विकास की तुलना में मुफ्त की बिजली-पानी भारी : डॉ. धर्मवीर

दिल्ली के चिरप्रतीक्षित चुनाव हो चुके। अप्रत्याशित चुनाव परिणामों ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। जीतने वालों को भी ऐसी आशा नहीं थी, हारने वालों के मन में ऐसी कल्पना नहीं थी। यह जनता का जादू है। जनता ने चला दिया, सभी ठगे रह गये। चुनाव के बाद खूब विश्लेषण हुए, होते ही हैं। इन विश्लेषकों ने मोदी-केजरीवाल की कमी और विशेषतायें खूब गिनाई। मोदी के लिए कहा गया मोदी प्रधानमन्त्री बनकर जमीन भूल गये हैं, वे आसमान में उड़ रहे हैं। राष्ट्रीय समस्याओं को छोड़ अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं की बात कर रहे हैं। मोदी साथियों को धमाका रहे हैं, धर्मान्धता को बढ़ावा दे रहे हैं, हिन्दू धर्मान्धता के कारण ही मोदी की छवि खराब हुई है। मोदी को अनुचित शब्दावली प्रयोग के कारण जनता की नाराजगी झेलनी पड़ी है। मोदी अपने व्यक्तित्व को बनाने में लगे हैं आदि-आदि। इसके विपरीत केजरीवाल सरल हैं, कर्मठ हैं, सादगी पसन्द हैं, जनता के आदमी जनता की बात करते हैं आदि।

ये सब बातें चर्चा में है तो कम-अधिक इनका अस्तित्व तो होगा ही परन्तु जिन बातों से मनुष्य पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ता तब तक मनुष्य अधिक नहीं बदलता। जब कोई बात मनुष्य के निजी हित को हानि पहुँचाती है तब ही वह तीव्र प्रतिक्रिया करता है। दूसरी परिस्थिति है यदि मनुष्य को कहीं अधिक लाभ दिखाई देता है तब भी वह अनायास उधर की ओर झुक जाता है। इस चुनाव में भी ये दो कारण निश्चित रूप से रहे हैं। जिन आलोचकों और विश्लेषकों ने कम ही ध्यान दिया है। मूल रूप से मोदी और केजरीवाल में कुछ भी नहीं बदला है। बदला तो मतदाता है मतदाता को प्रभावित करने वाले कारणों पर विचार करने से ये सब बात स्पष्ट हो जाती हैं।

दिल्ली के चुनाव परिणाम तो न भूतो न भविष्यति है। यदि इससे कुछ अधिक हो सकता है तो केवल तीन स्थान और केजरीवाल को मिल सकते थे उसके बाद तो होने को कुछ बचता ही नहीं। तीन स्थानों की कमी से जीत का महत्व किसी प्रकार कम नहीं होता, यह तो पूरी विधानसभा ही केजरीवाल की है। इस चुनाव परिणाम को देखकर स्वयं केजरीवाल को ही कहना पड़ा इतनी बड़ी सफलता देखकर तो डर लगता है। डर लगना स्वाभाविक है, यह परिणाम आशाओं का अम्बार लेकर आया है जिसे भगवान् भी पूरा नहीं कर सकता फिर केजरीवाल की तो बात ही क्या है।

हम समाज में जब होते हैं तब आदर्शवादी बन जाते हैं जब अकेले होते हैं तो स्वार्थी होते हैं। मनुष्य समूह में होता है तब आदर्श की बात करता है परन्तु जब व्यक्तिगत रूप से उसे किसी बात का निर्णय करना होता है तो वह स्वार्थी बनने में संकोच नहीं करता। मोदी देश की, समूह की, समाज की बात करते रहे, दूसरी ओर केजरीवाल शुद्ध रूप से व्यक्तिगत लाभ की बातें की। चुनाव से एक-दो दिन पहले की बात है, दिल्ली मेट्रो में यात्रा करते हुए सुनने को मिला, चर्चा स्वाभाविक रूप से चुनाव की थी, खड़े एक व्यक्ति ने कहा भाई केजरीवाल आया तो दाल एक सौ बीस से अस्सी रूपये हो जायेगी और पानी फ्री मिलेगा। इस मनुष्य के अन्दर सस्ती दाल और मुफ्त पानी का उत्साह देखते ही बनता था। वहाँ से केजरीवाल अच्छा है या बुरा है।  ये नीति देश और समाज के हित में कैसी है? इन सब बातों पर विचार करने का अवसर ही कहाँ था?

