ज़कात मुहम्मद के परिवार के लिए नहीं
ज़कात का मकसद था मिल्लत के जरूरतमन्दों की मदद। पर मुहम्मद के परिवार को उसे स्वीकार करना मना था। परिवार में अली, जाफ़र, अकील, अब्बास और हरिस बिन अब्द अल-मुतालिब तथा उनकी संतानें शामिल थीं। पैगम्बर ने कहा था-”हमारे लिए सदका निषिद्ध है“ (2340)। दान लेना दूसरों के लिए बहुत अच्छा था, पर मुहम्मद के गौरवमंडित वंशजों के लिए नहीं। यों भी दान लेने की जरूरत उन लोगों के लिए तो कम से कमतर ही होती जा रही थी, क्योंकि वे विस्तार पा रहे अरब साम्राज्यवाद के वारिस थे।
यद्यपि सदका लेने की अनुमति नहीं थी, तथापि भेंट-नजरानों का स्वागत था। मुहम्मद की बीवी द्वारा मुक्त की गई एक बांदी, बरीरा, ने मुहम्मद को मांस का एक टुकड़ा दिया, जोकि उनकी बीवी ने ही उसे सदके में दिया था। मुहम्मद ने यह कहते हुए उसे ले लिया-”उसके वास्ते यह सदका है और हम लोगों के वास्ते भेंट“ (2351)।
author : ram swarup