नारी किसी भी परिवार या वृहद् रूप में कहें तो समाज कि धुरी है . नारी शक्ति के विचार, संस्कार उनकी संतति को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं उनके निर्माण में गुणों या अवगुणों कि नींव डालते हैं और यही संतति आगे जाके समाज का निर्माण करती है. लेकिन यदि नारी के अधिकारों का हनन कर दिया जाये तो एक सभ्य समाज बनने कि आशंका धूमिल हो जाती है. अरब भूखण्ड में इसके भयंकर प्रभाव सदियों से प्रदर्शित हो रहे हैं जो अत्यंत ही चिंता जनक हैं . इसका प्रमुख कारण नारी जाती पर अत्याचार उनको प्रगति के अवसर न देना और केवल जनन करने के यन्त्र के रूप में देखना ही प्रमुख है.
इस्लाम के पैरोगार इस्लाम को नारी के लिए स्वर्ग बताते रहे हैं चाहे उसमे पाकिस्तान के जनक होने कि भूमिका अदा करने वाले मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी हों या वर्तमान युग में इस्लामिक युवकों के लिए आतंकवादी बनने का प्रेरणा स्त्रोत जाकिर नायक हों . लेकिन वास्तविकता इसके कहीं विपरीत है और विश्व उसका साक्षी है इसके लिए कहने के लिए कुछ शेष ही नहीं है किस तरह इस्लामिक स्टेट्स (ISIS) वर्तमान युग में भी औरतों को मंडियां लगा के बेच रहा है इसके अधिक भयानक क्या हो सकता है जिस सभ्यता में औरत केवल एक हवस पूर्ती का साधन और बच्चे पैदा करने का यन्त्र बन कर रह जाये . ऐसी सभ्यता से मानवता की उम्मीद लगाना ही बेमानी है
औरत की प्रगति से मानवता के गिरने का सिलसिला शुरू होता है:-
मौलाना मौदूदी साहब लिखते हैं कि स्त्री को शैतान का एजेंट बना कर रख दिया है . और उसके उभरने से मानवता के गिरने का सिलसिला शुरू हो जाता है .
औरतों के मेल जोल खतरनाक
औरतों और मर्दों के मेल से बेहयाई कि बाढ़ आ जाती है कामुकता और ऐश परस्ती पूरी कौम के चरित्र को तबाह कर देती है और चरित्र कि गिरावट के साथ बौद्धिक शारीरिक और भौतिक शक्तियों का पतन भी अवश्य होता है . जिसका आखिरी अंजाम हलाकत व बर्बादी के कुछ नहीं है .
औरत जहन्नम का दरवाजा है
“ऐसे लोगों ने समाज में यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि औरत गुनाह कि जननी है . पाप के विकास का स्त्रोत और जहन्नम का दरवाजा है सारी इंसानी मुसीबतों कि शुरुआत इसी से हुयी है.”
मौलाना ने ईसाईयों धर्म गुरुओं के हवाले से लिखा है कि औरत ”
शैतान के आने का दरवाजा है
वह वर्जित वृक्ष कि और ले जाने वाली
खुदा के कानून को तोड़ने वाली
खुदा कि तस्वीर मर्द को गारत करने वाली है
भले ही मौलाना साहब ने ये विचार इसाई लोगों के अपने पुस्तक में दिए हैं लेकिन उनके पूर्वलिखित व्याख्यानों और अरब में जो घटित हो रहा है वो इसी कि पुश्टी करता है.
औरत कभी उच्च कोटि की विद्वान् नहीं हो सकती :
मौलाना साहब और इस्लाम जिसकी वो नुमाइंदगी करते हैं महिलाओं के घर से बाहर और काम करने के कितने खिलाफ हैं ये जानने के लिए काफी है कि वो इसे इंसानी नस्ल के खात्मे की तरह देखते हैं .
मौलाना लिखते हैं :” अतः जो लोग औरतों से मर्दाना काम लेना चाहते हैं , उनका मतलब शायद यही है कि या तो सब औरतों को औरत विहीन बनाकर इंसानी नस्ल का खात्मा कर दिया जाये”
” औरत को मर्दाना कामों के लिए तैयार करना बिलकुल ही प्रकृति के तकाजों और प्रकृति के उसूलों के खिलाफ है और यह चीज न इंसानियत के फायदेमंद और न खुद औरत के लिए ही ”
औरत केवल बच्चे पैदा करने कि मशीन:
मौलाना लिखते हैं कि ” चूँकि जीव विज्ञानं (BIOLOGY) के मुताबिक़ औरत को बच्चे कि पैदाइश और परवरिश के लिए ही बनाया गया है और प्रकृति और भावनाओं के दायरे में भी उसके अन्दर वही क्षमताएं भर दी गयी हैं जो उसकी प्राकृतिक जिम्मेदारी के लिए मुनासिब हैं
जिन्दगी के एक पहलू में औरतें कमजोर हैं और मर्द बढे हुए हैं आप बेचारी औरत को उस पहलू में मर्द के मुकाबले पर लाते हैं जिसमें वो कमजोर हैं इसका अनिवार्य परिणाम यही निकलेगा कि औरतें मर्दों से हमेशा से कमतर रहेंगी
संभव नहीं कि औरत जाती से अरस्तू, कान्त , इब्ने सीना , हेगल , सेक्सपियर , सिकन्दर ,नेपोलियन बिस्मार्क कि टक्कर का एक भी व्यक्ति पैदा हो सके.
