Category Archives: वेद मंत्र

Dealing with corrupt persons

corrupt people

Dealing with corrupt persons  AV3.9

1.   कर्शफस्य विशफस्य द्यौः पिता पृथिवी माता  ।

यथाभिचक्र देवास्तथाप कृणुता पुनः  । ।AV3.9.1

हाथ पेर से काम करके  जीने वाले और बिना हाथ पेर के अपना जीवन  चलाने  वालों दोनो को प्रकृति ने समान रूप से जन्म दिया है. यह  प्रकृति का चक्र है जो इसी प्रकार से चलता रहता है.

2.   अश्रेष्माणो अधारयन्तथा तन्मनुना कृतं  ।

कृणोमि वध्रि विष्कन्धं मुष्काबर्हो गवां इव  । । AV3.9.2

(अश्रेष्माण: ) त्रिदोश रहित अनासक्त दयालु  मनन करनेवाले विचारशील जन ही (अधारयन) पालन पोषन करते हैं.   (विष्किन्धम्‌) कार्य प्रगति के मार्ग में प्रतिबन्धक सभी विघ्नों को (अधार्मिक भ्रष्टाचारी) जनों से मुक्त करने के लिए  उद्दन्ड पशुओं को जैसे मुष्टिका और बाहुबल से बधिया निर्वीर्य किया जाता है वैसे ही इन तत्वों को समाज में निर्वीर्य करो.

3.   पिशङ्गे सूत्रे खृगलं तदा बध्नन्ति वेधसः  ।

श्रवस्युं शुष्मं काबवं वध्रिं कृण्वन्तु बन्धुरः  । । AV3.9.3

(श्रवस्युम्‌) – (श्रवस्युम्‌) लोकैषणा यश को अपने साथ जोड़ने की कामना करने  वालों को . (शुष्मम्‌) वित्तैषणा – धन की कामना से शोषण करने वालों,(काबवम्‌) जीवन को अनुराग युक्त पुत्रैषणा पित्र मोह से ग्रसित क्रूर लोगों को (वेधस: ) विधि विधान जानने वाले ज्ञानी जन भिन्न भिन्न – नीतियों के कवच से (बध्रिम्‌ कृण्वन्तु) बधिया करो – उन  के प्रभाव को निष्फल करो .

4.   येना श्रवस्यवश्चरथ देवा इवासुरमायया  ।

शुनां कपिरिव दूषणो बन्धुरा काबवस्य च  । ।AV3.9.4

असुरों के समान मायावी छल कपट से अनुचित साधनों से अपनी कीर्ति और सम्पत्ति को चाहने वाले देशद्रोही क्रूर जन जो देवताओं के समान विचर रहे हैं उन क्रूर प्राणियों के बीच उत्पात मचा कर उन्हें आपस में ऐसे लड़ा  दो जैसे कुत्तों के बीच में उत्पाती बन्दर के आने से होता है.

5.    दुष्ट्यै हि त्वा भत्स्यामि दूषयिष्यामि काबवं  ।

उदाशवो रथा इव शपथेभिः सरिष्यथ  । । AV3.9.5

दुष्ट क्रूर  विघ्नकारी जनों को बांधकर ही तुम प्रगति के कार्य की योजना की शपथ ले कर तीव्र गति वाले अश्वो से युक्त रथों  से अपने मार्ग पर अग्रसर हो सकोगे.

6.   एकशतं विष्कन्धानि विष्ठिता पृथिवीं अनु  ।

तेषां त्वां अग्रे उज्जहरुर्मणिं विष्कन्धदूषणं  । । AV3.9.6

एक सौ एक (विष्किन्धानि ) कार्य प्रगति के मार्ग में प्रतिबन्धक रोक लगाने वाले (अधार्मिक भ्रष्टाचारी) जन जो पृथ्वी पर स्थापित है उन  से मुक्त करने के लिए (तेषाम्‌‌ अग्रे )  उन के बीच मुख्याधिकारी (ऊज्जहरुर्मणिं) शिरोमणि अधिष्ठाता नियुक्त क्रो जो (विष्किंधदूषणम्‌) विघ्नकारी जनों के प्रदूषन को दूर करे |

