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Advice to Teachers on education from Vedas

gurukul

RV 3 .12 Advice to Teachers on education

Devtaa: Indragni = Self motivated & Fired with invincible spirit to always successfully achieve his goal.

देवता:-इन्द्राग्नि: = उत्साह और ऊर्जा से  पूर्ण सदैव अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मे विजयी व्यक्ति

Create fire in their belly to be ultimate Doers.

ऋषि: गाथिनो विश्वामित्र:

प्रभु का गायन करने वाला सब  के साथ बन्धुत्व को अनुभव करता है और ‘ सखायस्त्वा वृणीमहे हम सब परस्पर सखा बन कर ही प्रभुका वरण कर सकते हैं यही भावना सभी से स्नेह करने वाला प्राणीमात्र का मित्र‘विश्वामित्र’ बना देती है.

शिक्षकों को उपदेश = विद्यार्थियों में (इन्द्राग्नि: ) उत्साह पूर्वक सदैव अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मे विजयी व्यक्तित्व बनाएं

1.इन्द्राग्नी आ गतं सुतं गीर्भिर्नभो वरेण्यम | 
अस्य पातं धियेषिता ||ऋ3.12.1

To successfully lead their life, instil among your wards the students the temperaments of Self motivation fired with invincible spirit to always successfully achieve their  goals, and develop   physical and mental strengths with excellence of speech, intelligence & competence.

अस्य सुतं- इन बच्चों की (जीवन में), पातं – रक्षाके लिए, इन्द्राग्नी – जीवन में उत्साह पूर्वक कर्मपरायणता जैसे इंद्र के गुण और शरीर में अपने खान पान जीवन शैली से  ऊर्जा और स्वास्थ्य जैसी अग्नि की स्थापना करने के लिए , आ गतं- आ कर,गीर्भिर्नो – उत्तम वाणियों द्वारा, धियेषिता – उत्तम  बुद्धि के विकसित करें.

Social Community Responsibility 
2. इन्द्राग्नी जरितुः सचा यज्ञो जिगाति चेतनः | 
अया पातमिमं सुतम ||ऋ3.12.2

Develop sense of responsibility & temperaments to evolve knowledge creation and execute projects for community welfare.

इन्द्राग्नी के प्रभाव से चेतना और बुद्धि के विकास से समस्त संसार के पालन का प्रबंध उपलब्ध करवाओ.

Seminars-Workshops
इन्द्रमग्निं कविच्छदा यज्ञस्य जूत्या वृणे | 
ता सोमस्येह तृम्पताम || ऋ3.12.3

Hold seminars of experts to focus on current problems to arrive at consensus solutions and adopt them

कविच्छदा- विद्वानों के सत्संग से  , यज्ञस्य- धर्मसम्बंधी व्यवहार से , तृम्पताम- सब के सुख के लिए, इन्द्रमग्निं- समस्याओं को भस्म करने की योजना के  निर्णयों को, वृणे- स्वीकार करें.

Develop Problem Solving Talents

तोशा वृत्रहणा हुवे सजित्वानापराजिता | 

इन्द्राग्नी वाजसातमा ||ऋ3.12.4

Develop talents to develop fail safe solutions to problems, and ability to balance the allocation of resources for (R&D) knowledge development and execution of the projects.

वृत्र हणा- समस्याओं के दूर करने के लिए , तोशा – नाश कारक बाधाओं का , सजित्वानापराजिता –  विज्ञान शील पराजित न होने वाले प्रगति शील समाधानों द्वारा , वाजसातमा हुवे – समस्त ज्ञान विज्ञान के साधनों  और ऊर्जा की शक्तियों को प्राथमिकता के अनुसार महत्व दें.

Recognize the talented   
5.प्र वामर्चन्त्युक्थिनो नीथाविदो जरितारः | 
इन्द्राग्नी इष आ वृणे || ऋ3.12.5

Give recognition to research projects that propose strategies for growth and welfare of socity by participatory democratic processes.

वामर्चन्त्य – इन निर्णयों योजनाओं को कार्यान्वित करने वाले  दोनों -विद्वत्‌जन और प्रशासनीय कार्य कर्ता,  नीथाविदो- नम्रनिवेदन से , उक्थिनः उल्लेख के योग्य हैं.

Effectiveness of strategy  

6. इन्द्राग्नी नवतिं पुरो दासपत्नीरधूनुतम | 
साकमेकेन कर्मणा ||ऋ3.12.6

A single strategy implementation should be able to relegate the situations that bring harm to (90%) most of the community

एक ही सफल योजना के कार्यान्वित करने से अधिकांश (90%) समाज के कष्टों का निवारण सम्भव होता है.

Well conceived strategies 
7. इन्द्राग्नी अपसस्पर्युप प्र यन्ति धीतयः | 
ऋतस्य पथ्या अनु || ऋ3.12.7

To follow well meditated, fair and just strategies in all situations in short term and long term.

अपसस्पर्युप- कर्म मार्ग में सब ओर और समीप से, ‘ प्र यन्ति धीतय:’ बुद्धिमत्ता पूर्वक   ‘ऋतस्य पथ्या अनु’ सत्य मार्ग का अनुसरण करें

Staff & Line Function

8. इन्द्राग्नी तविषाणि वां सधस्थानि प्रयांसि च | 
युवोरप्तूर्य्यं हितम्‌ || ऋ3.12.8

To cultivate both the staff functions and line functions- the planners and executors should perform in tandem to implement all projects efficiently.

योजना आयोग और  कृयान्वन पक्ष  राजाऔर शासन  एक दूसरे के पूरक  बन के समस्त योजनाओं को शीघ्रता से सफल बनाते हैं .

Staff & Line Function

9.इन्द्राग्नी रोचना दिवः परि वाजेषु भूषथः | 
तद्वां चेति प्र वीर्य्यम्‌ ||ऋ3.12.9

राजा और शासन दोनों के पराक्रम और कर्मण्यता से सूर्य की ज्योति से प्रकाशित दिन के समान उज्वल समृद्ध समाज/राष्ट्र का निर्माण सम्भव है |

By the joint dedicated efforts of planning and executive immense welfare and prosperity of the community is possible.

Vedas on Nutrition Science

veda and nutrition

Vedas on Nutrition Science (part 1)

Rig Ved, 2-40 add RV1-187,RV5.48

AV 3.24, AV 2-26

अन्न विषयः RV1/187

भोजन से पूर्व प्रार्थना

अन्नपते अन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः ।

मम दातारं तारिषऽ ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे ।।

यजु 11-83

Oh  Mighty provider of our food- our Chef provide us with food that is free from any harmful organisms and that provides great strength.

Oh provider of food, I and my cattle both should be satiated with your food and good measure of energy.

   About FOOD

ऋषिः अगस्त्यो मैत्रावरुणि-।-देवता -अन्नम्

Annam RV Rig Veda Book 1 Hymn 187

पितुं नु स्तोषं महो धर्माणं तविषीम | 
यस्य त्रितो वयोजसा वृत्रं विपर्वमर्दयत् ||ऋ1/187/1

(यस्य) जिस का(त्रित:) मन वचन कर्म से (वि,ओजसा)विविध प्रकार के पराक्रम तथा उपाय से (विपर्वम)अङ्ग उपाङ्गों से पूर्ण जैसे काट, छांट, बीन, छील, पीस कर(वृत्रम) स्वीकार करने योग्य धन, यहां पर धन से अन्न के सन्दर्भ मे तात्पर्य लें,खाने के योग्य (अर्दयत) प्राप्त करे, (नु) शीघ्र अन्न के संदर्भ मे ताज़ा,जैसे  दुग्ध के संदर्भ मे धारोष्ण बासी पुराना रखा हुवा नही     (पितुम) ओषधि रूप अन्न(मह:) बहुत (धर्माणम) गुणकारी स्वभाव वाले अन्न होते हैं  (तविषीम)  जिन के गुणों की  (स्तोषम) प्रशंसा करते हैं.( Freshly harvested- not artificially treated for extended shelf life)
स्वादो पितो मधो पितो वयं त्वाववृमहे | 

अस्माकमविता भव || ऋ1/187/2

(स्वादो) स्वादु(पितो)पान करने योग्य जलादि पदार्थ (मधो) मधु के समान (High Brix number)( त्वा) ऐसे पेय पदार्थों को  (वयम) हम सब  (ववृमहे) ग्रहण करें(अस्माकम) इस अन्नपान के दान से (अविता) हमारे शरीर, मस्तिष्क की सुरक्षा,वृद्धि  (भव) सम्भव हो.
उप नः पितवा चर शिवः शिवाभिरूतिभिः | 
मयोभुरद्विषेण्यः सखा सुशेवो अद्वयाः || ऋ1/187/3

(पितो)अन्न व्यापक कराने वाला परमात्मन(मयोभू: )सुख की भावना कराने वाले (अद्विषेण्य) किसी से द्वेष न करने वाले, सब को एक जैसा अन्न उपलब्ध करवाने वालेवाले,हमारे लिए (सुशेव:)सुंदर और सुख युक्त (अद्वया:) जिस मे द्वंद्व भाव न रखने वाला (सखा) वह मित्र आप, हे परमात्मन (शिवाभि:) सुखकारिणी वह अन्न (ऊतिभि:)रक्षा , तृप्ति, वृद्धि, तेज (न:) हम लोगो के लिए (शिव:) सुखकारी (उप,आ, चर) समीप अच्छे प्रकार से प्राप्त कराइये,( Zero Food Miles)
तव त्ये  पितो रस रजांस्यनु विष्ठिताः | 
दिवि वाता इव श्रिताः || ऋ1/187/4

(पितो)अन्नव्यापिन परमात्मा (तव ) उस अन्न के बीच जो (रसा: ) स्वादु खट्टा मीठा तीखा चरपरा आदि छह (मीठा,खट्टा,लवण,कटु चरपरा,तिक्त कडुवा और कषाय कसैला) (दिवि) अंतरिक्षा  मे (वाताइव) पवनों के समान (श्रिता) आश्रय को प्राप्त हो रहे हैं (त्ये) वे

(रजांसि)लोकलोकांतरों को  ( अनु, विष्ठिता: ) पीछे प्रविष्ट होते हैं.( Diet should consist of all natural tastes and colors of eatables)
तव त्ये पितो ददतस्तव स्वादिष्ठ ते पितो | 
प्र स्वाद्मानो रसानां तुविग्रीवाइवेरते ||ऋ1/187/5

(पितो) अन्नव्यापौ पालक परमात्मन (ददत)देतेहुवे (तव) आप के जो अन्न वा(त्ये) वे पूर्वोक्त रस हैं (स्वादिष्ट)अतीव स्वादुयुक्त(पितो)पालक अन्नव्यापक परमात्मन (तव)आप के  उस अन्न के सहित  (ते) वे रस (रसानाम)मधुरादि रसों के बीच (स्वाद्मान:)अतीव स्वादु(तुविग्रौवाइव)जिन का प्रबल गला (develops good vocal faculties) उन जीवो के समान (प्रेरते)प्रेरणा देते अर्थात जीवों को प्रीति उत्पन्न कराते हैं.
त्वे पितो महानां देवानां मनो हितम् | 
अकारि चारु केतुना तवाहिमवसावधीत् ||ऋ1/187/6

(पितो) अन्नव्यापी पालनहार परमेश्वर (तव) जिस आप की  (अवसा) कृपा  से सूर्य (अहिम)मेघ को (अबधीत) हन्ता है (केतुना)विज्ञान से जो (चारु)श्रेष्ठ तर (अकारि)किया जाता है वह (महानाम)महात्मा पूज्य (मन)मन(त्वे)आप में (हितम) धरा है,प्रसन्न है ( Suggesting possible artificial rains)

यददो पितो अजगनविवस्व पर्वतानाम् | 
अत्रा चिन्नो मधो पितोSरं भक्षाय गम्याः ||ऋ1/187/7

(पितो) हमारा पोषण करने वाला  (यत) जब यह (अद:)  अन्न(अजगन) प्राप्त होता है (विवस्व) गुणवान(मघोपितो) स्वादिष्ट अन्न (अत्र,चित)(पर्वतानाम) पर्वतों से उर्वरकता युक्त (न: भक्षायअरमगम्या)  हमारे खाने के लिए उप्लब्ध हो

यदपामोषधीनां परिंशमारिशामहे | 
वातपे पीव  इद्भव || ऋ1/187/8

(वातापे) भौतिक शरीर (अपाम ओषधीनाम्)  तरल जल ओषधी पदार्थ इत्यादि (यतआरिशामहे पीब:) जो हम खाते हैं पी कर (इत भव) स्वस्थ हृष्ट पुष्ट  करें.

