हदीस : गैर-मुसलमानों के लिए काबा बंद

गैर-मुसलमानों के लिए काबा बंद

इस्लाम-पूर्व दिनों में काबा सबके लिए खुला रहता था, चाहे वे अल्लाह के आराधक हों या अल-लात के। पर मुहम्मद द्वारा मक्का-विजय के बाद वह मुसलमानों के सिवाय सब के लिए बंद कर दिया गया। मुहम्मद की ओर से ऐलान किया गया-”इस साल के बाद कोई बहुदेववादी तीर्थयात्रा नहीं कर सकता“ (3125)। यह खुद अल्लाह का हुक्म था। कुरान का कथन है-”ऐ मोमिनो ! वे जो अल्लाह के साथ किसी और को जोड़ते हैं, वे नापाक हैं। और इसीलिए इस साल से लेकर आगे उन्हें पवित्र पूजाघर के पास नहीं जाना चाहिए“ (9/28)1।

 

अधिकांश धर्मपंथ अपने आराध्य देवों के लिए भवन या मंदिर अपनी स्वयं की मेहनत से बनाते हैं। लेकिन इस्लाम अपने आराध्यदेव अल्लाह के लिए दूसरों के मन्दिर हथियाता है। इन दो प्रकार के पूजाघरों में प्रबल अन्तर है। किसी भी सम्यक् आराध्यदेव का सार्थक आवास वही हो सकता है, जो उसके अनुयायियों द्वारा अपने हृदय में भरी प्रीति-भावना से एवं अपने हाथों के परिश्रम से बनाया गया हो। कोई भी अन्य आवास साम्राज्यवादी लिप्सा और विस्तारवाद का ही स्मारक होता है और ऐसा आवास विशुद्ध मानस वालों के आराध्यदेवों द्वारा कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता।

 

  1. मुहम्मद और बहुदेववादियों के बीच एक समझौता हुआ था कि दोनों में से किसी को भी मंदिर से दूर नहीं रखा जायेगा और पवित्र महीनों में उसमें आने-जाने के लिए एक को दूसरे के हस्तक्षेप का कोई डर नहीं होना चाहिए। पर अल्लाह के पास से ”छूट“ आई और मुहम्मद को उनके पक्ष के इकरार से मुक्त कर दिया गया, “अल्लाह बुतपरस्ती के साथ किए गए इकरार से मुक्त है और इसीलिए उसके रसूल भी मुक्त हैं।“ दूसरों को चार महीने दिये गए कि या तो अपना रास्ता बदलो या मौत का मुकाबला करो। मुसलमानों से कहा गय कि ”जब पवित्र महीने बीत जाएं, तब बुतपरस्तों को जहां पाओ, वहीं कत्ल करो और उन्हें पकड़ लो और घेर लो और उनके लिए प्रत्येक प्रकार की घात लगाओ ….. लो ! अल्लाह माफ करने वाला और दया करने वाला है“ (कुरान 9/5)। मुसलमान सोचते थे कि अगर गैर-मुसलमानों को मक्का-प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई, तो उनके व्यापार पर असर पड़ेगा। अतः मुहम्मद ने ”बाजार बंद होने से जो खोने का तुम्हें डर है, उसके मुआवजे के रूप में, यहूदियों पर एक चुंगी-कर का प्रस्ताव रखा-ऐसा इब्न इसहाक बतलाते हैं (सीरत रसूल अल्लाह, 620)। कुरान की प्रासंगिक आयते हैं-”अगर तुम्हें गरीबी का डर है, तो अल्लाह अपनी कृपा से तुम्हें समृद्ध करेगा। ….. उनके खिलाफ जिन्हें किताब दी गई है, और जो अल्लाह पर यकीन नहीं लाते ….. और जो सच्चे मजहब को स्वीकार नहीं करते, तब तक लड़ो जब कि वे अधीनता स्वीकार करके जजिया न देने लगे और तुच्छ बनकर न रहने लगे“ (9/28, 29)।

author : ram swarup

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