गृहस्थ के दायित्व

vedic householder

Duties of a Householder  

गृहस्थ के दायित्व – दान और पञ्चमहायज्ञ परिवार विषय  

अथर्व 6.122,

पञ्च महायज्ञ विषय

1.   एतं भागं परि ददामि विद्वान्विश्वकर्मन्प्रथमजा ऋतस्य  ।

अस्माभिर्दत्तं जरसः परस्तादछिन्नं तन्तुं अनु सं तरेम  । ।AV6.122.1

Wise man perceives that the bounties provided by Nature from the very beginning are only not be considered as merely rewards earned for his labor but considers himself as a trustee for all the blessings from Almighty to be dedicated for welfare of family and society. Dedication of His bounties ensures that life flows smoothly as normal even when the individuals are past their prime active life to participate in livelihood chores. (This system enables the human society to ensure sustainable happiness. People must dedicate their bounties in welfare and charity of family and society- by performing various Yajnas to protect environments, biodiversity and bring up good well trained progeny.)

संसार का विश्वकर्मा के रूप में परमेश्वर सृष्टि के आरम्भ से ही मानव को अनेक उपलब्धियां प्रदान करता है. बुद्धिमान जन का इस दैवीय कृपा को समाज और परिवार के प्रति समर्पण भाव से देखता है और पञ्च महायज्ञों द्वारा अपना दायित्व निभाता है.    इसी शैलि से सुंस्कृत सुखी समाज का निर्माण होता है. जिस में समाज सुखी और सम्पन्न बनता है. वृद्धावस्था को प्राप्त हुए जन भी आत्म सम्मान से जीवन बिता पाते हैं,पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित होता है.  ( यजुर्वेद का उपदेश “ईशा वास्यमिदँ  सर्वं यत्किञ्च जगत्या जगत्‌” भी यही बताता है कि जो भी जगत में हमारी उपलब्धियां हैं वे सब परमेश्वर की ही हैं. हम केवल प्रतिशासकTrustee हैं,  इस सब का मालिक तो परमेश्वर ही है. और हमारा दायित्व परमेश्वर की  इस देन को संसार,समाज,परिवार  के प्रति अपना दायित्व निभाकर सब की उन्नति को समर्पण करना ही है.)

भूत यज्ञ

2.   ततं तन्तुं अन्वेके तरन्ति येषां दत्तं पित्र्यं आयनेन  ।

अबन्ध्वेके ददतः प्रयछन्तो दातुं चेच्छिक्षान्त्स स्वर्ग एव  । ।AV6.122.2

Those who live by the ideals of their virtuous parents and utilize their bounties to dedicate themselves to the cause of providing for the society and environments as also take care and provide good education to their orphaned brothers,  make their own destiny to be part of a happy society and have a happy family life.

जो जन इस संसार में उन को मिली उपलब्धियों को एक यज्ञ का परिणाम मात्र समझते हैं वे (स्वयं इन यज्ञों को करते  हैं ) और सब ऋणों से मुक्त हो जाते हैं .

जो अनाथों के लिए सेवा करते हुए उन्हे समर्थ बनाने के अच्छे प्रयास करते हैं उन का जीवन स्वर्गमय हो जाता है.

अतिथियज्ञ , बलिवैश्वदेव यज्ञ व देवयज्ञ

3.   अन्वारभेथां अनुसंरभेथां एतं लोकं श्रद्दधानाः सचन्ते  ।

यद्वां पक्वं परिविष्टं अग्नौ तस्य गुप्तये दम्पती सं श्रयेथां  । ।AV6.122.3

This is an enjoined duty of the house holders to share with dedication and respectfully their food with guests, in to fire for latently sharing with environments and to the innumerable diverse living creatures.

दम्पतियों का  (गृहस्थाश्रम में) यह कर्तव्य है कि भोजन बनाते हैं उस को श्रद्धा के साथ अग्नि को गुप्त रूप से पर्यावरण की सुरक्षा, अतिथि सेवा, और और पर्यावरण मे जैव विविधता के संरक्षण मे लगाएं

यज्ञमय जीवन

4.   यज्ञं यन्तं मनसा बृहन्तं अन्वारोहामि तपसा सयोनिः  ।

उपहूता अग्ने जरसः परस्तात्तृतीये नाके सधमादं मदेम  । ।AV6.122.4

By setting an example of following a life devoted earn an honest living and fulfilling one’s duties in performing his duties towards environments, society and family development of an appropriate temperament   takes place. That ensures a peaceful heaven like happy atmosphere in family and off springs that ensures a comfortable life for the old elderly retired persons.