मनुष्य कितना भी पढ़-लिख जाये या कितनी भी धोखा खा जाये परन्तु धोखे का अवसर आने पर वह लाभ की इच्छा को पूरा करने के लिए धोखा खाना स्वीकार कर लेता है। केजरीवाल ने व्यक्ति लाभ की पचासों घोषणाएँ कर डाली। इस चुनाव में केजरीवाल ने ५०० नये स्कूल, २० डिग्री कॉलेज, ३००० स्कूलों में खेल मैदान, ५०० नई बसें, डेढ़ लाख सीसी टीवी कैमरे, दो लाख शौचालय, झुग्गी वालों के लिये फ्लैट और आधी दरों पर बिजली-पानी देने का  वादा किया है, जिन्हें एक आदमी अपने लिये आवश्यक समझता है। इसीलिए उसे लगता है यही व्यक्ति उसके लिए सबसे उपयुक्त है।

केजरीवाल कहते हैं दिल्ली को पूर्ण राज्य का स्तर दिलायेंगे। अधूरे राज्य की अपनी समस्याये हैं। यह ठीक बात है। आज दिल्ली के निर्णय केन्द्र सरकार गृह मन्त्रालय करता है। पुलिस गृह मन्त्रालय के आधीन है। केजरीवाल ने अपने पिछले कार्यकाल में जिस पुलिस अधिकारी का तबादला करने के लिए मुख्यमन्त्री होकर धरना तक दिया परन्तु उस अधिकारी का वे स्थानान्तरण नहीं करा सके। इसी प्रकार बड़े अधिकारियों की नियुक्ति और उनपर कार्यवाही दिल्ली मुख्यमन्त्री नहीं कर सकता। इन परिस्थितियों में कोई भी मुख्यमन्त्री और उसकी सरकार चाहेगी उसे पूर्ण अधिकार मिले। सब  पर उसकी पूरी पकड़ हो। भारत के किसी कोने में ऐसी परिस्थिति हो तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का स्तर देना सरल है परन्तु दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाना इस कारण सम्भव नहीं होगा कि दिल्ली में दो सरकारें हैं एक है केन्द्र की सरकार और दूसरी होगी दिल्ली की सरकार, दोनों में से दिल्ली में किसका अधिकार होगा। आज दिल्ली की सरकार केन्द्र पर निर्भर है कल दिल्ली को पूर्ण राज्य का अधिकार दिये जाने पर केन्द्र सरकार को दिल्ली में किरायेदार की स्थिति में रहना पड़ेगा। आज दिल्ली पूरे देश की राजधानी है, केन्द्र सरकार पर पूरे देश का अधिकार है। यह केन्द्र की राजधानी होने से अन्तर्राष्ट्रीय अतिथियों के आने का स्थान है, ऐसी परिस्थिति में उनकी व्यवस्था केन्द्र सरकार करेगी या दिल्ली की सरकार। अन्तिम और महत्वपूर्ण  बात है मतभेद होने पर किसका आदेश मान्य होगा। आज पुलिस या प्रशासन केन्द्र के अनुसार चलता है, दिल्ली को पूर्ण राज्य का अधिकार मिलने पर जैसे राज्य के मन्त्री और विधानसभा सदस्य थानेदार पर रोब डालकर कार्य कराते हैं तब पुलिस के काम करने की क्या शैली होगी यह विचारणीय है। हमें इतिहास भी देखना चाहिए जब रूस का विधान हुआ तब ……मास्को में किन्तु गोर्बचोव का केन्द्र सरकार के पास अपना शासन चलाने के लिए कोई स्थान नहीं था। मास्को की सरकार ने संसद के निर्णयों को मानने से इन्कार कर दिया था तथा संसद पर तोप के गोले दागे थे। जहाँ दो समान अधिकारी होंगे वहाँ संघर्ष की सम्भावना तो सदा ही बनी रहेगी। यह  परिस्थिति केन्द्र सरकार की जानकारी में न हो यह सम्भव तो नहीं है फिर केजरीवाल दिल्ली को पूर्ण राज्य अधिकार कैसे दिलायेंगे। आज दिल्ली में दिल्ली की सरकार और दिल्ली नगर निगम में विरोधी पार्टी की सरकार  है, उसमें प्रशासन और सामान्य जन उलझा होगा यह सोचा जा सकता है। इस प्रकार की सारी समस्याओं के रहते दिल्ली की केजरीवाल सरकार कितनी सफल होती है यह तो समय ही बतायेगा।

