बाइबल में परिवर्तन – राजेन्द्र जिज्ञासु

सत्यार्थप्रकाश की वैचारिक क्रान्तिःभले ही ईसाई मत, इस्लाम व अन्य-अन्य वेद विरोधी मतों की सर्विस के लिए कुछ व्यक्ति आर्यसमाज का विध्वंस करने के लिए सब पापड़ बेल रहे हैं, परन्तु महर्षि दयानन्द का अमर ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश निरन्तर अन्धकार का निवारण करके ज्ञान उजाला देकर वैचारिक क्रान्ति कर रहा है। पुराने आर्य विद्वान् अपने अनुकूल व प्रतिकूल प्रत्येक लेख व कथन पर ध्यान देते थे। अब वर्ष में एक बार जलसा करवाकर संस्थाओं की तृप्ति हो जाती है। ऋषि जीवन व ऋषि मिशन विषयक खोज में उनकी रुचि ही नहीं।

लीजिये संक्षेप में वैचारिक क्रान्ति के कुछ उदाहरण यहाँ देते हैंः-

पहले बाइबिल का आरम्भ इन शब्दों से होता थाः-

१. “In the beginning God created the heaven and the earth. And the earth was waste and void, and the darkness was upon the face of the deep and the spirit of god moved upon the face of the waters.”

अब ऋषि की समीक्षा का चमत्कार देखिये। अब ये दो आयतें इस प्रकार से छपने लगी हैंः-

“In the beginning God created the heavens and the earth. Now the earth was formless and empty, darkness was over the surface of the deep, and the spirit of god was hovering over the waters.”

प्रबुद्ध विद्वान् इस परिवर्तन पर गम्भीरता से विचार करें। हम आज इस परिवर्तन की समीक्षा नहीं स्वागत ही करते हैं। इस अदल-बदल से ऋषि की समीक्षा सार्थक ही हो रही है, क्या हुआ जो (पोल) से आपका पिण्ड ऋषि ने छुड़ा दिया। ऋषि का प्रश्न तो ज्यों का त्यों बना हुआ है।

“And God said, Behold, I have given you every herb yelding seed, which is upon the face of all the earth, and every tree, in which is the fruit of a tree yielding seed; to you it shall be for meat: and to every beast of the earth, and to every fowl of the air and to every thing that creepth upon the earth, wherein there is life, I have given every herb for meat: and it was so.”

पाठकवृन्द! यह बाइबिल की उत्पत्ति की पुस्तक के प्रथम अध्याय की आयत संख्या २९, ३० हैं। सत्यार्थप्रकाश के प्रकाश में हमारे विद्वान् मास्टर आत्माराम आदि इनकी चर्चा शास्त्रार्थों में करते आये हैं। अब ये आयतें अपने नये स्वरूप में ऐसे हैं। इन पर विचार कीजियेः-

Then God said, “I give you every seed-bearing plant on the face of the whole earth and every tree that has fruit with seed in it. They will be yours for food. And to all the beasts of the earth and all the birds in the sky and all the creatures that move on the ground-everything that has the breath of life in it- I give every green plant for food.”

ये दोनों अवतरण बाइबिल के हैं। दोनों का मिलान करके देखिये कि सत्यार्थप्रकाश की वैचारिक क्रान्ति के कितने दूरगामी परिणाम निकले हैं। हम इस नये परिवर्तन, संशोधन की क्या समीक्षा करें? हम हृदय से इस वैचारिक क्रान्ति का स्वागत करते हैं। ऋषि की कृपा से ईसाइयत के माथे से मांस का कलंक धुल गया। मांसाहार का स्थान शाकाहार को दे दिया गया है। मनुष्य का भोजन अन्न, फल और दूध को स्वीकार किया गया है। यह मनुजता की विजय है। यह सत्य की विजय है। यह ईश्वर के नित्य अनादि सिद्धान्तों की विजय है। यह क्रूरता, हिंसा की पराजय है। यह विश्व शान्ति का ईश्वरीय मार्ग है। बाइबिल के इस वैदिक रंग पर सब ईसाई बन्धुओं को हमारी बधाई स्वीकार हो।

8 thoughts on “बाइबल में परिवर्तन – राजेन्द्र जिज्ञासु”

  1. Changes are good but ultimately the aim is to make comfortable veg population to accept the Christanity… I must say there is no solution for Satyarth Prakash and any one on the earth if reads it once will never accept any religion other than Hinduisim/ Vedic. Thanks to Dayanand Ji for this!!

    1. सर आपने बाइबल के दो अनुवाद मे से दो आयात/श्लोक रखे है। मे ये जानना चाहता हु की आपने कोनसे बाइबल अनुवाद (version) का उपयोग किया है। मुजे आशा है की आपको पता होगा की आप ने बाइबल मे बदलाव के जो तर्क पेश किया है वो बाइबल के दो अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित है । बाइबल का ज्यादतर हिस्सा हिब्रू भाषा मे लिखा गया था। बाइबल की मूल हिब्रु भाषा की हस्तप्रतो मे कोई बदलाव नही हो सकता है।

      1. Very good point Prashant Ji.
        Though I do not know Hubru but I know one thing that the Bible distributed in India in schools or slum areas are not in Hibru and can be in Hindi, English or other regoinal languages from the latest english versions which are changing based on their understanding. Have a great day ahead!!

  2. How can one believe that the so called change in the verses has been introduced after ‘Styarth Prakash’?
    Can I have the proof of the same?

    1. Very good point Pritesh Ji.
      Though I do not have proof but you may consider that these changes happend due to PETA campaigns such as “Become Veg Love Animals” etc. Have a great day ahead bro!!

  3. The basic message of VED is purity in thoughts, and thereby purity in speech and finally purity in action. To have purity in action which is finally so necessary it is thoughts which have to be pure and for this one has to be kind to all and so to be vegetarian is no option but a must…VEDIC message is finally truth will come to light and it is truth that paves way for humanity.

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