यत्ते सोम गवाशिरो यवाशिरो भजामहे | 
वातापे प्पेब इद्भव || ऋ1/187/9

(सोम) बुद्धि पूर्वक (गवाशिर: यवाशिर: भजामहे) गौ दुग्ध यव वनस्पति इत्यादि का भोजन जब हम गृहण करते हैं(ते) से (यत वातापे पीब: इत भव) जो हम पी कर गृहण करते हैं (खाना भी पी कर गृहण होता है)हमारे शरीर को स्वस्थ ह्रष्ट पुष्ट करे.

करम्भ ओषधे भव पीवो वृक्क उदारथिः | 
वातापे पीब इद्भव || ऋ1/187/10

(ओषधे)(करम्भ: ) (उदारथि: )( वृक्क: )(पीब: ) (भव)

( वातापे) (पीब: ) (इत) (भव) जठराग्नि को प्रदीप्त करने और पवन आदि से मुक्ति प्राप्त हो.

तं त्वा वयं पितो वचोभिर्गावो न हव्या सुषूदिम | 
देवेभ्यस्त्वा सधमादमस्मभ्यं त्वा सधमादम् ||ऋ1/187/11

(पितो) (तम) (त्वा) (वचोभि: ) (गाव: )(न) (वयम) (हव्या) (सषूदिम)(देवेभ्य: )( सधमादम) (त्वा) (अस्मभ्यम)(सदमाधम) (त्वा) जैसे गौ इत्यादि तृण घास खा कर रस दूध देती हैं उसी प्रकार अन्नदि से श्रेष्ठ भाग ग्रहण करा के आनन्द से सब रहें.

RV2.40

Rishi: Gritasamad, Devta  SomaPushano

 2-40

ऋषिः गृत्समद् भार्गवः शौनकः  देवताः सोमापूषणौः

( Note: The Rishi of this Sukta-Chapter- is Gritsamad- The Intelligent one who wants to bring cheerfulness around. The Devta- Topic- is SomaPushna-  intelligent Nutritional Strategies i.e. the science of Nutrition )

सोमापूषणा जनना रयीणां जनना दिवो जनना पृथिव्याः।

जातौ विश्वस्य भुवनस्य गोपौ देवा अकृण्वन्नमृतस्य नाभिः ।।  2-40-1

Nutritionists are the generators of ‘wealth’  through Nutritive food. From good food comes  intellect that  generate riches and activities on  the earth and outer space. From its very inception they are the guardians of sustainability of this earth.

अथ सौम्यम् ।अन्नं वै सोमोऽन्नेनैव तत्प्रजापतिः पुनरात्मानमाप्याययतान्नमेनमुपसमावर्ततान्नमनुक्रमात्मनोऽकुरुतान्नेनोऽ एवैष एतदाप्यायतेऽन्नमेनमुपसमावर्तते ऽन्नमनुकमात्मनः कुरुते। शतपथ 3918

तद्यत्सारस्वतमनु भवति  वाग्वै सरस्वत्यन्नं सोमस्तस्माद्यो वाचा पसाम्यन्नादोहैव भवति। शतपथ 3919

 2.  इमाव देवौ जायमानौ जुषन्ते मौ तमांसि गूहतामजुष्टा 

आभ्यामिन्द्रः पक्वामामास्वन्तः सोमापूषभ्यां जनदुस्रियासु ।।  2-40-2

In their very beginning the gloom of lack of nutrition is dispelled by emergence of milk in young immature females. (Mothers, Cows, and rains from clouds)

3. सोमापूषणा रजसो विमानं सप्तचक्रं रथमविश्वमिन्वम् 

विषूवृतं मनसा युज्यमानं तं जिन्वमथो वृषणा पञ्चरश्मिम् ।।  2-40-3

( Human body is likened to  a chariot with five controlling reins- the five PrAAnas पञ्च प्राण- अपान,व्यान,उदान, समान और मन) Nutrition makes a strong performing  creative  person  ( likened to a वृषभ  a performing bull), who manages the available  resources  to enable movements on this earth and beyond ( Outer Space) ( There is reference to a possible space vehicle equipped with seven wheels or perhaps booster rockets?

4. दिव्यन्यः सदनं चक्र उच्चा पृथिव्यामन्यो अध्यन्तरिक्षे 

तावस्मभ्यं पुरुवारं पुरुक्षं रायस्पोषं वि ष्यतां नाभिमस्मे ।।    2-40-4

The resulting activities from good nutrition give rise to desirable and much sought after health, wealth , fame  and progeny on this earth and  for control over outer space.

5. विश्वान्यन्यो भुवना जजान विश्वमन्यो अभिचक्षाण एति 

सोमापूषणाववतं धियं मे युवाभ्यां विश्वाः पृतनः जयेम ।।   2-40-5

While on one hand it has a role in creating the existing situations in life, on the other hand it is guided  by its wisdom to take measures for  correcting any unbalances, to defeat destructive forces.

6. धियं पूषा जिन्वतु विश्वमिन्वो रयि सोमो रयिपतिर्दधातु 

अवतु देव्यदितिरनर्वा बृहद् वदेम विदथे सुवीरः ।।

RV 2-40-6

May the supreme nutrition provider पूषा and †ÖפüŸµÖ- Sun, feed our intellects ( Can we see a link with Omega 3 and solar radiation for brain development ?), and  give us  wisdom to have  health wealth, wisdom, progeny and shun unsustainable activities to bring welfare to the entire society.

Vedas on Nutrition  ( Part 2)

1.   तयो रिद् घृतवतत्पयो विप्राः रिहन्ति धीतिभिः।

गन्धर्वस्य ध्रुवे पदे ।।   1-22-14

घृतवतत्पयो घृत  तत् पयः  Fats and milk bearing those fats गन्धर्वस्य –gandharwas are the mythical characters existing in the space between earthly humans ( untouched by civil reflective  behaviors, emotions, feelings) and heavenly Dewataas. Gandharwas are said to sustain the society by providing life sustaining strategies. गन्धर्वस्य ध्रुवे पदे  – In the footsteps of civilized high position persons- the intelligent persons partake of fats and fat bearing milk very cautiously.

AV3.24

ऋषि: भृगु , देवता: वनस्पति: प्रजापति:

 वनस्पति: Agriculture produce

1. पयस्वतीरोषधय: पयस्वन्मामकं वच:। अथो पयस्वतीनामा भरेsहं  सहस्रश: ॥ अथर्व 3.24.1

Speak about growing such produce that has nutritional and medicinal qualities, and fill its thousands of bags in warehouses.

उस (अन्न) की (उत्पादन की) बात करो जो पौष्टिक और ओषधि है. सहस्रों बोरों मे उस का भंडारण करो

2. वेदाहं पयस्वन्वतं चकार धान्यं बहु । सम्भृत्वा नाम यो देवस्त्वं वयं हवामहेयोयो अयज्वानो गृहे ॥ अथर्व 3.24.2

Spread knowledge about growing such food in abundant quantities.  Ensure that everybody has equal access to such food like Nature’s bounties. If some persons engage in storage of food (to cause shortages and deprive public access) food stuff from their warehouses should be ordered for public distribution.

उस ज्ञान का विस्तार करो जिस के द्वारा इस प्रकार का उत्तम अन्न बहुलता से उत्पन्न किया जा सके . जिस प्रकार सब को समान रूप से प्रकृति की सब वस्तुएं सम्भरण देवता द्वारा उपलब्ध रहती हैं उसी प्रकार यह अन्न भी सब को समान रूप से उपलब्ध रहना चाहिए. जिन स्वार्थी (अयज्वन जनों – यज्ञ न करने वाले) के घरों में इस अन्न का  भंडार हो उसे सब साधारण जनों को उपलब्ध करो.  

3. इमा या: पञ्च  प्रदिशो मानवी: पञ्च कृष्टय: । वृष्टे शापं नदीरिवेह स्फातिं समावहान्‌ ॥ अथर्व 3.24.3

All sections of society at all times and in all situations should have access to food in the same manner as rivers make available waters after rains.

(पञ्च प्रदेश पञ्च मानव) सब  समाज –ब्राह्मण ,क्षत्री ,वैश्य,शूद्र, निषाद, सब परिस्थितियों दिशाओं पूर्व,पश्चिम, दक्षिण, उत्तर और मध्य स्थान अंतरिक्ष ( पृथ्वी से ऊपर यान इत्यादि)  में इस अन्न की समृद्धि को ऐसे प्राप्त करें जैसे वर्षा के पश्चात नदियां  समान रूप से ज;ल सब को प्रदान करती हैं.

4. उदुत्सं शतधारं सहस्रधारमक्षितम्‌ । एवास्माकेदं धान्यं सहस्रधारमक्षितम्‌ ॥ अथर्व 3.24.4

Like hundreds and thousands of perennial streams this flow of food supply should be perennial and none exhausting.

बारहमासी अविरल बहने वाले सहस्रों झरनों की तरह  यह अन्न के स्रोत भी अविरल और कभी क्षीण न होने वाले हों

5. शतहस्त समाहर सहस्रहस्त सं किर । कृतस्य कार्यस्य  चेह स्फातिं समावह ॥ अथर्व 3.24.5

Hundreds of Farm hands feed thousands of mouths. Only this kind of public welfare strategy brings progress and prosperity in the society. (Earn by hundred hands and distribute in charity by thousand hands. Only such temperaments sustain a healthy society)

सौ हाथों वाले कृषक जन सहस्र जनों के लिए यह उपलब्ध करें .इस प्रकार की मगल वर्षा से समाज की वृद्धि और उन्नति हो. ( सौ हाथों से कमा और हज़ार हाथों से दान कर ,इसी वृत्ति से समाज का कल्याण होता है )

 

6. तिस्रो मात्रा गन्धर्वाणां चतस्रो गृहपत्न्या: । तासां या स्फातिमत्तमा तया त्वाभि मृशामसि ॥ अथर्व 3.24.6

Divide the revenues from Food production into seven parts. Three parts should be devoted to education, research and public services, four parts should be the share of housewives that run the households, if any surplus is conceived  the eighth part shall go to enrich the nation to build its strengthen.

इस उत्पादन के तीन भाग शिक्षा कार्य कौशल और अनुसंधान के लिए प्रयोग में लाए जाएं, चार भाग गृह पत्नियों को परिवार के पालन हेतु उपलब्ध होना चाहिए. यदि कुछ अधिक उपलब्धि हो तो आठवां भाग राष्ट्र को उन्नत बनाने में प्रयोग किया जाए.

7. उपोहश्च समूहश्च क्षत्तारौ ते प्रजापते । ताविहा वहतां स्फातिं बहुं भूमानमक्षितं ॥अथर्व3.24.7

Farmers that produce the food and administrator that control utilization of the farmers’ bounties are like the two wheel of the carriage that takes a nation forward.  Their coordinated efforts can ensure that food supplies are always available in right quantities. 