औरत शौहर कि गुलाम
मौलाना लिखते हैं कि दाम्पत्य एक इबादत बन जाती है लेकिन तुरंत आगे कि पंक्तियों में उनकी वही सोच प्रदर्शित होती है वो लिखते हैं कि ” अगर औरत अपने शौहर कि जायज इच्छा से बचने के लिए नफ्ल रोजा रख के या नमाज व तिलावत में व्यस्त हो जाये तो वह गुनाह्ग्गर होगी .
इस कथन कि पुष्टि में वह मुहम्मद साहब से हवाले से लिखते हैं कि :
” औरतें अपने शौहर कि मौजूदगी में उसकी इजाजत के बिना नफ्ल रोजा न रखे” ( हदीस : बुखारी )
” जो औरत अपने शौहर से बचकर उससे अलग रात गुजारे उस पर फ़रिश्ते लानत भेजते हैं , जब तक कि वह पलट न आये ” ( हदीश : बुखारी )
“….. रातों को सोता भी हूँ , और औरतों से विवाह भी करता हूँ. यह मेरा तरीका है और जो मेरे तरीके से हेट उसका मुझसे कोई वास्ता नहीं ” ( हदीस बुखारी )
ऊपर दिए मौलाना मौदूदी के कथन और हदीसों से साफ़ जाहिर है कि औरत इस्लाम में केवल अपने शौहर के मर्जी पर जीने वाली है . शौहर कि मर्जी के बगैर या औरत के लिए शौहर कि इच्छा पूर्ति ही सर्वोपरि है उसके न करने पर उसके लिए फरिश्तों की लानत आदि से डराया धमकाया गया है . और मुहमम्द साहब ने यह कह कर कि विवाह करना ही सर्वोपरि है और अन्यथा मुझसे अर्थात इस्लाम्स से कोई वास्ता नहीं सब कुछ स्पस्ट ही कर दिया कि औरत केवल और केवल मर्दकी इच्छा पूर्ति का साधन है .
मर्द औरत का शाषक है :
मौलाना मौदूदी लिखते हैं कि इस्लाम बराबरी का कायल नहीं है जो प्राकृतिक कानून के खिलाफ हो . कर्ता पक्ष होने कि हैसियत से वैयक्तिक श्रेष्ठता मर्द को हासिल है वह उसने ( खुदा ने ) इन्साफ के साथ मर्द को दे रखी है . और इसके लिए वह कुरान कि अति विवादित आयत जो मर्द को औरत से श्रेष्ठ बताती है का हवाला देते हैं :-
” और मर्दों के लिए उन पर एक दर्जा ज्यादा है ( कुरान २: २२८ )
“मर्द अपनी बीवी बच्चों पर हुक्मरां ( शाषक ) है और पाने अधीनों के प्रति अपने अमल पर वह खुदा के सामने जवाबदेह है ( हदीस : बुखारी )
औरत को घर से निकलने के लिए शौहर की इजाजत
“खुदा के पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने फरमाया – जब औरत अपने शौहर कि मर्जी के खिलाफ घर से निकलती है तो आसमान का हर फ़रिश्ता उस पर लानत भेजता है और जिन्नों और इंसानों के सिवा हर वह चीज जिस पर से वह गुजरती है फिटकार भेजती है उस वक्त तक कि वह वापस न हो ( हदीस : कश्फुल – गुम्मा )
पति कि बात न मारने पर पिटाई :
हदीस कि किताब इब्ने माजा में है कि नबी ने बीवियों पर जुल्म करने कि आम मनाही कर दी थी . एक बार हजरत उमर ने शिकायत कि कि औरतें बहुत शोख (सरकश ) हो गयी हैं उनको काबू में करने के लिए मारने कि इजाज़त होनी चाहिए और आपने इजाजत दे दी ( पृष्ठ २०२)
” और जिन बीवियों से तुमको सरकशी और नाफ़रमानी का डर हो उनको नसीहत करो ( न मानें ) तो शयन कक्ष (खाब्गाह ) में उनसे ताल्लुक तोड़ लो ( फिर भी न मानें तो ) मारो , फिर भी वे अगर तुम्हारी बात नमान लें तो उन पर ज्यादती करने के लिए कोई बहना न धुन्ड़ो ) (कुरान ४ : ३४ )
औरत का कार्यक्षेत्र केवल घर की चारदीवारी :
इस्लाम में औरतों कोई केवल घर कि चार दीवारी में ही कैद कर दिया गया है , उसके घर से बाहर निकलने पर तरह तरह कि पाबंदियां लगा दी गयी यहीं , शौहर कि आज्ञा लेना अकेले न निकलना इत्यादी इत्यादी और ऐसा न करने पर तरह तरह से डराया गया है पति को मारने के अधिकार , फरिश्तों का डर और न जाने क्या क्या यहाँ तक कि मस्जिद तक में आने को पसंद नहीं किया गया
– उसको महरम ( ऐसा रिश्तेदार जिससे विहाह हराम हो ) के बिना सफर करने कि इजाजत नहीं दी गयी ( हदीस तिर्मजी , अबू दाउद )
– हाँ , कुछ पाबंदियों के साथ मस्जिद में आने कि इजाजत जरुर दी गयी अहि लेकिन इसको पसंद नहीं किया गया
अर्थात हर तरीके से औरत के घर से निकलने को न पसंद किया गया है , इसके लिए पसंदीदा शक्ल यही है कि वह घर में रहे जैसा कि आयत ” अपने घरों में टिककर रहो (कुरान ( ३३:३३) की साफ़ मंशा है .
