तड़प-झड़प’ के प्रेमी पाठक प्रत्येक मणि में स्वर्णिम इतिहास के कुछ प्रेरक प्रसंग देने की माँग करते हैं। आज इस मणि में दिल्ली के दो प्राणवीरों की एक-एक घटना दी जाती है। दिल्ली के वर्तमान आर्यसमाज अब भूल गये कि यहाँ कभी महाशय मूलशंकर नाम के एक कर्मठ धर्मात्मा मिशनरी थे। मैंने भी उनको निकट से देखा। वह बहुत अच्छे तबला वादक और आदर्श आर्य पुरुष थे। उनके ग्राम कोटछुट्टा (पं. शान्तिप्रकाश जी का जन्म स्थान) में पौराणिक कथावाचक कृष्ण शास्त्री प्रचारार्थ पहुँचा। उसकी कथा में सनातनियों की विनती मानकर कट्टर आर्य मूलशंकर ने तबला बजाना मान लिया। कृष्ण शास्त्री को ऋषि को गाली देने का दौरा पड़ गया।
भरी सभा में मूलशंकर जी ने तबला उठाकर कृष्ण शास्त्री के सिर पर दे मारा और सभा से निकल आये। ‘‘मेरे होते महर्षि दयानन्द को गाली देने की तेरी हिमत!’’ पौराणिकों ने भी कृष्ण शास्त्री को फटकार लगाई। आर्य पुरुषो! इस घटना का मूल्याङ्कन तो करिये।
पंजाब के लेखराम नगर कादियाँ के एक आर्य नेता और अद्भुत गायक हमारे पूज्य लाला हरिराम जी देहल्ली रहने लग गये। कादियाँ में मिर्जाई छह मार्च के दिन पं. लेखराम जी को कोसते हुए वहाँ के हिन्दूओं विशेष रूप से आर्यों का मन आहत किया करते थे। बाजार में खड़े होकर एक बड़े मिर्जाई मौलवी ने पं. लेखराम जी के ग्रन्थ का नाम लेकर ऋषि जी के बारे में एक गन्दी बात कही। हमारे प्रेरणा स्रोत साहस के अंगारे लाला हरिराम ने भरे बाजार में स्टूल पर खड़े मियाँ की दाढ़ी कसकर पकड़कर खींचते हुए कहा, ‘‘बता पं. लेखराम ने कहाँ यह लिखा है?’’ तब कादियाँ में हिन्दू सिख मुट्ठी भर थे। मिर्जाइयों का प्रचण्ड बहुमत था। उनका उस क्षेत्र में बहुत आतंक था।
‘कलम आज उनकी जय बोल।’
वेद सदन, अबोहर, पंजाब-152116