तप ( सदैव कर्मठ बने रहने के स्वभाव से ) और यज्ञ पञ्च महायज्ञ के पालन  करने से उत्पन्न  मानसिकता के विकास द्वारा  जीवन का उच्च श्रेणी का बन जाता  है. ऐसी व्यवस्था में, दु:ख रहित पुत्र पौत्र परिवार और समाज के स्वर्ग तुल्य जिव्वन में मानव की तृतीय जीवन अवस्था (वानप्रस्थ और उपरान्त) हर्ष  से स्वीकृत होती है.

परिवार के प्रति दायित्व (उत्तम सन्तति व्यवस्था)

5.   शुद्धाः पूता योषितो यज्ञिया इमा ब्रह्मणां हस्तेषु प्रपृथक्सादयामि  ।

यत्काम इदं अभिषिञ्चामि वोऽहं इन्द्रो मरुत्वान्त्स ददातु तन्मे  । ।AV6.122.5

Bring up your children to develop virtuous, pure, honest temperaments. Find suitable virtuous husbands for your daughters to marry, in order that they in their turn bring up good virtuous progeny for sustaining a good society.

पुत्रियों का  शुद्ध पवित्र पालन कर के  उत्तम ब्राह्मण गुण युक्त वर खोज कर उन से पाणिग्रहण संस्कार करावें. (जिस से समाज का) इंद्र गुण वाली और ( मरुत्वान्‌ -स्वस्थ जीवन शैलि वाली विद्वान) संतान की वृद्धि  हो.(इस मंत्र में वेद भारतीय परम्परा में संतान को ब्रह्मचर्य  पालन और उच्च शिक्षा के साथ स्वच्छ पौष्टिक आहार के  संस्कार दे कर ,अपने समय पर विवाहोपरांत  स्वयं गृहस्थ आश्रम में प के स्वस्थ विद्वान संतति से समाज  कि व्यवस्था का निभाने का दायित्व  बताया है.)

Right path & Falsehood

right and wrong path

Right path & Falsehood 

AV4.36 

1.तान्त्सत्यौजाः प्र दहत्वग्निर्वैश्वानरो वृषा  ।

यो नो दुरस्याद्दिप्साच्चाथो यो नो अरातियात् । ।AV4.36.1

(वैश्वानराग्नि) सब जनों का हितकारी बल और (तान्त्सत्यौर्जा) उन की सत्य से उत्पन्न हो कर  बरसने वाली शक्ति  की अग्नि ,(तान्‌ प्रदहतु) उन को जला डाले,  जो (न: )  हमें –सत्य पर चलने वालों को -(दुरस्यात्‌) दुरवस्था में फैंकें (च दिप्सात्‌ ) और हमें हानि पहुंचाएं (अथ य: वरातीयात्‌) और जो हम से शत्रुता का व्यवहार करते हैं.

2. यो नो दिप्साददिप्सतो दिप्सतो यश्च दिप्सति  ।

वैश्वानरस्य दंष्ट्रयोरग्नेरपि दधामि तं  । । AV4.36.2

जो बिना हिंसा किए अहिंसक ढन्ग से  और जो हिंसा से हमें  नष्ट करना चाहते हैं, उन्हें सब जनों के हितकारी बल की दाढ़ों में चबाने के लिए देते हैं .

3. य आगरे मृगयन्ते प्रतिक्रोशेऽमावास्ये  ।

क्रव्यादो अन्यान्दिप्सतः सर्वांस्तान्त्सहसा सहे  । । AV4.36.3

जो अमावस्या जैसे अन्धेरे में छिप कर गाली गलोज  दुष्प्रचार द्वारा हमें हानि  पहुंचाना चाहते हैं, उन मांसभक्षियों – राक्षसों को हम अपने साहस से दबा दें-  निष्क्रिय करें.