घर से निकलने पर पाबंदियों :
मर्द अपने इख्तियार से जहाँ चाहे जा सकता अहि लेकिन औरत, चाहे कुंवारी हो या शादी शुदा या विधवा हर हाल में सफ़र में उसके साथ एक मरहम (ऐसा रिश्तेदार जिससे विहाह हराम हो ) जरुर हो
– किसी औरत के लिए , जो अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखती हो , यह हलाल (वैध ) नहीं कि वह तीनदिन या इससे ज्यादा का सफ़र करे बिना इसके कि उसके साथ उसका बाप या भाई या शौहर या बेटा या कोई मरहम (ऐसा रिश्तेदार जिससे विहाह हराम हो मर्द हो ( हदीस)
– और अबू हुरैरह कि रवायत नबी से यह है कि नबी ने फरमाया :”औरत एक दिन रात का सफर न करे जब तक कि उसके साथ कोई मरहम मर्द न हो ( हदीस : तिर्माजी )
और हजरत अबू हुरैरह से यह भी रिवायत है कि नबी ने फरमाया ” किसी मुसलमान औरत के लिए हलाल नहीं है कि एक रात का सफ़र करे उस वक्त तक जब तक उसके साथ एक मरहम मर्द न हो ( हदीस : अबू दाउद )
औरत को अपनी मर्जी से शादी कि इजाजत नहीं:
मौलाना मौदूदी लिखते हैं मर्द को अपने विवाह के मामले में पूरी आजादी हासिल है . मुसलमान या इसाई यहूदी औरतों में से जिसके साथ विवाह कर सकता है लेकिन औरत इस मामले में बिलकुल आजाद नहीं है वह किसी गैर मुस्लिम से विवाह नहीं कर सकती
“न ये उनके लिए हलाल हैं और न वे इनके लिए हलाल ” ( कुरान ६०”१०)
आजाद मुसलमानों में से औरत अपने शौहर का चुनाव कर सकती है लेकिन यहाँ भी उसके लिए बाप दादा भाई और दुसरे सरपरस्तों कि राय का लिहाज रखना मौलाना ने जरुरी फरमाया ही अर्थात पूरी तरह से औरत को विवाह करने के लिए दूसरों कि मर्जी के अधीन कर दिया गया है .
सन्दर्भ : पर्दा लेखक मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी
नमस्ते जी
आर्य निर्माण
राष्ट्र निर्माण
पति परमेश्वर है अर्थात् पत्नी भक्त या दासी हुई अतः पति पत्नी किस आधार पर बराबर हुए पत्नी का काम पति की सेवा करना है
ye kisne kah diya ki dasee hai
donon ek dusare ke purak hein
ye islam naheen hai mitra
Prakriti aur purush ek dusre ki bina incomplete he. Purush aatma he or prakriti human body he. Ye concept symbolize kiya he Hinduism me “ardhnareswar” ki form me. ye dharm ki hisab se nehi dekha jaye to samajhne me asan he. Agar koyi aatma ko biswas nehi karte to koyi baat nehi lekin jinda rehne ke liye jis power ki jarurat he uskoto manna he parega, wohi Hinduism aatma mante he. Agar koyi Hindu ya dusre dharm wale log bhi kehta he ki woman and man barabar nehi he to iska logic “sreemadbhagwat geeta” parhe logic samjh me aayega. Ye koyi dharm nehi he ye science he dhyan denge to.