय में कंकड़ों के आकार तथा उन की संख्या और उनके फैंके जाने के सर्वोत्तम समय के बारे में अनेक अहादीस है। कंकड़ छोटे होने चाहिए-”मैंने अल्लाह के रसूल को पत्थर फैंकते देखा, जैसे छोटे रोड़ों की बौछार हो“ (2979)। फैंकने का सर्वोत्तम समय है कुरबानी के रोज़ सूर्योदय के बाद-”अल्लाह के रसूल ने जमरा पर महर के रोज सूर्योदय के बाद कंकड़ फैंके थे, और उसके बाद जुलहिजा के 11वें, 12वें और 13वें रोज़ सूरज ढलने के बाद“ (2980)। उनकी संख्या विषम होनी चाहिए। पैगम्बर कहते हैं-”नित्यकर्म से निपटने के बाद गुप्त अंगों को साफ करने के लिए विषम संख्या में पत्थर चाहिए, और जमरान पर फैंके जाने वाले कंकड़ों की संख्या भी विषम (सात) होनी चाहिए, और अल-सफा एवं अल-मरवा के फेरों की संख्या भी विषम (सात) होनी चाहिए, और काबा के फेरों की संख्या विषम (सात) होनी चाहिए“ (2982)।
author : ram swarup