4. सहे पिशाचान्त्सहसैषां द्रविणं ददे ।

सर्वान्दुरस्यतो हन्मि सं म आकूतिरृध्यतां  । । AV4.36.4

(पिशाचान्‌) इन पिशाचों को (सहसा सहे) अपने बल से जीतता हूं , (एषां द्रविणं ददे) इन के धन को छीनता हूं, (दुरस्यत: सर्वान्‌ हन्मि) दुर्गति करने वाले सब विरोधियों को मारता हूं.   ( मे आकूति:  सनृध्यताम्‌ ) वह मेरा सत्सन्कल्प पूर्ण हो.

5. ये देवास्तेन हासन्ते सूर्येण मिमते जवं ।

नदीषु पर्वतेषु ये सं तैः पशुभिर्विदे  । । AV4.36.5

ये लोग जो देवताओं के समान हंसते हैं, अपने जीवन शैलि का मापदण्ड   सूर्य के समान  उच्च और सब को चकाचोंध करने का बनाते हैं, प्राकृतिक साधनों नदियों, पर्वतो, सब पशुओं जलचर इत्यादि  का शोषण करते हैं

6. तपनो अस्मि पिशाचानां व्याघ्रो गोमतां इव ।

श्वानः सिंहं इव दृष्ट्वा ते न विन्दन्ते न्यञ्चनं  । । AV4.36.6

जैसे गौओं के पालन करने वालों को व्याघ्र का भय होता है, वैसे ही इन (पिशाचों) रक्त पीने वालों को में तपाने वाला हूं. जैसे कुत्ते सिन्ह से घबढाते हैं , वैसे ही मेरे प्रभाव से वे दुष्ट लोग अपनी रक्षा का कोइ स्थान प्राप्त  नहीं कर सकते.

7. न पिशाचैः सं शक्नोमि न स्तेनैः न वनर्गुभिः ।

पिशाचास्तस्मान्नश्यन्ति यं अहं ग्रामं आविशे  । । AV4.36.7

मैं जिस ग्राम में प्रवेष करता हूं, उस ग्राम से रक्त पीने वाले, चोर , जंगल मे रहने वाले डाकु, सब का नाश हो जाता है.

8. यं ग्रामं आविशत इदं उग्रं सहो मम ।

पिशाचास्तस्मान्नश्यन्ति न पापं उप जानते  । । AV4.36.8

मेरे उग्र प्रभाव से पिशाचादि उस ग्राम से निकल जाते हैं. वहां लोगों के आचरण में पाप भावनाएं उत्पन्न नहीं होती.

9. ये मा क्रोधयन्ति लपिता हस्तिनं मशका इव ।

तानहं मन्ये दुर्हितान्जने अल्पशयूनिव  । । AV4.36.9

जो लोग व्यर्थ की झूट मूट बातों से क्रोध दिलाते हैं, वे एक हाथी को मच्छर जैसे तंग करते हैं. वे अहितकारी लोग जन समुदाय का क्षणिक जीवन वाले  अल्प कीड़ों की तरह से दुख बढ़ाते हैं .

10. अभि तं निरृतिर्धत्तां अश्वं इव अश्वाभिधान्या ।

मल्वो यो मह्यं क्रुध्यति स उ पाशान्न मुच्यते  । । AV4.36.10

(य: मल्व: ) जो मलिनात्मा व्यक्ति (मह्यं क्रुध्यति) मुझे क्रोध दिलाता है, (तं) उस को (निरृति: अभिधताम्‌) पापाधिष्ठात्री देवी सब ओर से जकड़ ले ( अश्वाभिधान्या अश्वम्‌ इव ) जैसे घोड़े बांधने की रस्सी  से घोड़े को.

वैदिक समाजवाद

 

equality

 

वैदिक  समाजवाद

1.सहृदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि व: । अन्यो: अन्यमसि हर्यत वत्सं जातमिवाघ्न्या॥ अ‍थर्व 3.30.1

तुम्हारे  हृदय में सामनस्व हो, मन द्वेष रहित हो,  एकीभाव हो. परस्पर स्नेह करो जैसे गौ अपने नवजात बछड़े से करती है.

2. अनुव्रत: पितु: मात्रा भवतु संमना । जाया पत्ये मधुमती वाचं वदतु श न्तिवाम्‌ ॥ अथर्व3.30.2

पुत्र पिता की आज्ञा पालन करने वाला हो. माता के साथ समान मन वाला हो. स्त्री पति के लिए मधुर और शान्ति दायिनी वाणी बोले.