खाद्यान्न का उत्पादन करने वाले और उस से  प्राप्त धन का सदुपयोग करने वाले दो समूह इस समाज को सुचारु रूप से चलाने वाले दो सारथी हैं.

वे दोनों समृद्धि को लाएं, हमारा अन्न विपुल हो, सदैव वर्द्धनशील हो और कभी समाप्त न हो.          

Gambling & Vedas

dice and mahabharat

Gambling & Vedas

 RV 10.34

ऋ 10.34

प्रावेषा मा बृहतो मादयंति प्रवातेजा इरिणे वर्वृताना: !

सोमस्येव मौजवतस्य भक्षो विभीदको जागृविर्मह्यमच्छान् !! ऋ10/34/1

Rolling of dice on the board attract me like rolling of water down the desert . I get drunk like imbibing sweet wine at the sight of these rolling dice. These dice though made of विभीतक – Terminalia Belerica बहेडा – wood or seeds, are indeed alive and indeed speak to me and lead me astray.

 

न मा मिमेथ न जिहीळ एषा शिवा सखिभ्य उत मह्यमासीत्‌ |
अक्षस्याहमेकपरस्य हेतोरनुव्रतामप जायामरोधम्‌ || ऋ10.34.2

Here is my wife who never treats me with disrespect, nor shows her being ashamed of my ugly behavior, has been a well wisher  and a great help to me and my family/friends. I have   even abandoned such a loving wife, for love these Dice.
द्वेष्टि श्वश्रूरप जाया रुणद्धि न नाथितो विन्दते मर्डितारम |
अश्वस्येव जरतो वस्न्यस्य नाहं विन्दामि कितवस्य भोगम || ऋ10.34.3

Even his wife deserts a gambler. Even his mother in law  despises him.  Even as he begs for  no body lends him any help. A gambler becomes useless like an old horse, and receives neither comfort nor respect.
अन्ये जायां परि मृशन्त्यस्य यस्यागृधद्वेदने वाज्यक्षः |
पिता माता भ्रातर एनमाहुर्न जानीमो नयता बद्धमेतम || ऋ10.34.4

When the covetous eyes of Dice corner the wealth of a gambler, the winners drag his wife by her hair, and even the close relations of the gambler stand as mute witness to the spectacle.
यदादीध्ये न दविषाण्येभिः परायद्भ्योSव हीये सखिभ्यः |
न्युप्ताश्च बभ्रवो वाचमक्रतँ  एमीदेषां निष्कृतं जारिणीव || ऋ10.34.5

When I make a resolution to desist from gambling in future, my friends taunt me. And these rolling multicolored Dice become so irresistible that I run to them like an adulterous woman.
सभामेति कितवः पृच्छमानो जेष्यामीति तन्वाशूशुजानः |
अक्षासो अस्य वि तिरन्ति कामं परतिदीव्ने दधत आ कृतानि ||  ऋ10.34.6

An able bodied person covets  the wealth of a rich man and enters the casino  to win attracted by the  stacked tokens plied in front of his opponent.
अक्षास इदङ्‌कुशिनो नितोदिनो निकृत्वानस्तपनास्तापयिष्णवः |
कुमारदेष्णा जयतः पुनर्हणो मध्वासम्पृक्ताः कितवस्य बर्हणा ||ऋ10.34.7

For the loser these Dice  act like sharp weapons giving immense pain like those from physical injuries. On loss of everything even the members of his family suffer great discomfort. For the winner these Dice bring good news like the birth of his son, but the looser is completely ruined.
त्रिपञ्चाशः क्रीळति व्रात एषां देव इव सविता सत्यधर्मा |
उग्रस्य चिन्मन्यवे ना नमन्ते राजा चिदेभ्योनम इत कर्णोति || ऋ10.34.8

The dice play their own independent game and are a law un to themselves. They bow not before wrath of the mighty . Even King pays them homage.

नीचा वर्तन्त उपरि स्फुरन्त्यहस्तासो हस्तवन्तं सहन्ते |
दिव्या अङ्‌गारा इरिणे नयुप्ताः शीताः सन्तो हर्दयं निर्दहन्ति || ऋ10.34.9

They jump up and down , without any hands they overpower.  They are cold to touch but for the loser they are hot like burning ambers.
जाया तप्यते कितवस्य हीना माता पुत्रस्य चरतः क्व स्वित |
ऋणावा बिभ्यद धनमिच्छमानोSन्येषामस्तमुप नक्तमेति ||R10.34.10

The gamester is abandoned by his family. In debt ever in  fear he wanders, Anxious for wealth , he enters strange households at night to plunder.
स्त्रियं दृष्ट्वाय कितवं ततापा Sन्येषां जायांसुकृतं च योनिम |
पूर्वाह्णे अश्वान युजुजे हि बभ्रून्‌ त्सो अग्नेरन्ते वृषलः पपाद || ऋ10.34.11

He suffers pain at seeing happy households and women folk. But in the afternoon he again reverts to the game of dice, and is reduced in  penury to warm himself in the cold of night , by open fire.
यो वः सेनानीर्महतो गणस्य राजा वरातस्य परथमोबभूव |
तस्मै कृणोमि न धना रुणध्मि दशाहं  प्राचीस्तदृतं वदामि || ऋ10.34.12

He raises his empty hands in salutation of the dice and prays to the dice for their mercy  to win in the game.
अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित्‌ कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमानः |
तत्र गावः कितव तत्र जाया तन्मे विचष्टे सवितायमर्यः || ऋ10.34.13

Vedas give the wise counsel thus: Game of Dice is not for YOU. Perform the divine work of a farmer with family your household with cows, and bounties of nature.  Rejoice in the riches of your labor.
मित्रं कृणुध्वं खलु मृळता नो मा नो घोरेण चरताभि  धृष्णु |
नि वो नु मन्युर्विशतामरातिरन्यो बभ्रूणां प्रसितौ न्वस्तु ||ऋ10.34.14

Gamester now wiser, tells the dice not to entice and bewitch him any more  . He tells the dice to allow him to be friends with himself and bring grace upon his own life.

He asks  the dice to destroy his enemies by holding them under their spell. And tells  the brown seeds to instead   play useful role by their  (medicinal) properties for welfare of society.

Here reference is made to विभीतक – Terminalia Belerica बहेडा – wood or seeds of which the dice used to be made . These brown  herb seeds areबहेड, which are used as dice are instead  put to the excellent medicinal use as essential component of Ayurvedic medicine Triphala. त्रिफला , that consists of हरड, बहेडा, आमला.

Dealing with corrupt persons

corrupt people

Dealing with corrupt persons  AV3.9

1.   कर्शफस्य विशफस्य द्यौः पिता पृथिवी माता  ।

यथाभिचक्र देवास्तथाप कृणुता पुनः  । ।AV3.9.1

हाथ पेर से काम करके  जीने वाले और बिना हाथ पेर के अपना जीवन  चलाने  वालों दोनो को प्रकृति ने समान रूप से जन्म दिया है. यह  प्रकृति का चक्र है जो इसी प्रकार से चलता रहता है.

2.   अश्रेष्माणो अधारयन्तथा तन्मनुना कृतं  ।

कृणोमि वध्रि विष्कन्धं मुष्काबर्हो गवां इव  । । AV3.9.2

(अश्रेष्माण: ) त्रिदोश रहित अनासक्त दयालु  मनन करनेवाले विचारशील जन ही (अधारयन) पालन पोषन करते हैं.   (विष्किन्धम्‌) कार्य प्रगति के मार्ग में प्रतिबन्धक सभी विघ्नों को (अधार्मिक भ्रष्टाचारी) जनों से मुक्त करने के लिए  उद्दन्ड पशुओं को जैसे मुष्टिका और बाहुबल से बधिया निर्वीर्य किया जाता है वैसे ही इन तत्वों को समाज में निर्वीर्य करो.

3.   पिशङ्गे सूत्रे खृगलं तदा बध्नन्ति वेधसः  ।

श्रवस्युं शुष्मं काबवं वध्रिं कृण्वन्तु बन्धुरः  । । AV3.9.3

(श्रवस्युम्‌) – (श्रवस्युम्‌) लोकैषणा यश को अपने साथ जोड़ने की कामना करने  वालों को . (शुष्मम्‌) वित्तैषणा – धन की कामना से शोषण करने वालों,(काबवम्‌) जीवन को अनुराग युक्त पुत्रैषणा पित्र मोह से ग्रसित क्रूर लोगों को (वेधस: ) विधि विधान जानने वाले ज्ञानी जन भिन्न भिन्न – नीतियों के कवच से (बध्रिम्‌ कृण्वन्तु) बधिया करो – उन  के प्रभाव को निष्फल करो .

4.   येना श्रवस्यवश्चरथ देवा इवासुरमायया  ।

शुनां कपिरिव दूषणो बन्धुरा काबवस्य च  । ।AV3.9.4

असुरों के समान मायावी छल कपट से अनुचित साधनों से अपनी कीर्ति और सम्पत्ति को चाहने वाले देशद्रोही क्रूर जन जो देवताओं के समान विचर रहे हैं उन क्रूर प्राणियों के बीच उत्पात मचा कर उन्हें आपस में ऐसे लड़ा  दो जैसे कुत्तों के बीच में उत्पाती बन्दर के आने से होता है.

5.    दुष्ट्यै हि त्वा भत्स्यामि दूषयिष्यामि काबवं  ।

उदाशवो रथा इव शपथेभिः सरिष्यथ  । । AV3.9.5

दुष्ट क्रूर  विघ्नकारी जनों को बांधकर ही तुम प्रगति के कार्य की योजना की शपथ ले कर तीव्र गति वाले अश्वो से युक्त रथों  से अपने मार्ग पर अग्रसर हो सकोगे.

6.   एकशतं विष्कन्धानि विष्ठिता पृथिवीं अनु  ।

तेषां त्वां अग्रे उज्जहरुर्मणिं विष्कन्धदूषणं  । । AV3.9.6

एक सौ एक (विष्किन्धानि ) कार्य प्रगति के मार्ग में प्रतिबन्धक रोक लगाने वाले (अधार्मिक भ्रष्टाचारी) जन जो पृथ्वी पर स्थापित है उन  से मुक्त करने के लिए (तेषाम्‌‌ अग्रे )  उन के बीच मुख्याधिकारी (ऊज्जहरुर्मणिं) शिरोमणि अधिष्ठाता नियुक्त क्रो जो (विष्किंधदूषणम्‌) विघ्नकारी जनों के प्रदूषन को दूर करे |

गृहस्थ के दायित्व

vedic householder

Duties of a Householder  

गृहस्थ के दायित्व – दान और पञ्चमहायज्ञ परिवार विषय  

अथर्व 6.122,

पञ्च महायज्ञ विषय

1.   एतं भागं परि ददामि विद्वान्विश्वकर्मन्प्रथमजा ऋतस्य  ।

अस्माभिर्दत्तं जरसः परस्तादछिन्नं तन्तुं अनु सं तरेम  । ।AV6.122.1

Wise man perceives that the bounties provided by Nature from the very beginning are only not be considered as merely rewards earned for his labor but considers himself as a trustee for all the blessings from Almighty to be dedicated for welfare of family and society. Dedication of His bounties ensures that life flows smoothly as normal even when the individuals are past their prime active life to participate in livelihood chores. (This system enables the human society to ensure sustainable happiness. People must dedicate their bounties in welfare and charity of family and society- by performing various Yajnas to protect environments, biodiversity and bring up good well trained progeny.)