जिस प्रकार एक सामान्य व्यक्ति में उसकी दैनिक असुविधाओं को दूर करने की आशा केजरीवाल में दिखाई दी उसी प्रकार मोदी सरकार के आने से जिनको हानि हुई वे भी मोदी को अपना मत क्यों देंगे। उनमें दो वर्ग मुख्य है एक है किसान और दूसरा व्यापारी। ये दोनों ही मोदी सरकार से दुःखी हैं। मोदी के शासन में आने के समय जनता मंहगाई से दुःखी थी और मंहगाई तेजी से बढ़ रही थी। मंहगाई का मुख्य कारण बाजार में सामान की कमी है, देश से खाद्य वस्तुओं का निर्यात बड़ी मात्रा में हो रहा था अतः मंहगाई का बढ़ना निरन्तर जारी था, मोदी सरकार ने बहुत सारी वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया जिसके परिणाम स्वरूप वस्तुओं के मूल्य गिर गये। इससे सामान्य जनता को भले ही लाभ हुआ परन्तु व्यापारी को लाभ कैसे होता? व्यापारी को लाभ तो तब होगा जब  बाजार में वस्तु मंहगे दाम पर बिके। इसके साथ ही व्यापारी मंहगे दाम पर बेच नहीं सकता तो वह किसान से मंहगे दाम पर खरीदेगा कैसे? इससे किसान को भी अपना माल व्यापारी को सस्ते दाम पर ही बेचना होगा। ऐसे व्यापारी और किसान मोदी का समर्थन कैसे करेंगे? यह विचारणीय होगा।

केजरीवाल का सारा जोर गैर भाजपा सरकार पर केन्द्रित रहा, दिल्ली के चुनाव के कुछ समय पूर्व दिल्ली के गिरजाघरों पर लूटपाट व तोड़-फोड़ की घटनायें होना और चुनाव से दो दिन पहले दिल्ली के चर्च और केजरीवाल के तत्वाधान  में धरना प्रदर्शन करना, ठीक उसी समय अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का भारत में बढ़ती हुई धार्मिक असहिष्णुता के बारे में वक्तव्य देना। यह आकस्मिक संयोग नहीं है। इसी तरह दिल्ली में अल्पसंख्यकों का ३२ सीटों पर प्रभाव है उनका निर्णायक रूप से केजरीवाल के साथ जाना, यह एक सुनियोजित कार्यक्रम की ओर संकेत करते हैं।