3. मा भ्राताभ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा । सम्यञ्च: सव्रताभूत्वा वाचं वदत भद्रया  ॥ अथर्व 3.30.3

भाई भाई से द्वेष न करे, बहिन बहिन से द्वेष न करे.सब उचित आचार विचार वाले और समान व्रतानुष्ठायी बन कर आपस मे मृदु कल्याणकारी वाणी बोलें .

4.येन देवा न वियन्ति ना च विद्विषते मिथ: । तत्‌ कृन्मो ब्रह्म वो गृहे संज्ञान पुरुषेभ्य: ॥ अथर्व 3.30.4

जिस कर्म के अनुष्ठान से मनुष्य देवत्व बुद्धि सम्पन्न हो कर एक दूसरे से परस्पर मिलजुल कर रहते हैं, आपस में द्वेष नहीं करते , उन  के इस कर्म से ज्ञान प्राप्त कर के  एक्यमत उत्पन्न होता है.

5.ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो  मावि यौष्ट संराधयन्त: सधुराश्चरन्त: ॥

अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्व: संमनस्कृणोमि ॥ अथर्व 3.30.5

निज निज कर्मों के प्रति सचेत बड़ों के आदर्शों  से प्रेरित अपनाअपना उत्तरदायित्व समान रूप से वहन करते हुए साथ साथ चल कर, प्रत्येक के लिए प्रिय वचन बोलते हुए एक मन से साथ साथ चलने वाले  बनो.

6. समानी प्रपा सह वोsन्नभागा  समाने योक्त्रेसह वो युनज्मि ।

सम्यञ्चो sग्निं सपर्तारा नाभिमिवाभित: ॥ अथर्व 3.30.6

तुम्हारे जलपानके स्थान एक ही हों, तुमारा अन्न सेवन का स्थान एक हो,No untouchables  , No five star culture .  इस संसार में समान उत्तरदायित्व के वहन में तुम्हें एक जुए में  जोड़ता हूं. जिस के पहियों के नाभि चक्र के अरों – लट्ठों  की तरह  एक जुट हो कर अग्नि से यज्ञादि शुभ कर्म करो. ( यज्ञ जो संसार में श्रेष्ठ तम कर्म हैं उन का प्रतीक रूप अग्निहोत्र है. अग्नीहोत्र में मुख्य चारआधाराज्ञ आहुती होती हैं. प्रथम अग्नि को दूसरी सोम को, तीसरी इन्द्र को चौथी प्रजापति को.  सोम को आधुनिक भाषा में ideas, अग्नि को Fire,इन दोनों को मिला कर Ideas on Fire कहा जाता है. जब इन्द्र Entrepreneur इस अग्नि और सोम से प्रज्वलित होते

हैं तभी प्रजापति – संसार कि प्रगति के साधन बन कर संसार का पालन करते है. Entrepreneur fired by an idea becomes modern Henry Ford, Bill Gates and Steve jobs. They were not aiming to become rich and famous but were fired by their ideas to bring a Car, a computer, a more convenient communication aid to common man.   भारतीय इतिहास में  चाणक्य, महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद , सुभाषचन्द्र बोस,महात्मा गांधी इसी श्रेणी में आते हैं )

 

 

 

7.सध्रीचीनान्व संमनस्यकृणोम्येकश्नुष्ठीन्त्संवननेन सर्वान्‌ ।

देवाइवामृतं रक्षमाणा: सायंप्रात: सौमनसौ  वो अस्तु ॥ अथर्व 3.30.7

इस उपदेश को ग्रहण कर के तुम सब प्रतिदिन  सायं प्रात: की तरह सदैव एक दूसरे के सहयोगी  बन कर,समान मन वाले हो कर समान भोग करने हो कर मातृदेवों पितृदेवों की तरह सौमनस्य से संसार की अमरता की रक्षा करो.  ,

Healthy Long life by proper conduct

Healthy Long Life

Healthy Long life by proper conduct-

Refrain line is “व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा” by avoiding wrongful conduct I vow to attain long life !