संसार का विश्वकर्मा के रूप में परमेश्वर सृष्टि के आरम्भ से ही मानव को अनेक उपलब्धियां प्रदान करता है. बुद्धिमान जन का इस दैवीय कृपा को समाज और परिवार के प्रति समर्पण भाव से देखता है और पञ्च महायज्ञों द्वारा अपना दायित्व निभाता है.    इसी शैलि से सुंस्कृत सुखी समाज का निर्माण होता है. जिस में समाज सुखी और सम्पन्न बनता है. वृद्धावस्था को प्राप्त हुए जन भी आत्म सम्मान से जीवन बिता पाते हैं,पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित होता है.  ( यजुर्वेद का उपदेश “ईशा वास्यमिदँ  सर्वं यत्किञ्च जगत्या जगत्‌” भी यही बताता है कि जो भी जगत में हमारी उपलब्धियां हैं वे सब परमेश्वर की ही हैं. हम केवल प्रतिशासकTrustee हैं,  इस सब का मालिक तो परमेश्वर ही है. और हमारा दायित्व परमेश्वर की  इस देन को संसार,समाज,परिवार  के प्रति अपना दायित्व निभाकर सब की उन्नति को समर्पण करना ही है.)

भूत यज्ञ

2.   ततं तन्तुं अन्वेके तरन्ति येषां दत्तं पित्र्यं आयनेन  ।

अबन्ध्वेके ददतः प्रयछन्तो दातुं चेच्छिक्षान्त्स स्वर्ग एव  । ।AV6.122.2

Those who live by the ideals of their virtuous parents and utilize their bounties to dedicate themselves to the cause of providing for the society and environments as also take care and provide good education to their orphaned brothers,  make their own destiny to be part of a happy society and have a happy family life.

जो जन इस संसार में उन को मिली उपलब्धियों को एक यज्ञ का परिणाम मात्र समझते हैं वे (स्वयं इन यज्ञों को करते  हैं ) और सब ऋणों से मुक्त हो जाते हैं .

जो अनाथों के लिए सेवा करते हुए उन्हे समर्थ बनाने के अच्छे प्रयास करते हैं उन का जीवन स्वर्गमय हो जाता है.

अतिथियज्ञ , बलिवैश्वदेव यज्ञ व देवयज्ञ

3.   अन्वारभेथां अनुसंरभेथां एतं लोकं श्रद्दधानाः सचन्ते  ।

यद्वां पक्वं परिविष्टं अग्नौ तस्य गुप्तये दम्पती सं श्रयेथां  । ।AV6.122.3

This is an enjoined duty of the house holders to share with dedication and respectfully their food with guests, in to fire for latently sharing with environments and to the innumerable diverse living creatures.

दम्पतियों का  (गृहस्थाश्रम में) यह कर्तव्य है कि भोजन बनाते हैं उस को श्रद्धा के साथ अग्नि को गुप्त रूप से पर्यावरण की सुरक्षा, अतिथि सेवा, और और पर्यावरण मे जैव विविधता के संरक्षण मे लगाएं

यज्ञमय जीवन

4.   यज्ञं यन्तं मनसा बृहन्तं अन्वारोहामि तपसा सयोनिः  ।

उपहूता अग्ने जरसः परस्तात्तृतीये नाके सधमादं मदेम  । ।AV6.122.4

By setting an example of following a life devoted earn an honest living and fulfilling one’s duties in performing his duties towards environments, society and family development of an appropriate temperament   takes place. That ensures a peaceful heaven like happy atmosphere in family and off springs that ensures a comfortable life for the old elderly retired persons.

तप ( सदैव कर्मठ बने रहने के स्वभाव से ) और यज्ञ पञ्च महायज्ञ के पालन  करने से उत्पन्न  मानसिकता के विकास द्वारा  जीवन का उच्च श्रेणी का बन जाता  है. ऐसी व्यवस्था में, दु:ख रहित पुत्र पौत्र परिवार और समाज के स्वर्ग तुल्य जिव्वन में मानव की तृतीय जीवन अवस्था (वानप्रस्थ और उपरान्त) हर्ष  से स्वीकृत होती है.

परिवार के प्रति दायित्व (उत्तम सन्तति व्यवस्था)

5.   शुद्धाः पूता योषितो यज्ञिया इमा ब्रह्मणां हस्तेषु प्रपृथक्सादयामि  ।

यत्काम इदं अभिषिञ्चामि वोऽहं इन्द्रो मरुत्वान्त्स ददातु तन्मे  । ।AV6.122.5

Bring up your children to develop virtuous, pure, honest temperaments. Find suitable virtuous husbands for your daughters to marry, in order that they in their turn bring up good virtuous progeny for sustaining a good society.

पुत्रियों का  शुद्ध पवित्र पालन कर के  उत्तम ब्राह्मण गुण युक्त वर खोज कर उन से पाणिग्रहण संस्कार करावें. (जिस से समाज का) इंद्र गुण वाली और ( मरुत्वान्‌ -स्वस्थ जीवन शैलि वाली विद्वान) संतान की वृद्धि  हो.(इस मंत्र में वेद भारतीय परम्परा में संतान को ब्रह्मचर्य  पालन और उच्च शिक्षा के साथ स्वच्छ पौष्टिक आहार के  संस्कार दे कर ,अपने समय पर विवाहोपरांत  स्वयं गृहस्थ आश्रम में प के स्वस्थ विद्वान संतति से समाज  कि व्यवस्था का निभाने का दायित्व  बताया है.)

स्वतंत्रता-परतंत्रता

 

slavery

 

स्वंत्रता-परतंत्रता 

लेखक- स्वामी विष्वअंग् जी  , ऋषि उद्यान – अजयमेरू नगरी  

व्यक्तियों के अनेको सम्बन्ध होते है,जैसे माता-पिता के साथ, पति-पत्नी के साथ, सांस-बहु के साथ, श्वशुर-बहु के साथ, भाई-बहन के साथ, गुरु-शिष्य के साथ, पडोसी के साथ, व्यापारी-सेवक के साथ, समाज के साथ………….इस प्रकार अलग-अलग अन्रको सम्बन्ध है | इन संबंधो के साथ रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति चाहते या न चाहते हुए अनेको कार्य करता है | ऐसा प्रतीत होता है की सारा जीवन पराधीनता से युक्त है | फिर भी यह कहा जाता है की मनुष्य स्वतंत्र है अर्थात करने, न करने या अन्यथा करने में स्वतंत्र है | क्या हम पराधीन है या स्वाधीन है ? अर्थात परतंत्र है या स्वतंत्र है ? यद्यपि  नासमझ व्यक्ति को लगता है की हम तो परतंत्र है, परन्तु ऐसा नहीं है, क्यों की पराधीन होता है तो स्वाधीन भी तो होता है | सर्व प्रथम यह समझना चाइये की स्वाधीनता-स्वतंत्रता किसे कहते है, और पराधीनता-परतंत्रता किसे कहते है ?

जैसा की स्वतंत्रता के विषय में कहा जाता है की करने, न करने या अन्यथा करने में मनुष्य स्वतंत्र है | ठीक इसके विपरीत करने, न करने या अन्यथा करने में परतंत्र है अर्थात मनुष्य अपनी इच्छा से कुछ भी नहीं कर सकता | परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है, क्यों की मनुष्य अपनी इच्छा से बहोत कुछ करता है | जब वह बहोत कुछ अपनी इच्छा से कर रहा होता है तब स्वतंत्र होकर ही कर रहा होता है | इससे यह पता लगता है की मनुष्य स्वतंत्र है और जब-जब वह अन्यों के आश्रित होकर करता है तब-तब वह परतंत्र होता है | परन्तु यह परतंत्र किसे व्यवस्था के लिए होता है | व्यवस्थाए अलग-अलग होती है | जिस प्रकार हमारे अलग-अलग सम्बन्ध है, तो हमारी व्यवस्थाए भी अलग-अलग होंगी | व्यवस्था को बनाये रखने के लिए मनुष्य को परतंत्र बनाना पड़ता है | इसका यह अभिप्राय नहीं है की मनुष्य परतंत्र हो गया | केवल उस व्यवस्था को व्यवस्थित बनाये रखने के लिए परतंत्र हुआ है, उससे मनुष्य स्वाभाव से परतंत्र नहीं हुआ | वह व्यवस्था के लिए परतंत्र होता हुआ भी स्वतन्त्र ही रहता है | क्यों की मनुष्य का स्वभाव ही स्वतंत्र रहना है | यहाँ यह समझना चाइये की मनुष्य अपने यथार्थ ज्ञान, विवेक से व्यवस्था को इसलिए स्वीकार करता है की जिससे, उसे सुख विशेष मिलता है | उस सुख-विशेष को समझ कर जानकर अपनी इच्छा से, अपनी स्वतंत्रता से, उस व्यवास्स्था के लिए परतंत्रता को स्वीकार करता है |

यदि मनुष्य यथार्थ ज्ञान-विवेक नहीं रखता अर्थात मूर्खता-अज्ञान रूपी अविद्या से ग्रस्त रहता है, तो उसे व्यवस्था से सुख-विशेष मिलेंगा, यह बोध ही नहीं रहता, इसलिए वह व्यवस्था चाहे माता-पिता, गुरु-आचार्य, पुलिस, समझ या राष्ट्र की व्यवस्था हो, उसको भंग करता है, और दुःख विशेष को प्राप्त करता है | ऐसे-ऐसे स्थानों में मनुष्य अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है | यहाँ स्वतंत्रता का उपयोग तो कर रहे है, परन्तु उस स्वतंत्रता से मनुष्य को दुःख-विशेष प्राप्त हो रहा है | ऐसी स्वतंत्रता से दुःख ही मिलेंगा | इसलिए मनुष्य को समझना चाइये की स्वंत्रता और परतंत्रता क्या है ? अर्थात स्वतंत्रता से सुख और परतंत्रता से दुःख मिलता है ? क्या यही स्वतंत्रता या परतंत्रता है ? यदि ऐसा माना जाए तो स्वतंत्रता से सुख और दुःख दोनों मिलते है और परतंत्रता से भी सुख और दुःख दोनों मिलते है | इसलिए मनुष्य को अपनी स्वतंत्रता को समझकर-जानकार उसका सदुपयोग करना चाइये |

मनुष्य स्वतंत्रता का दुरूपयोग तब कर सकता है जब उसके पास यथार्थ ज्ञान-विवेक होंगा | यथार्थ ज्ञान वेद आदि सत्य शास्त्रों के अध्यन करने से या उनको पढ़े हुए विद्वानों के माध्यम से या और किसी भी माध्यम से जानकारी प्राप्त करने से मनुष्य को हो जाता है | यथार्थ ज्ञान से मनुष्य अपने स्वतंत्रता का सदुपयोग करता है | कहा, कब, किस परिस्थिति में स्वतंत्र रहकर सुख लिया जायेंगा और कहा, कब, किस परिस्थिति में अन्यों के आधीन परतंत्र रहकर भी सुख लिया जायेंगा, यही मनुष्य की बुद्धिमता है | यदि मनुष्य के पास बुद्धि-ज्ञान नहीं है अर्थात मूर्खता-अविद्या है, तो स्वतंत्र होता हुआ भी अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग करता हुआ सर्वत्र दुःख सागर में गोता लगाता रहेंगा | इसका यह भी अर्थ नहीं लेना चाइये की परतंत्र रहता हुआ सुख ही लेता रहेंगा हाँ ! यदि अविद्या से ग्रस्त रहकर परतंत्रता को स्वीकार करता है, तो दुःख सागर में गोता लगाता रहेंगा | परन्तु यथार्थ-ज्ञान-विद्या से युक्त रहेंगा, तो चाहे स्वतंत्र रहे चाहे परतंत्र रहे, दोनों की स्तिथियो में सदा सुखी ही रहेंगा | इसलिए विद्या-युक्त स्वतंत्रता और परतंत्रता दोनों ही लाभकारी है | परन्तु ध्यान रहे मनुष्य स्वभाव से स्वतंत्र है, परतंत्र नहीं |

Right path & Falsehood

right and wrong path

Right path & Falsehood 

AV4.36 

1.तान्त्सत्यौजाः प्र दहत्वग्निर्वैश्वानरो वृषा  ।

यो नो दुरस्याद्दिप्साच्चाथो यो नो अरातियात् । ।AV4.36.1

(वैश्वानराग्नि) सब जनों का हितकारी बल और (तान्त्सत्यौर्जा) उन की सत्य से उत्पन्न हो कर  बरसने वाली शक्ति  की अग्नि ,(तान्‌ प्रदहतु) उन को जला डाले,  जो (न: )  हमें –सत्य पर चलने वालों को -(दुरस्यात्‌) दुरवस्था में फैंकें (च दिप्सात्‌ ) और हमें हानि पहुंचाएं (अथ य: वरातीयात्‌) और जो हम से शत्रुता का व्यवहार करते हैं.