दिल्ली के चुनाव में पराजय के बहुत सारे कारण हैं, वहाँ एक सामाजिक कारण भी है दिल्ली में ग्रामीण क्षेत्र के किसानों में जाट मतदाता बड़ी संख्या में हैं परिणामों को देखने से पता लगता है कि वे जहाँ किसान होने से घाटे में हैं अतः मोदी विराधी हैं, वहीं जाट मतदाताओं में एक और प्रतिक्रिया भी देखने में आयी है, वह है हरियाणा का मुख्यमन्त्री गैर जाट को बनाना। राजनीति की दृष्टि से हरियाणा में मोदी को गैरजाट मतदाताओं ने ही विजय दिलाई है, अधिकांश जाट मतदाता चौटाला और हुड्डा में बंटा हुआ था। अतः मत विभाजन से इतर जातियों के मत निर्णायक बन गये। इसीलिए सरकार भी उन्हीं की बनी परन्तु जाट बहुल क्षेत्र में इतर जातियों का वर्चस्व इस समुदाय को सहज स्वीकार्य नहीं हुआ। इसका प्रभाव भी दिल्ली के चुनावों में देखा जा सकता है। इन चुनावों में भाजपा के हार की चर्चा की जा रही है, उनमें एक है पार्टी में चुनाव को लेकर गलत निर्णय लिये। इसमें किसी को भी सन्देह नहीं रहना चाहिए कि दुर्घटना गलत निर्णय का ही परिणाम होता है। मूल्यांकन में भूल कहीं भी हुई हो परिणाम तो गलत आयेगा ही। इसके अतिरिक्त इस चुनाव में ध्यान देने की बात है जो लोग मोदी के नकारात्मक चुनाव की आलोचना कर रहे हैं वे वास्तव में मोदी के नकारात्मक प्रचार के सूत्रधार हैं। मोदी प्रधानमन्त्री बन गये यह तो ठीक है परन्तु जिनको मोदी का प्रधानमन्त्री बने रहना रास नहीं आ रहा, उन समाचार पत्रों, दूरदर्शनतन्त्र संचालकों की तथा समाचार समीक्षकों की कमी नहीं है। उदाहरण के लिए ये समालोचक मोदी की हार के लिए संघ के घर वापसी या धर्मान्तरण की घटनाओं की गला फाड़कर आलोचना करते हैं, वे अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत विरोधी आलोचना की निन्दा करने के स्थान पर मोदी के विरोध में उस कथन को प्रमाण मानने में गौरव का अनुभव करते हैं। कोई हिन्दू ईसाई या मुसलमान बनता है तो उसे धर्मपरिवर्तन का अधिकार वैयक्तिक स्वन्त्रता कहा जाता है, उसके विपरीत यदि कोई ईसाई हिन्दू बन जाये तो इसे साम्प्रदायिक संकीर्णता घोषित कर दिया जाता है। यह दोहरापन इसी कारण है कि इन लोगों की निष्ठा न अपने देश के प्रति है, न अपने धर्म के प्रति,  इनकी निष्ठा तो इन्हें सुविधा और साधन उपल ध कराने वालों के प्रति है जो देश और संगठन इस समाचार तन्त्र को बड़ी मात्रा में धन राशि उपल  ध कराते हैं, ये समाचार पत्र, चैनल उन्हीं का पक्ष लेते हैं, उन्हीं का गुणगान करते हैं। न तो मोदी ने अपना दृष्टिकोण बदला है और न ही केजरीवाल ने फिर यह जीत-हार का इतना बड़ा अन्तर आया तो कैसे? यह परिस्थिति उसकी व्याख्या करती है जो लोग जिन कारणों से केजरीवाल का विरोध करते थे, तो क्या केजरीवाल बदल गये हैं? केजरीवाल के विचार तो वही है, चाहे विदेशी धन लेने का हो या मुसलमानों के तुष्टिकरण का। बदला तो केवल मतदाता का मन है। यह चुनाव जनता की विजय है, वह जिसको चाहे हरा दे, जिसको चाहे जिता दे परन्तु राष्ट्रीयता की दृष्टि से देखें तो यह जीत तुष्टिकरण को बढ़ावा देने वाली और राष्ट्रीय विचारधारा को दुर्बल करने वाली है। अन्ततोगत्वा दिल्ली की जनता ने जो किया है उसका आदर ही करना चाहिए। वेद ने कहा है जो दिल में है वह कब बदल जाये कहा नहीं जा सकता। दूसरा क्या सोचता है अपने निश्चय को कब बदल देता है निश्चयपूर्वक कहा नहीं जा सकता, अतः कहा गया है-

अन्यस्य चि ामभिसंचरेण्यमुताधीतं विनश्यति।

– धर्मवीर

 

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