दान और भेदभाव
एक हदीस है जो यह सिखाती नज़र आती है कि दान बिना किसी भेद-भाव के दिया जाना चाहिए। कोई मनुष्य अल्लाह की स्तुति करते हुए पहले एक परगामिनी को, फिर एक धनी को और फिर एक चोर को दान देता है। फरिश्ता उसके पास आया और बोला-”तुम्हारा दान मंजूर कर लिया गया है।“ क्योंकि यह दान एक ऐसा साधन बन सकता है ”जिसके द्वारा परगामिनी व्यभिचार से स्वयं को विरत कर सकती है, धनी व्यक्ति शायद सबक सीख सकता है और अल्लाह ने उसे जो दिया है उसे खर्च कर सकता है, और चोर उसके कारण आगे चोरी करने से विमुख हो सकता है।“ यह अनुमान किया जा सकता है कि उस व्यक्ति द्वारा किए गए दान के ये आश्चर्यजनक परिणाम इसलिए सम्भव हुए कि ये दान ”अल्लाह की स्तुति“ के साथ दिये गये थे (2230)।
author : ram swarup