2. यो नो दिप्साददिप्सतो दिप्सतो यश्च दिप्सति  ।

वैश्वानरस्य दंष्ट्रयोरग्नेरपि दधामि तं  । । AV4.36.2

जो बिना हिंसा किए अहिंसक ढन्ग से  और जो हिंसा से हमें  नष्ट करना चाहते हैं, उन्हें सब जनों के हितकारी बल की दाढ़ों में चबाने के लिए देते हैं .

3. य आगरे मृगयन्ते प्रतिक्रोशेऽमावास्ये  ।

क्रव्यादो अन्यान्दिप्सतः सर्वांस्तान्त्सहसा सहे  । । AV4.36.3

जो अमावस्या जैसे अन्धेरे में छिप कर गाली गलोज  दुष्प्रचार द्वारा हमें हानि  पहुंचाना चाहते हैं, उन मांसभक्षियों – राक्षसों को हम अपने साहस से दबा दें-  निष्क्रिय करें.

4. सहे पिशाचान्त्सहसैषां द्रविणं ददे ।

सर्वान्दुरस्यतो हन्मि सं म आकूतिरृध्यतां  । । AV4.36.4

(पिशाचान्‌) इन पिशाचों को (सहसा सहे) अपने बल से जीतता हूं , (एषां द्रविणं ददे) इन के धन को छीनता हूं, (दुरस्यत: सर्वान्‌ हन्मि) दुर्गति करने वाले सब विरोधियों को मारता हूं.   ( मे आकूति:  सनृध्यताम्‌ ) वह मेरा सत्सन्कल्प पूर्ण हो.

5. ये देवास्तेन हासन्ते सूर्येण मिमते जवं ।

नदीषु पर्वतेषु ये सं तैः पशुभिर्विदे  । । AV4.36.5

ये लोग जो देवताओं के समान हंसते हैं, अपने जीवन शैलि का मापदण्ड   सूर्य के समान  उच्च और सब को चकाचोंध करने का बनाते हैं, प्राकृतिक साधनों नदियों, पर्वतो, सब पशुओं जलचर इत्यादि  का शोषण करते हैं

6. तपनो अस्मि पिशाचानां व्याघ्रो गोमतां इव ।

श्वानः सिंहं इव दृष्ट्वा ते न विन्दन्ते न्यञ्चनं  । । AV4.36.6

जैसे गौओं के पालन करने वालों को व्याघ्र का भय होता है, वैसे ही इन (पिशाचों) रक्त पीने वालों को में तपाने वाला हूं. जैसे कुत्ते सिन्ह से घबढाते हैं , वैसे ही मेरे प्रभाव से वे दुष्ट लोग अपनी रक्षा का कोइ स्थान प्राप्त  नहीं कर सकते.

7. न पिशाचैः सं शक्नोमि न स्तेनैः न वनर्गुभिः ।

पिशाचास्तस्मान्नश्यन्ति यं अहं ग्रामं आविशे  । । AV4.36.7

मैं जिस ग्राम में प्रवेष करता हूं, उस ग्राम से रक्त पीने वाले, चोर , जंगल मे रहने वाले डाकु, सब का नाश हो जाता है.

8. यं ग्रामं आविशत इदं उग्रं सहो मम ।

पिशाचास्तस्मान्नश्यन्ति न पापं उप जानते  । । AV4.36.8

मेरे उग्र प्रभाव से पिशाचादि उस ग्राम से निकल जाते हैं. वहां लोगों के आचरण में पाप भावनाएं उत्पन्न नहीं होती.

9. ये मा क्रोधयन्ति लपिता हस्तिनं मशका इव ।

तानहं मन्ये दुर्हितान्जने अल्पशयूनिव  । । AV4.36.9

जो लोग व्यर्थ की झूट मूट बातों से क्रोध दिलाते हैं, वे एक हाथी को मच्छर जैसे तंग करते हैं. वे अहितकारी लोग जन समुदाय का क्षणिक जीवन वाले  अल्प कीड़ों की तरह से दुख बढ़ाते हैं .

10. अभि तं निरृतिर्धत्तां अश्वं इव अश्वाभिधान्या ।

मल्वो यो मह्यं क्रुध्यति स उ पाशान्न मुच्यते  । । AV4.36.10

(य: मल्व: ) जो मलिनात्मा व्यक्ति (मह्यं क्रुध्यति) मुझे क्रोध दिलाता है, (तं) उस को (निरृति: अभिधताम्‌) पापाधिष्ठात्री देवी सब ओर से जकड़ ले ( अश्वाभिधान्या अश्वम्‌ इव ) जैसे घोड़े बांधने की रस्सी  से घोड़े को.

वेदों में गौ की सुरक्षा

cow in veda

वेदों में गौ की सुरक्षा

Vedas AV12.4

AV Sukta12.4 अथर्व वेद 12-4 सूक्त -वशा गौ ,ऋषि- कश्यप:

4.1.0.1 AV 12.4.1 अथर्व 12-4-1 On Donating a cow

गौ दान  किस को

ददामीत्येव ब्रूयादनु चैनामभुत्सत।

वशां  ब्रह्मभ्यो याचद्भ्यस्तत्प्रजावदपत्यवत्‌ || अथर्व 12.4.1

Cows should be given in keeping of learned persons

(veterinarians) who have noble temperaments.

गौओं को ब्राह्मण वृत्ति के पशु पालन  वैज्ञानिकों के ही दायित्व में देना  चाहिए ।

4.1.0.2 AV 12-4-2 Curse of a sick Cow दुःखी गौ का श्राप

प्रजया स वि क्रीणीते पशुभिश्चोप दस्यति।

य आर्षेयेभ्यो याचभ्दयो देवानां  गां न  दित्सति ।। अथर्व 12-4-2

Those who do not give cows in the keeping of such

virtuous persons to bring about improvements in the

cows, merely trade and do no service for society.

They  suffer from curse of unhappy cows.

जो लोग कुशल कार्य कर्ताओं की सहायता से गौ संवर्द्धन  का कार्य

नहीं करते, वे केवल व्यापार वृत्ति से कार्य कराते हैं। वे दुखी  गौ के

श्राप के भोगी होते हैं।

4.1.0.3 AV 12-4-3 Underfed Cow’s Curse

दुःखी गौ का श्राप

कूटयास्य सं शीर्य-ते श्लोणया काटमर्दति।

बण्ड्या दह्य-ते गृहाः काणया दीयते स्वम् ।। अथर्व 12-4-3

Society that trades in unhealthy cows gets destroyed

By  curse of unhappy cows.

जो समाज गौ को व्यापार मान  कर चलाते हैं, वे दुखी गौ के श्राप से

नष्ट हो जाते हैं।

4.1.0.4 AV12-4-4 same as above फिर वही

विलोहितो अधिष्ठानाच्छद्विक्लिदुर्नाम विन्दति गोपतिम् ।

तथा वशायाः संविद्यं दुरदभ्ना  ह्युच्यसे ।। अथर्व12-4-4

Miserly person’s looking after the cows neglect their

Feed and health. Cows suffer bleeding and such

ailments which become incurable.

कंजूस गोपालक की गौ,रक्त  स्राव जैसे असाध्य रोगों से ग्रसित हो

कर नष्ट  हो जाती हैं।

4.1.0.5 AV 12-4-5 Foot and mouth disease

मुंह खुरपका

पदोरस्या अधिष्ठानाद्विक्लिन्दुर्नाम विंदति|

अनामनात्सं शीर्यन्ते या मुखेनोपजिघ्रति ।। अथर्व 12-4-5

By sniffing her feet/ place where cow puts her feet, A

disease ‘Wiklindu’ is contracted that finally destroys

the cow. ( The obvious reference is to the contagious

Foot and mouth disease)

गौ अपने  खुर सूंघने  से मुंह खुर पका रोग से ग्रस्त हो कर नष्ट हो

जाती  है।

4.1.0.6 AV12-4-6 Do not make Cut marks on Cow

ears

गौ की पहचान के लिए कान मत काटो

यो अस्याः कर्णावास्कुनोत्या स देवेषु वृश्चते ।

लक्ष्मं कुर्व इति मन्यते कनीयः कृणुते स्वम् ।। अथर्व 12-4-6

Those persons who make cut marks on cow’s ears for

Identification, are as if cutting short their own wealth.

गौ की पहचान के लिए  के कान नहीं काटने  चाहिएं।

4.1.0.7 AV 12-4-7 Do not cut COW Hair गौ के बाल नही

काटे  जाते

यदस्याः कस्मै चिद्भोगाय बालान्कश्चित्प्रकृन्तति ।

ततः किशोरा म्रियन्ते वत्सांश्च धातुको वृकः ।। अथर्व 12-4-7

Those who cut hair of a cow for any reasons, are

Cursed  to suffer in life.

जो किसी तांन्त्रिक कार्य के लिए गौ के बाल लेते हैं उन को श्राप

लगता है।

4.1.0.8 AV 12-4-8 Protect Cows from attack by birds गौ को कौए इत्यादि पक्षियों से बचाएं

यदस्या गोपतौ सत्या लोम ध्वाङ्क्षो अजीहिडत् ।

ततः कुमारः म्रियन्ते  यक्ष्मो विन्दत्यनामनात् ।। अथर्व 12-4-8

If crows are allowed to attack a cow, the lazy care

taker of  cows will suffer from tuberculosis.

( Lazy persons attract Tuberculosis)

जो चरवाहा गौ को कौए जैसे पक्षियों से नहीं बचाता , उस आलसी

को  क्षय रोग होगा । (आलस्य के कारण क्षय रोग होता है)

4.1.0.9 AV12-4-9 Cow Dung and Urine

गोबर गोमूत्र

यदस्याः पल्पूलनं  शकृद्दासी समस्यति ।

ततोऽपरूपं जायते तस्मादव्येष्यदेनसः ।। अथर्व 12-4-9

Throwing away in to waste the Cow Dung and Cow

Urine disfigures the society.

गोबर गोमूत्र व्यर्थ करने  से समाज के रूप की सुन्दरता नष्ट हो जाती

है ।

VETERINARY SERVICES

पशु चिकित्सा सेवाएं

4.1.0.10 AV 12-4-10 Cow Protection गौ सुरक्षा

जायमानाभि जायते  देवान्त्सब्राह्मणान्वशा ।

तस्माद ब्रह्मभ्यो देयैषा तदाहुः स्वस्य गोपनम् ।। अथर्व 12-4-10

Cow should always be under the care of

Knowledgeable persons having altruistic attitudes.