 

पापनाशनम्‌

Healthy Mind

  1. वि देवा जरसावृतन्वि त्वं अग्ने अरात्या  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । ।AV3.31.1

देवता –मनुष्य  में दैवीय गुण बुढ़ापे से दूर रखते हैं, जैसे  अग्नि  कंजूसी से  दूर रहती   है ( अग्नि का गुण है कि सब को मुक्त हृदय से बिना कंजूसी के अपना सब कुछ सब को बांट देती है ) , इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Divine virtues keep the old age away. Take lesson from Homa fire, that without being selfishly miser generously shares with everyone all the ablutions made in to it, and be open hearted, forgiving and generous to all in life and lead a clean pure life.  Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

Healthy Body

  1.  व्यार्त्या पवमानो वि शक्रः पापकृत्यया  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । AV3.31.2

अपने जीवन में पवित्र आचरण द्वारा पुरुष, रोगादि पीड़ाओं से पृथक रह कर शक्तिशाली बना रहता है.  इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

By observing physical cleanliness, observing clean habits ,  living in clean environments and living on pure clean food keeps the body free of disease and maladies.  Thus by avoiding wrongful conduct attains long life.

 

Avoid wrong situations

  1. वि ग्राम्याः पशव आरण्यैर्व्यापस्तृष्णयासरन् ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.3

ग्राम्यपशु गौ घोड़ा हिंसक पशुओं व्याघ्र आदि से दूर रहते हैं , जल प्यास से दूर रहते हैं इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Domestic animals cows, dogs, horses stay away from carnivore. Thirst stays away from water.  Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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Straight thinking

  1. वी मे द्यावापृथिवी इतो वि पन्थानो दिशंदिशं  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.4

ये द्यौ: और पृथ्वी एक दूसरे से दूर रह कर ही चलते हैं, भिन्न भिन्न दिशाओं के मार्ग भी पृथक रहते हैं. इस प्रकार मैं समस्त पापों से पृथक रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Sunshine and Earth have separate paths, but still move together, different roads can lead to same destination. Learn to keep your mind on the objectives and do not get confused by different alternative paths. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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Equanimity keep mental balance स्वरविज्ञान

  1. त्वष्टा दुहित्रे वहतुं युनक्तीतीदं विश्वं भुवनं वि याति  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.5

त्वष्टा  –सूर्य,अपनी पुत्री किरणों  को दहेज की भांति उपहार के साथ भेज कर  इस एक रथ में जोड़ता है, किरणों  के लिए सब मार्ग से हट  जाते हैं. और चन्द्रमा का गृह स्थापित हो जाता है, जिस से समस्त मानसिक व्यवस्था सम्पन्न  होती है. – इस विषय को और स्पष्ट  करते हुए  यजुर्वेद18-40   “सुषुम्ण: सूर्य्यरश्मिश्चन्द्रमा गन्धर्वस्तस्य नक्ष्त्राण्यप्सरसो भेकुरयो नाम” – गंधर्वों –Cultured सुशिक्षित जनों में योग साधना से ,  दोनों नासिकाओं से पृथक पृथक श्वास द्वारा सूर्य नाड़ी और चंद्रनाड़ी सुषुम्णा बन कर सदा गति शील बन कर  मस्तिष्क और भौतिक शरीर की अध्यक्षता करती हैं  इस प्रकार मैं भी समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

( सूर्य की दुहिता रूपि रश्मियों के चन्द्रमा के गृह जाने को सूर्य की दुहिता से चन्द्रमा के विवाह की उपाधि दी जाती है. )

Exercise control on the left and right hemispheres of your brain to maintain the balance between emotions and pragmatism. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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Emotional intelligence

6.अग्निः प्राणान्त्सं दधाति चन्द्रः प्राणेन संहितः ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.6

अग्नि जाठराग्नि के रूप में अन्न के रसों द्वारा प्राणों नेत्र आदि इन्द्रियों का शरीर में परस्पर तालमेल बैठाती है. चंद्रमा सोम के द्वारा प्राण के आधार भूत उत्तम मन के साथ मिल  कर जीवन को पुष्ट करता है.  इस ज्ञान के आधार पर मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

(जीव कर्म करने में स्वतंत्र एक hardware जैसा है, इस का संचालन करने वाला सोम इस Hardware को चलाने वाला Software  है. तैतरीय के अनुसार  “सोमो राजा  राजपति:”, “सोमो विश्ववनि” . सोम ही विश्व का प्रजनन करने वाला है. )