This  is the best form of COW PROTECTION

गौपालन  में ब्राह्मण वृत्ति के कुशल गोपालकों से ही गौ सुरक्षित

रहती है।

4.1.0.11 AV12-4-11 No Cow protection is cruelty

गौ की असुरक्षा अपराध है

य एनां  वनिमायन्ति तेषां देवकृता वशा।

ब्रह्मज्येयं तदब्रुवन्य एना निप्रयायते ।। अथर्व 12-4-11

Not providing cow in to proper hands for care is

cruelty to cows.

गौ को ब्राह्मण वृत्ति के लोगों के हाथ न देना गौ पर  अत्याचार है।

4.1.0.12 AV 12-4-12 Same again वही विषय

य आर्षेयेभ्यो या चद्भयो देवानां गां न  दित्सति ।

आ स देवेषु वृश्चते ब्राह्मणानां  च मन्यते ।। अथर्व 12-4-12

Not providing the cows with such care, destroys good

traditions of society.

गौवों को ऐसी सुरक्षा न  देने  से सामाजिक परम्पराओं का  नाश

होता है।

4.1.0.13 AV 12-4-13 pre parturition post parturition

care

दूध से हटी गर्भिनी गौ सेवा विषय

यो अस्य स्याद् वशाभोगो अन्यामिच्छेत तर्हि सः ।

हिंस्ते अदत्ता पुरुषं याचितां च न  दित्सति ।। अथर्व 12-4-13

Productive cows can be kept for the immediate

benefits but unproductive cows must be given for

care by selfless persons.

बाखड़ी, गर्भिणी, दूध से सूखी गौ को निस्वार्थ सेवा चाहिए।

4.1.0.14 AV 12-4-14 Same as above वही विषय फिर

यथा शेवधिर्निहितो  ब्राह्मणानां  तथा वशा ।

तामेतदच्छायन्ति  यस्मिन्कस्मिंश्च जायते ।। अथर्व 12-4-14

Like the protection to be provided for hidden

treasures, such cows must be provided with due

protection .

( Modern science calls it Pre parturition & post

parturition- a 90 days regime two months or more

before calving and at least one week after calving

care under best hands)

जैसे किसी कोष की सुरक्षा की जाती है, उसी प्रकार विद्वान  कुशल

हाथों से बाखड़ी, कम/बिना  दूध की गर्भवती गौ की सुरक्षा होती है।

4.1.0.15 AV 12-4-15Denial of this service is cruelty to Cows

यह गौ सेवा उप्लब्ध न होना  गौ पर अत्याचार है

तस्मेतदच्छायन्ति  यद् ब्राह्मणा अभि ।

यथैनानन्यस्मिञ्जिनीयादेवास्या निरोधनम् ।। अथर्व 12-4-15

It is the duty of selfless good persons (veterinarians)

To provide this service. Denial of this service is cruelty towards Cows.

गौ वंश की ऐसी सेवा समाज का दायित्व है। इस सेवा का प्रबंध  न

होना  गौ पर अत्याचार है।

Importance of Veterinary Services गो विज्ञान  का महत्व

4.1.0.16 AV 12-4-16 Increase of Cows and identification

गो वंश विस्तार और उसे चिह्नित  करना

चरेदेवा त्रैहायणादविज्ञातगदा सती ।

वशां च विद्यान्नारद ब्राह्मणास्तह्येर्ष्याः ।। अथर्व 12-4-16

Up to three years of age a heifer moves around with

its mother. Then it Caves and has to be given an

identity and  donated to a deserving good household.

तीन  वर्ष तक की उस्रिया माता के संग रहती है। बछ्ड़ा देने  पर उस

का नामकरण करके किसी उपयुक्त परिवार को दान  की जाती है

4.1.0.17 AV 12-4-17 Nonobservance of such practice

Is not in best interests of society

ऐसे गोदान न करना समाज कल्याण हित में नही होता

य एनामवशामाह देवानां निहितं निधिम् ।

उभौ तस्मै भवाशर्वौ परिक्रम्येषुमस्यतः ।। अथर्व 12-4-17

Those who realize the wealth in cow’s udders and

milk, but do not share these cows with population, are

doing great disservice to welfare of the community.

जो गौ के दुग्ध का महत्व जानते हुए भी ऐसे गोदान नहीं करते वे

समाज के लिए कल्याण कारी नहीं सिद्ध होते

4.1.0.18 AV 12-4-18 Same again वही विषय फिर

यो अस्या ऊधो न  वेदाथो अस्या स्तनानुत ।

उभयेनैवास्मै दुहे दातुं चेदशकद्वशाम् । । अथर्व 12-4-18

Even ignorant persons if they donate cows for

Spreading them, do a great community service.

अविद्वान  लोग भी जो गोदान  से गौ संवर्द्धन  करने  के लिए यथा

समय गौ सेवा के लिए गौ दान  करते हैं, वे समाज सेवा का बड़ा

काम करते हैं

4.1.0.19 AV 12-4-19 Same again वही विषय फिर

दुर दभ्नैनमा शये याचितां च ना  दित्सति।

नास्मै कामाः समृध्यन्ते  यामदत्त्वा चिकीर्षति ।। अथर्व 12-4-19

Motivated by selfish considerations those who do not

Lend their cows at appropriate times for proper care

by experts, make their cows suffer and are in the end

not able to derive the benefits they were trying to

protect in the first place .

बाखड़ी गर्भ वती गौ की विशेष सेवा के लिए जो लोग अपनी  गौओं

को विशेषज्ञों के पास दान रूप से नही भेजते, उन  की गौएं कष्ट में

रहती हैं और जो लाभ अपेक्षित था वह नहीं मिलता।

4.1.0.20 AV 12-4-20

Provide Vet experts honorable place

गो चिकित्सकों का आदर करो  

देवा वशामयाचन्मुखं कृत्वा ब्राह्मणम् ।

तेषां सर्वेषामददद्धेडं न्येति मानुषः ।। अथर्व 12-4-20

Veterarian’s offer  for providing help to community to

take care of Cows should be gratefully accepted .

Ignoring the Vet Services angers the Vet Experts

पशु चिकित्सक गो सेवा के लिए उत्सुक रहते हैं। उन  सेवा ने  लेने

पर वे  क्रुद्ध होते हैं।

4.1.0.21 AV 12-4-21 Veterinarians पशु चिकित्सक

हेडं पशूनां न्येति ब्राह्मणेभ्योऽददद्वशाम् ।

देवानां निहितं भागं मर्त्यश्चेन्निप्रियायते ।। अथर्व 12-4-21

Veterinarians are to be made available to serve cows.

By not taking  their services properly even the cows

are put to great  discomfort.

गौ सेवा के लिए प्रशिक्षित जन गोसेवा अवसर की प्रतीक्षा में  उत्सुक

रहते हैं। उन  की सेवा न  लेने  से गौ को भी बहुत पीड़ा होती है।

4.1.0.22 AV 12-4-22 Veterinary help

पशु चिकित्सा दायित्व

यदन्ये  शतं याचेयुर्ब्राह्मणा गोपतिं वशाम्‌।

अथैनां  देवा अब्रुवन्नेवं ह विदुषो वशा ।। अथर्व 12-4-22

Hundreds of people seek help from veterinarians, and

All their cows are said to belong to him.

बहुत से लोग अपनी  गौएं पशु चिकित्सक के पास ले जाते हैं। वे सब

गौ उस चिकित्सक की कही जाती हैं।

4.1.0.23 AV12-4-23 Expert Vet Services

कुशल पशु चिकित्सक सेवा

य एवं विदुषेऽदत्त्वाथान्येभ्यो ददद्वशाम् ।

दुर्गा तस्मा अधिष्ठाने पृथिवी सहदेवता ।। अथर्व 12-4-23

Those who do not take help of trained Vets and go to

Seek help from illiterates, cause lot of misery and loss

to society.

जो लोग विद्वान  पशुचिकित्सकों को छोड़ कर अविद्वानों  के पास

जाते हैं, वे समाज में दुःख का कारण होते हैं।

4.1.0.24 AV 12.4.24 Ignoring Vet help

पशु चिकित्सा न लेना

देवा वशामयाचन्यस्मिन्नग्रे अजायत ।

तामेतां विद्यान्नारदः सह देवै रुदाजत ।। अथर्व 12-4-24

First time pregnant cow needs extra care. House

Holders may think of such cows to be their blessing

and feel that it can take care of itself on its own as a

routine.

पहली बार गर्भ वती को गृह स्वामी अपना  सौभाग्य समझ कर यह

सोच लेता है कि सब अपने  से ठीक होगा। यह ग़लती है

4.1.0.25 AV 12-4-25 Continued वही विषय

अनपत्यमल्पपशुं वशा कृणोति पूरुषम्‌।

ब्राह्मणैश्च याचितामथैनां निप्रियायते ।। अथर्व 12-4-25

Ignoring the expert Vet help those who confine such cows to their family out of misplaced affection, unknowingly cause harm to their cows and bring damage to the interests of their family.

विशेषज्ञों की सहायता न  ले कर ये गो स्वामी गौ और अपने  परिवार का और गौ का अहित करता है।

4.1.0.26 AV 12-4-26

अग्नीषोमाभ्यां कामाय मित्राय वरुणाय च ।

तेभ्यो याचन्ति  ब्राह्मणास्तेष्वा वृश्चतेऽददत् ।। अथर्व 12-4-26

Knowledge, Skills, Expert help, Implements and Resources all are needed for proper care. Ignoring this is a retrograde step.

विद्वत्ता, ज्ञान , हर प्रकार के संसाधन  उपयुक्त  स्थान  और समय पर उपलब्ध रहने  चाहिएं।

इन  सब पर ध्यान न  देना  समाज में पिछड़ापन  बढ़ाता है।

PASTURE FEEDING गोचर विषय

4.1.0.27 AV 12.4.27 Time to release Cows for Pastures प्रातः काल गोचर

यावदस्या गोपतिर्नोपशृणुयाद्दचः स्वयम् ।

चरेदस्य तावद्गोषु नास्यं श्रुत्वा गृहे वसेत् ।। अथर्व 12-4-27

Morning strains of mantras when heard being recited at Agnihotras indicates the time to release cows to go to pastures for self feeding.

प्रातः कालीन मंत्रो के पाठ की ध्वनि  जब सुनाई देती है, तब जानिए कि गौओं को गोचर में जाने  का समय हो चला

4.1.0.28 AV 12-4-28 Stall feeding is harmful घर में गौ को बंध कर मत रखो

यो अस्या ऋचउपश्रुत्याथ गोष्वचीचरत् ।

आयुश्च तस्य भूतिं च देवा वृश्चन्ति  हीडिताः ।। अथर्व 12-4-28

One who keeps Cows at home to feed even after hearing the morning mantra patha suffers in life.

जो प्रातःकाल मंत्र ध्वनि  सुनने  के पश्चात भी गौ को अपने  घर पर बांध कर खिलाता है, वह जीवन  मे दुख पाता है।

4.1.0.29 AV 12.4.29 Time to stay in Pastures गोचर में रहने  का समय

वशां चरन्ति  बहुधा देवानां निहितो निधिः ।

आविष्कृणुष्व रूपाणि यदा स्थाम जिघांसति ।। अथर्व 12- 4-29

As long as the cows like to feed in pastures they represent community assets. When cows want to retreat from pastures they indicate it by many signs.