Emotional intelligence exercises control not only the mental state for controlling behavior  but also proper coordination between all the physical organs by digestion of proper food and its transmission to different parts of human body. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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ब्रह्मचर्य – Brahmacharya

  1. प्राणेन विश्वतोवीर्यं देवाः सूर्यं सं ऐरयन् ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.7

वीर्य द्वारा विश्व के लिए प्राण दे कर सब देवताओं को सम्यक प्रस्तुत किया जाता है . इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर (वीर्य की रक्षा कर के)  क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

(इस संदर्भ मे यहां ऋग्वेद 8.100.1 “ अयं त एमि  तन्वा पुरस्ताद्विश्वे देवा अभि मा यन्ति  पश्चात| यदा मह्यं दीधिरो भागमिन्द्राssदिन्मया कृणवो वीर्याणि||” में वीर्य द्वारा  गर्भादान के साथ ही सब देवताइस शरीर में चले आते हैं )

All faculties that exercise control over physical faculties enter the ova through sperms in the fetus. By exercising control on protecting your sperms, one maintains all body faculties till long life. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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यहां प्रसिद्ध मंत्र “ तच्चक्षुर्देवहितं  शुक्रमुच्चरत | पश्येमशरद: शतम्‌ || RV 7.66.16 भी प्रासंगिक है . – शुक्र को ऊपर की ओर ले जा कर – ऊर्ध्वरेता बन कर चक्षुओं को स्वस्थ बना कर सौ वर्ष तक देखो.

 

Longevity is inherited दीर्घायु माता पिता से आती है.

8.आयुष्मतां आयुष्कृतां प्राणेन जीव मा मृथाः ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.8

स्वयं दीर्घायु वाले और दीर्घायु प्रदान करने वाले (माता पिता जैसे देवताओं के)  दीर्घायु प्राणों का सामर्थ्य मैं व्यर्थ न जाने दूं. इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.( इस मन्त्र में  में दीर्घायु का पारिवारिक देवताओं माता पिता का के स्वयं दीर्घायु होने से सम्बंध बताया है , जिसे आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि दीर्घायु वंश गत inherited trait होती है.)

Long life is an inherited trait. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

Lead a zestful life पुरुषार्थी  जीवन

9. प्राणेन प्राणतां प्राणेहैव भव मा मृथाः ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.9

सदैव जीवित उत्साही कर्मठ मन्यु से प्रेरित जनों के जीवन से ही प्ररणा ले  कर जी. प्रकार समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Adopt role models as people that lead an active zestful life. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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Vitamin D सूर्य नमस्कार

10. उदायुषा सं आयुषोदोषधीनां रसेन ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । AV3.31.10

उदय होते हुए सूर्य उषा के ओषधि रूप रसों को प्राप्त करके ही मैं दीर्घायु को प्राप्त करुं. इस प्रकार मैं समस्त ( प्रात; कालीन सूर्य के दर्शन न कर पाने की आलस्य वृत्ति से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं

(इस विषय पर वेदों से अत्यंत आधुनिक विज्ञान इस प्रकार से मिलता है .

प्राता रत्नं प्रातरित्वा दधाति तं चिकित्वान् प्रतिगृह्या नि धत्ते

तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचते सुवीरः ।। 1-125-1

प्रातःकाल का सूर्य उदय हो कर बहुमूल्य रत्न प्रदान करता है। बुद्धिमान उन रत्नों के महत्व को जान कर उन्हें अपने में धारण करते हैं।तब उस से मनुष्यों की आयु और संतान वृद्धि के साथ सम्पन्नता और पौरुष बढ़ता है।

यही विषय ऋग्वेद के निम्न मंत्र में भी मिलता है.

 कृष्णायद्गोष्वरुणीषु सीदद्‌ दिवो नपाताश्विना हुवे वाम |

वीथं मे यज्ञमा गतं मे अन्नं ववन्वासा नेष्मस्मृतध्रू  ||

ऋ 10.61.4 (सायण भाष्य )

जब लाल किरणों में काला तम होता है उस समय हे द्यौ के (प्रकाशमान  आकाश ) के पुत्रो मैं आप को बुलाता हूं. आप आ कर मेरे अन्नमयकोश को मेरे लिए (अस्मृतध्रू) किसी प्रकार का द्रोह रोगादि हिंसा रहित कीजिए || यह दोनो देवता उस समय के सब को नये जीवन देने वाले प्रकाश  के वाची हैं इसी लिए देवभिषक कहलाते हैं. ||

 

 (वैज्ञानिकों के ­नुसार केवल UVB-Ultra Violet B –  किरणें , जो पृथ्वी पर तिरछी पड़ती हैं, वे ही संधि वेला प्रातः सायं की सूर्य की  किरणें विटामिन डी उत्पन्न करके हमारे अन्न के पोषन द्वारा हमें सर्व रोग रहित बनाती हैं।)

 

  According to modern science Solar radiations have the following details of spectrum. Ultra violet and visible portion

of radiations are of great significance. 

Name

Abbreviation

Wavelength range
(in nanometres)

Energy per photon
(in electronvolts)

Notes / alternative names

Visible

VIS

760 – 380 nm

1.63 – 3.26 eV

 

Ultraviolet

UV

400 – 100 nm

3.10 – 12.4 eV

 

Ultraviolet A

UVA

400 – 315 nm

3.10 – 3.94 eV

long wave, black light

Ultraviolet B

UVB

315 – 280 nm

3.94 – 4.43 eV

medium wave

Ultraviolet C

UVC

280 – 100 nm

4.43 – 12.4 eV

short wave, germicidal

 Ultraviolet

NUV

400 – 300 nm

3.10 – 4.13 eV

visible to birds, insects and fishes

Middle Ultraviolet

MUV

300 – 200 nm

4.13 – 6.20 eV

 

Far Ultraviolet

FUV

200 – 122 nm

6.20 – 10.16 eV

 

Hydrogen Lyman-alpha

H Lyman-α

122 – 121 nm

10.16– 10.25 eV

 

Extreme Ultraviolet

EUV

121 – 10 nm

10.25 – 124 eV

 

Vacuum Ultraviolet

VUV

200 – 10 nm

6.20 – 124 eV

 

X-rays

 

10 – 0.001 nm

124 eV – 1.24 MeV

 

Soft X-rays

XUV

10 – 0.1 nm

124 eV – 12.4 keV

X-ray Ultraviolet

Hard X-rays

 

0.1 – 0.001 nm

12.4 keV – 1.24 MeV

 

 

 

UVB (Ultraviolet B)  rays  have 280 to 315 nm ( (nano meters) wave length And are most prominent in the rising Sun rays ( Morning time) The UVB is able to penetrate the Ozone layer in the stratosphere as shown below.  

 

 

 

 

 

      

These UVB rays are able to enter only the ‘Epidermis’ outer skin layers of human body as shown below. And create a hormone that is called by the name Vitamin D.

This is the most important contribution of Sun to direct human health. Cows, sheep etc that have fur on their skin also generate Vitamin D in their Milk and flesh.

(Incidentally Buffaloes do not have a fur coat and being black are uncomfortable in direct sun light. Thus buffaloes’ milk is very deficient in Vitamin D. That is one reason as to how buffalo milk does not find mention in Vedas.)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतव: ! दृषे विश्वाय सूर्यम् !! 1/50/1

उदय होते सूर्य की किरणें जातवेदसं ईश्वर की कृपा से उत्पन्न कल्याणकारी पदार्थों के वाहक के रूप मे प्राप्त होती हैं, जब विश्व के लिए  सूर्य दृष्टीगोचर होता है.

When the morning Sun rises on the horizon, the learned realize sun’s rays are vending ( are the Vahan of ) divine gifts ( Vitamin D and photo biological products) for them . While for ordinary persons only rising of the Sun is the observation.)

Derive medicinal strength (in the form of hormon from morning sun’s rays for a healthy body. Thus by avoiding wrongful actions by being lazy and not get up in the morning to get advantage of morning sun for Vitamin D, attain long life.

Protect Environments.पर्यावरण सुरक्षा

11. आ पर्जन्यस्य वृष्ट्योदस्थामामृता वयं ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । AV3.31.11

प्रकृति   वर्षा के समान के समान अमृत के तत्व प्रदान करती है. मैं इन प्राकृतिक साधनों के प्रयोग से दूर जा कर प्रकृति के विरुद्ध समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Natural elements shower their bounties like rain from heavens for health and longevity. Do not spurn natural living and always protect the environments to live a long healthy life.