गोचर में गौएं समाज की धरोहर के रूप में रहती हैं।जब वे पुन: अपने  गृह स्वामी के स्थान  जाना  चाहती हैं, स्वयम् संकेत करती हैं।

4.1.0.30 AV 12-4-30

आविरात्मानं कृणुते यदास्त्थाम जिघांसति।

अथो ह ब्रह्मभ्यो वशा याञ्च्याय कृणुते मन:।। अथर्व 12-4-30

Cow herself indicates the time for her to go back to her home for help from her master

जब गोचर से गृह स्वामी के पास जाने  का समय होता है गौ स्वयम् ऐसे संकेत देती है।

4.1.0.31 AV 12-4-31Cow’s desires are to be complied , गौ के अनुकूल आचरण हो

मनसा सं कल्पयति तद्देवाँ अपि गच्छति ।

ततो ह ब्रह्माभ्यो  वशामुपप्रयन्ति  याचितुम् ।। अथर्व 12-4-31

When Cows want to leave pastures to return to their homes, their desires should be complied with. ( It is the udder stress when it is full of milk, that prompts cow to return to her master for milking her and feeding her calf)

गौ के घर लौटने  के संकेत पर दूध दुहने  के लिए गौ को गृह स्वामी के यहां ले जाना चाहिए।

4.1.0.32 AV 12-4-32 Cow’s Blessings गौ के आशीर्वाद

स्वधाकारेण पितृभ्यो यज्ञेन  देवताभ्यः ।

दानेन  राजन्यो  वशाया मातुर्हेडं न गच्छति ।। अथर्व 12-4-32

Cows blessings flow by long life  and  presence of  elders in Society, Ajya for havi in yagyas, for the Society by her bounties (organic agriculture).

पितरों को अपने  स्वरूप से, ब्राह्मणों को यज्ञ में आज्य की हवि से,राज्य को अपनी  उपलब्धियों से धन्य  करती हैं।

4.1.0.33 AV 12-4-33 Cows belong to the learned गौ बुद्धिजीवियों की होती है

वशा माता राजन्यस्य तथा संभूतमग्रशः ।

तस्या आहुरनर्पणं यद ब्रह्मभ्यः प्रदीयते ।। अथर्व 12-4-33

Cow on first priority provides for protecting the welfare of society like a

mother does. But Cow really belongs to the Veterinarian intellectuals, who

provide for its  upkeep.

गौ सामाज को सर्व प्रथम माता कि तरह संरक्षण प्रदान  करती है।

परन्तु वास्तव में विद्वान  बुद्धिजीवि ही गौ को सुरक्षा प्रदान  करते

हैं।

4.1.0.34 AV12-4-34 Gross treatment of Cows a Crime गाव से दुर्व्यवहार अपराध है

यथाज्यं प्रगृहीतमालुम्पेत्स्त्रुचो अग्नये ।

एवा ह ब्रह्मभ्यो वशग्नय आ वृश्चतेऽददत् ।। अथर्व 12-4-34

Like Ajya havi dropping outside the fire is a crime, not providing the cows

with good Veterinary care is also a crime.

जैसे यज्ञाग्नि  से बाहर स्रुवा से आज्य गिराना  अपराध है, उसी प्रकार गौ को पशु चिकित्सक की

सेवा से दूर रखना  भी एक अपराध है।

4.1.0.35 AV 12-4-35 Productive cow fulfils all needs दुधारु गौ सम्पन्नता प्रदान करती है

पुरोडाशवत्सा सुदुधा लोकेऽस्मा उप तिष्ठति

सस्मै सर्वान्कामान्वशा  प्रददुशषे  दुह ।। अथर्व 12-4-35

Productive Cows fulfill all needs of the society

सवत्सा दुधारु गौ सब कामानाएं पूर्ण करती है

4.1.0.36 AV 12-4-36 Denying provision of cows leads to hell गो सेवा न  करना नरक देता है

सर्वान्कामान्ययमराज्ये वशा प्रददुशे दुहे  ।

अथहुर्नारकं लोकं निरुन्धा नस्य याचिताम् ।। अथर्व 12-4-36

Not making provision for good cows, denying cow products to the needy,

turns the society in to a living hell

गो सेवा से यम राज के यहां भी सब इच्छा पूरी होती हैं, परन्तु  गौ की  सेवा न  करने  से नरक

से छुटकारा नहीं मिलता।

4.1.0.37 AV 12-4-37 Cows denied mating are angry cows

गौ को वृषभ आवश्यक है

प्रवीयमाना  चरति क्रुद्धा गोपतये वशा ।

वेहतं मा मन्यमानो  मृत्योः पाशेषु बध्यताम् ।। अथर्व 12-4-37

Denial of breeding to good cows makes them infertile makes cows angry

and curse the keepers to Death.

(Modern practice of artificial insemination is known to  cause infertility. This

is a challenge for modern Dairy Practice.))

गौ को वृषभ का सहवास न  मिलने  पर गौ क्रोधित और बांझ होने

लगती  हैं। (क्रित्रिम गर्भाधान में गौ बांझ होने लगती हैं )

4.1.0.38 AV 12-4-38 Cow Breeding facility

गौ प्रजनन व्यवस्था

यो वेहतं मन्यमानो ऽमा च पचते वशा ।

अप्यस्य पुत्रान्‌ पौत्रांश्च याचयते बृहस्पति ।। 12-4-38

Neglect of breeding a good cow makes the coming  generation of society in

to beggars

जिस समाज में गौ प्रजनन सुव्यवस्थित नहीं होता वहां के लोग भीख मांगते हैं।

Pasture Significance गोचर महत्व

4.1.0.39 AV 12-4-39 Pastures should have free access गोचर महत्व

महदेषाव तपति चरन्ति  गोषु गौरपि ।

अथो ह गोपतये वशाददुषे विषं दुहे ।। अथर्व 12-4-39

Barriers in pastures angers the cows, the milk from such cows is likened to

poison. (महदेषाव – Big barriers)

(This fact is fully supported by latest dairy

science researches. Only milk of green forage fed cows is rich Essential

Fatty acids-Omega3 & Omega 6 and has much lower saturated fat content

and is rich with all Carotenoids. This is confirmed by the researches

shown here.)

 

वैदिक समाजवाद

 

equality

 

वैदिक  समाजवाद

1.सहृदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि व: । अन्यो: अन्यमसि हर्यत वत्सं जातमिवाघ्न्या॥ अ‍थर्व 3.30.1

तुम्हारे  हृदय में सामनस्व हो, मन द्वेष रहित हो,  एकीभाव हो. परस्पर स्नेह करो जैसे गौ अपने नवजात बछड़े से करती है.

2. अनुव्रत: पितु: मात्रा भवतु संमना । जाया पत्ये मधुमती वाचं वदतु श न्तिवाम्‌ ॥ अथर्व3.30.2

पुत्र पिता की आज्ञा पालन करने वाला हो. माता के साथ समान मन वाला हो. स्त्री पति के लिए मधुर और शान्ति दायिनी वाणी बोले.

3. मा भ्राताभ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा । सम्यञ्च: सव्रताभूत्वा वाचं वदत भद्रया  ॥ अथर्व 3.30.3

भाई भाई से द्वेष न करे, बहिन बहिन से द्वेष न करे.सब उचित आचार विचार वाले और समान व्रतानुष्ठायी बन कर आपस मे मृदु कल्याणकारी वाणी बोलें .

4.येन देवा न वियन्ति ना च विद्विषते मिथ: । तत्‌ कृन्मो ब्रह्म वो गृहे संज्ञान पुरुषेभ्य: ॥ अथर्व 3.30.4

जिस कर्म के अनुष्ठान से मनुष्य देवत्व बुद्धि सम्पन्न हो कर एक दूसरे से परस्पर मिलजुल कर रहते हैं, आपस में द्वेष नहीं करते , उन  के इस कर्म से ज्ञान प्राप्त कर के  एक्यमत उत्पन्न होता है.

5.ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो  मावि यौष्ट संराधयन्त: सधुराश्चरन्त: ॥

अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्व: संमनस्कृणोमि ॥ अथर्व 3.30.5

निज निज कर्मों के प्रति सचेत बड़ों के आदर्शों  से प्रेरित अपनाअपना उत्तरदायित्व समान रूप से वहन करते हुए साथ साथ चल कर, प्रत्येक के लिए प्रिय वचन बोलते हुए एक मन से साथ साथ चलने वाले  बनो.

6. समानी प्रपा सह वोsन्नभागा  समाने योक्त्रेसह वो युनज्मि ।

सम्यञ्चो sग्निं सपर्तारा नाभिमिवाभित: ॥ अथर्व 3.30.6

तुम्हारे जलपानके स्थान एक ही हों, तुमारा अन्न सेवन का स्थान एक हो,No untouchables  , No five star culture .  इस संसार में समान उत्तरदायित्व के वहन में तुम्हें एक जुए में  जोड़ता हूं. जिस के पहियों के नाभि चक्र के अरों – लट्ठों  की तरह  एक जुट हो कर अग्नि से यज्ञादि शुभ कर्म करो. ( यज्ञ जो संसार में श्रेष्ठ तम कर्म हैं उन का प्रतीक रूप अग्निहोत्र है. अग्नीहोत्र में मुख्य चारआधाराज्ञ आहुती होती हैं. प्रथम अग्नि को दूसरी सोम को, तीसरी इन्द्र को चौथी प्रजापति को.  सोम को आधुनिक भाषा में ideas, अग्नि को Fire,इन दोनों को मिला कर Ideas on Fire कहा जाता है. जब इन्द्र Entrepreneur इस अग्नि और सोम से प्रज्वलित होते

हैं तभी प्रजापति – संसार कि प्रगति के साधन बन कर संसार का पालन करते है. Entrepreneur fired by an idea becomes modern Henry Ford, Bill Gates and Steve jobs. They were not aiming to become rich and famous but were fired by their ideas to bring a Car, a computer, a more convenient communication aid to common man.   भारतीय इतिहास में  चाणक्य, महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद , सुभाषचन्द्र बोस,महात्मा गांधी इसी श्रेणी में आते हैं )

 

 

 

7.सध्रीचीनान्व संमनस्यकृणोम्येकश्नुष्ठीन्त्संवननेन सर्वान्‌ ।

देवाइवामृतं रक्षमाणा: सायंप्रात: सौमनसौ  वो अस्तु ॥ अथर्व 3.30.7

इस उपदेश को ग्रहण कर के तुम सब प्रतिदिन  सायं प्रात: की तरह सदैव एक दूसरे के सहयोगी  बन कर,समान मन वाले हो कर समान भोग करने हो कर मातृदेवों पितृदेवों की तरह सौमनस्य से संसार की अमरता की रक्षा करो.  ,

Healthy Long life by proper conduct

Healthy Long Life

Healthy Long life by proper conduct-

Refrain line is “व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा” by avoiding wrongful conduct I vow to attain long life !

 

पापनाशनम्‌

Healthy Mind

  1. वि देवा जरसावृतन्वि त्वं अग्ने अरात्या  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । ।AV3.31.1

देवता –मनुष्य  में दैवीय गुण बुढ़ापे से दूर रखते हैं, जैसे  अग्नि  कंजूसी से  दूर रहती   है ( अग्नि का गुण है कि सब को मुक्त हृदय से बिना कंजूसी के अपना सब कुछ सब को बांट देती है ) , इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Divine virtues keep the old age away. Take lesson from Homa fire, that without being selfishly miser generously shares with everyone all the ablutions made in to it, and be open hearted, forgiving and generous to all in life and lead a clean pure life.  Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

Healthy Body

  1.  व्यार्त्या पवमानो वि शक्रः पापकृत्यया  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । AV3.31.2

अपने जीवन में पवित्र आचरण द्वारा पुरुष, रोगादि पीड़ाओं से पृथक रह कर शक्तिशाली बना रहता है.  इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

By observing physical cleanliness, observing clean habits ,  living in clean environments and living on pure clean food keeps the body free of disease and maladies.  Thus by avoiding wrongful conduct attains long life.

 

Avoid wrong situations

  1. वि ग्राम्याः पशव आरण्यैर्व्यापस्तृष्णयासरन् ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.3

ग्राम्यपशु गौ घोड़ा हिंसक पशुओं व्याघ्र आदि से दूर रहते हैं , जल प्यास से दूर रहते हैं इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Domestic animals cows, dogs, horses stay away from carnivore. Thirst stays away from water.  Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

.

Straight thinking

  1. वी मे द्यावापृथिवी इतो वि पन्थानो दिशंदिशं  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.4

ये द्यौ: और पृथ्वी एक दूसरे से दूर रह कर ही चलते हैं, भिन्न भिन्न दिशाओं के मार्ग भी पृथक रहते हैं. इस प्रकार मैं समस्त पापों से पृथक रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Sunshine and Earth have separate paths, but still move together, different roads can lead to same destination. Learn to keep your mind on the objectives and do not get confused by different alternative paths. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

.

Equanimity keep mental balance स्वरविज्ञान

  1. त्वष्टा दुहित्रे वहतुं युनक्तीतीदं विश्वं भुवनं वि याति  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.5

त्वष्टा  –सूर्य,अपनी पुत्री किरणों  को दहेज की भांति उपहार के साथ भेज कर  इस एक रथ में जोड़ता है, किरणों  के लिए सब मार्ग से हट  जाते हैं. और चन्द्रमा का गृह स्थापित हो जाता है, जिस से समस्त मानसिक व्यवस्था सम्पन्न  होती है. – इस विषय को और स्पष्ट  करते हुए  यजुर्वेद18-40   “सुषुम्ण: सूर्य्यरश्मिश्चन्द्रमा गन्धर्वस्तस्य नक्ष्त्राण्यप्सरसो भेकुरयो नाम” – गंधर्वों –Cultured सुशिक्षित जनों में योग साधना से ,  दोनों नासिकाओं से पृथक पृथक श्वास द्वारा सूर्य नाड़ी और चंद्रनाड़ी सुषुम्णा बन कर सदा गति शील बन कर  मस्तिष्क और भौतिक शरीर की अध्यक्षता करती हैं  इस प्रकार मैं भी समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

( सूर्य की दुहिता रूपि रश्मियों के चन्द्रमा के गृह जाने को सूर्य की दुहिता से चन्द्रमा के विवाह की उपाधि दी जाती है. )

Exercise control on the left and right hemispheres of your brain to maintain the balance between emotions and pragmatism. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

.

.

Emotional intelligence

6.अग्निः प्राणान्त्सं दधाति चन्द्रः प्राणेन संहितः ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.6

अग्नि जाठराग्नि के रूप में अन्न के रसों द्वारा प्राणों नेत्र आदि इन्द्रियों का शरीर में परस्पर तालमेल बैठाती है. चंद्रमा सोम के द्वारा प्राण के आधार भूत उत्तम मन के साथ मिल  कर जीवन को पुष्ट करता है.  इस ज्ञान के आधार पर मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

(जीव कर्म करने में स्वतंत्र एक hardware जैसा है, इस का संचालन करने वाला सोम इस Hardware को चलाने वाला Software  है. तैतरीय के अनुसार  “सोमो राजा  राजपति:”, “सोमो विश्ववनि” . सोम ही विश्व का प्रजनन करने वाला है. )

Emotional intelligence exercises control not only the mental state for controlling behavior  but also proper coordination between all the physical organs by digestion of proper food and its transmission to different parts of human body. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

.

 

ब्रह्मचर्य – Brahmacharya

  1. प्राणेन विश्वतोवीर्यं देवाः सूर्यं सं ऐरयन् ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.7

वीर्य द्वारा विश्व के लिए प्राण दे कर सब देवताओं को सम्यक प्रस्तुत किया जाता है . इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर (वीर्य की रक्षा कर के)  क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

(इस संदर्भ मे यहां ऋग्वेद 8.100.1 “ अयं त एमि  तन्वा पुरस्ताद्विश्वे देवा अभि मा यन्ति  पश्चात| यदा मह्यं दीधिरो भागमिन्द्राssदिन्मया कृणवो वीर्याणि||” में वीर्य द्वारा  गर्भादान के साथ ही सब देवताइस शरीर में चले आते हैं )

All faculties that exercise control over physical faculties enter the ova through sperms in the fetus. By exercising control on protecting your sperms, one maintains all body faculties till long life. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

.

 

यहां प्रसिद्ध मंत्र “ तच्चक्षुर्देवहितं  शुक्रमुच्चरत | पश्येमशरद: शतम्‌ || RV 7.66.16 भी प्रासंगिक है . – शुक्र को ऊपर की ओर ले जा कर – ऊर्ध्वरेता बन कर चक्षुओं को स्वस्थ बना कर सौ वर्ष तक देखो.

 

Longevity is inherited दीर्घायु माता पिता से आती है.

8.आयुष्मतां आयुष्कृतां प्राणेन जीव मा मृथाः ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.8

स्वयं दीर्घायु वाले और दीर्घायु प्रदान करने वाले (माता पिता जैसे देवताओं के)  दीर्घायु प्राणों का सामर्थ्य मैं व्यर्थ न जाने दूं. इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.( इस मन्त्र में  में दीर्घायु का पारिवारिक देवताओं माता पिता का के स्वयं दीर्घायु होने से सम्बंध बताया है , जिसे आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि दीर्घायु वंश गत inherited trait होती है.)

Long life is an inherited trait. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

Lead a zestful life पुरुषार्थी  जीवन

9. प्राणेन प्राणतां प्राणेहैव भव मा मृथाः ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.9

सदैव जीवित उत्साही कर्मठ मन्यु से प्रेरित जनों के जीवन से ही प्ररणा ले  कर जी. प्रकार समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Adopt role models as people that lead an active zestful life. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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Vitamin D सूर्य नमस्कार

10. उदायुषा सं आयुषोदोषधीनां रसेन ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । AV3.31.10

उदय होते हुए सूर्य उषा के ओषधि रूप रसों को प्राप्त करके ही मैं दीर्घायु को प्राप्त करुं. इस प्रकार मैं समस्त ( प्रात; कालीन सूर्य के दर्शन न कर पाने की आलस्य वृत्ति से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं

(इस विषय पर वेदों से अत्यंत आधुनिक विज्ञान इस प्रकार से मिलता है .

प्राता रत्नं प्रातरित्वा दधाति तं चिकित्वान् प्रतिगृह्या नि धत्ते

तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचते सुवीरः ।। 1-125-1

प्रातःकाल का सूर्य उदय हो कर बहुमूल्य रत्न प्रदान करता है। बुद्धिमान उन रत्नों के महत्व को जान कर उन्हें अपने में धारण करते हैं।तब उस से मनुष्यों की आयु और संतान वृद्धि के साथ सम्पन्नता और पौरुष बढ़ता है।

यही विषय ऋग्वेद के निम्न मंत्र में भी मिलता है.

 कृष्णायद्गोष्वरुणीषु सीदद्‌ दिवो नपाताश्विना हुवे वाम |

वीथं मे यज्ञमा गतं मे अन्नं ववन्वासा नेष्मस्मृतध्रू  ||

ऋ 10.61.4 (सायण भाष्य )

जब लाल किरणों में काला तम होता है उस समय हे द्यौ के (प्रकाशमान  आकाश ) के पुत्रो मैं आप को बुलाता हूं. आप आ कर मेरे अन्नमयकोश को मेरे लिए (अस्मृतध्रू) किसी प्रकार का द्रोह रोगादि हिंसा रहित कीजिए || यह दोनो देवता उस समय के सब को नये जीवन देने वाले प्रकाश  के वाची हैं इसी लिए देवभिषक कहलाते हैं. ||

 

 (वैज्ञानिकों के ­नुसार केवल UVB-Ultra Violet B –  किरणें , जो पृथ्वी पर तिरछी पड़ती हैं, वे ही संधि वेला प्रातः सायं की सूर्य की  किरणें विटामिन डी उत्पन्न करके हमारे अन्न के पोषन द्वारा हमें सर्व रोग रहित बनाती हैं।)

 

  According to modern science Solar radiations have the following details of spectrum. Ultra violet and visible portion

of radiations are of great significance. 

Name

Abbreviation

Wavelength range
(in nanometres)

Energy per photon
(in electronvolts)

Notes / alternative names

Visible

VIS

760 – 380 nm

1.63 – 3.26 eV

 

Ultraviolet

UV

400 – 100 nm

3.10 – 12.4 eV

 

Ultraviolet A

UVA

400 – 315 nm

3.10 – 3.94 eV

long wave, black light

Ultraviolet B

UVB

315 – 280 nm

3.94 – 4.43 eV

medium wave

Ultraviolet C

UVC

280 – 100 nm

4.43 – 12.4 eV

short wave, germicidal

 Ultraviolet

NUV

400 – 300 nm

3.10 – 4.13 eV

visible to birds, insects and fishes

Middle Ultraviolet

MUV

300 – 200 nm

4.13 – 6.20 eV

 

Far Ultraviolet

FUV

200 – 122 nm

6.20 – 10.16 eV

 

Hydrogen Lyman-alpha

H Lyman-α

122 – 121 nm

10.16– 10.25 eV

 

Extreme Ultraviolet

EUV

121 – 10 nm

10.25 – 124 eV

 

Vacuum Ultraviolet

VUV

200 – 10 nm

6.20 – 124 eV

 

X-rays

 

10 – 0.001 nm

124 eV – 1.24 MeV

 

Soft X-rays

XUV

10 – 0.1 nm

124 eV – 12.4 keV

X-ray Ultraviolet

Hard X-rays

 

0.1 – 0.001 nm

12.4 keV – 1.24 MeV

 

 

 

UVB (Ultraviolet B)  rays  have 280 to 315 nm ( (nano meters) wave length And are most prominent in the rising Sun rays ( Morning time) The UVB is able to penetrate the Ozone layer in the stratosphere as shown below.  

 

 

 

 

 

      

These UVB rays are able to enter only the ‘Epidermis’ outer skin layers of human body as shown below. And create a hormone that is called by the name Vitamin D.

This is the most important contribution of Sun to direct human health. Cows, sheep etc that have fur on their skin also generate Vitamin D in their Milk and flesh.

(Incidentally Buffaloes do not have a fur coat and being black are uncomfortable in direct sun light. Thus buffaloes’ milk is very deficient in Vitamin D. That is one reason as to how buffalo milk does not find mention in Vedas.)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतव: ! दृषे विश्वाय सूर्यम् !! 1/50/1

उदय होते सूर्य की किरणें जातवेदसं ईश्वर की कृपा से उत्पन्न कल्याणकारी पदार्थों के वाहक के रूप मे प्राप्त होती हैं, जब विश्व के लिए  सूर्य दृष्टीगोचर होता है.

When the morning Sun rises on the horizon, the learned realize sun’s rays are vending ( are the Vahan of ) divine gifts ( Vitamin D and photo biological products) for them . While for ordinary persons only rising of the Sun is the observation.)

Derive medicinal strength (in the form of hormon from morning sun’s rays for a healthy body. Thus by avoiding wrongful actions by being lazy and not get up in the morning to get advantage of morning sun for Vitamin D, attain long life.

Protect Environments.पर्यावरण सुरक्षा

11. आ पर्जन्यस्य वृष्ट्योदस्थामामृता वयं ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । AV3.31.11

प्रकृति   वर्षा के समान के समान अमृत के तत्व प्रदान करती है. मैं इन प्राकृतिक साधनों के प्रयोग से दूर जा कर प्रकृति के विरुद्ध समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Natural elements shower their bounties like rain from heavens for health and longevity. Do not spurn natural living and always protect the environments to live a long healthy life.