Category Archives: इस्लाम

क्या अल्लाह ने भोले लोगों को बहकाने के लिए शैतान को भेजा …

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क्या अल्लाह ने भोले लोगों को बहकाने के लिए शैतान को भेजा …..

-अल्लाह ने माफ किया जो हो चुका, और जो कोई फिर करेगा अल्लाह उससे बदला लेगा।। मं0 2। सि0 7। सू0 5। आ0 95

समी0-किये हएु पापों का क्षमा करना जानों पापों के करने की आज्ञा देके बढ़ाना है | पाप क्षमा करने की बात जिस पुस्तक में हो वह न ईश्वर और न किसी विद्वान् का बनाया है, किन्तु पापवर्द्धक है। हां, आगामी पाप छुड़ाने के लिये किसी से प्रार्थना और स्वयं छोड़ने के लिये पुरुषार्थ, पश्चाताप करना उचित है,परन्तु केवल पश्चातापकरता रहे, छोड़े नहीं, तो भी कुछ नहीं हो सकता |

-क्या नहीं देखा तूने यह कि भेजा हमने शैतानों को ऊपर काफि़रों के बहकाते हैं उनको बहकाने कर।। मं0 4। सि0 16। सू0 19। आ0 83

समी0 -जब खुदा  ही शैतानों को बहकाने के लिये भेजता है तो बहकने वालों का कुछ दोष नहीं हो सकता और न उनको दण्ड हो सकता और न शैतानों को। क्योंकि, यह खुदा के हुक्म से सब होता है,  इसका फल खुदा को होना चाहिये | जो सच्चा न्यायकारी है तो उसका फल दोज़ख आप ही भोगे और जो न्याय को छोड़के अन्याय को करे तो अन्यायकारी हुआ | अन्यायकारी ही पापी कहाता है |

-और निश्चय क्षमा करने वाला हू वास्ते उस मनुष्य के तोबाः की और ईमान लाया, कर्म किये अच्छे, फिर मार्ग पाया | मं04। सि016। सू020। आ0 82

समी0 -जो तोबाः से पाप क्षमा करने की बात कुरान में है, यह सबको पापी कराने वाली है | क्योंकि, पापियों को इससे पाप करने का साहस बहुत बढ़ जाता है | इससे यह पुस्तक और इसका बनाने वाला पापियों को पाप कराने में होंसला बढ़ानेवाले हैं | इससे यह पुस्तक परमेश्वरकृत और इसमें कहा हुआ परमेश्वर भी नहीं हो सकता |

-और किये हमने बीच पृथिवी के पहाड़ ऐसा न हो कि हिल जावे।।मं0 4। सि0 17। सू0 21। आ0 31

समी0 -यदि कुरान का बनाने वाला पृथिवी का घूमना आदि जानता तो यह बात कभी नहीं कहता कि पहाड़ों के धरने से पृथिवी नहीं हिलती | शंका हुई कि जो पहाड़ नहीं धरता तो हिल जाती | इतने कहने पर भी भूकम्प में क्यों डिग जाती है ?

क्या खुदा ऊंटनी की सवारी करता है ?

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क्या खुदा ऊंटनी की सवारी करता है ?

-और जब आवेगा मालिक तेरा और फ़रिश्ते पंक्ति  बांध के।। और लाया जावेगा उस दिन दोज़ख को।। मं0 7। सि0 30। सू0 89। आ0 21। 231

समी0 -कहो जी! जैसे कोटवालवा सेनाध्यक्ष अपनी सेना को लेकर पंक्ति बांध फिरा करे वैसा ही इनका खुदा  है ? क्या दोजख को घड़ा सा समझा है कि जिसको उठाके जहा चाहे वहा ले जावे। यदि इतना छोटा है तो असंख्य कैदी उसमें कैसे समा सकेंगे ?

-बस कहा था वास्ते उनके पैग़म्बर खुदा के ने, रक्षा करो ऊंटनी खुदा की को, और पानी पिलाना उसके को।। बस झुठलाया उसको, बस पांव काटे उसके, बस मरी डाली ऊपर उनके रब उनके ने।। मं7। सि0 30। सू0 91। आ0 13।14

समी0 -क्या खुदा भी ऊंटनी पर चढ़ के सैल किया करता है ? नहीं तो किसलिये रक्खी और विना क़यामत के अपना नियम तोड़ उन पर मरी रोग क्यों डाला ? यदि डाला तो उनको दण्ड किया, फिर क़यामत की रात में न्याय और उस रात का होना झूठ समझा जायगा ? इस ऊंटनी के लेख से यह अनुमान होता है कि अरब देश में ऊंट ऊंटनी के सिवाय दूसरी सवारी कम होती हैं। इससे सिद्ध होता है कि किसी अरब देशी ने कुरान बनाया है |

-यों जो न रुकेगा अवश्य घसीटंगे हम साथ वालों माथे के।। वह माथा,कि झूठा है और अपराधी।। हम बुलावेंगे फ़रिश्ते दोज़ख के को।। मं0 7। सि0 30।सू0 96। आ0 15। 16। 18

समी0 -इस नीच चपरासियों के काम घसीटने से भी खुदा न बचा। भला माथा भी कभी झूठा और अपराधी हो सकता है सिवाय जीव के ? भला यह कभी खुदा हो सकता है कि जैसे जेलखाने के दरोगा को बुलावा भेजे ?

अल्लाह का न्याय

no justise no peace

 अल्लाह का न्याय

-ये लोग वे हैं कि मोहर रक्खी अल्लाह ने ऊपर  दिलों उनके और कानों उनके और आँखों  उनकी के और ये लोग वे हैं बेखवर।। और पूरा दिया जावेगा हर जीव को जो कुछ किया है और वे अन्याय न किये जावेंगे।। मं0 3। सि0 14। सू016। आ0 108। 1113

समी0 -जब ख़ुदा ही ने मोहर लगा दी तो वे बिचारे विना अपराध मारे गये क्येांकि उनको पराधीन कर दिया, यह कितना बड़ा अपराध है ? और फिर कहते हैं कि जिसने जितना किया, उतना ही उसको दिया जायगा। न्यूनाधिक नहीं। भला ! उन्होंने स्वतंत्रता से पाप किये ही नहीं,किन्तु खुदा  के कराने से किये, पुनःउनका अपराध ही न हुआ, उनको फल न मिलना चाहिये। इसका फल खुदा  को मिलना उचित है। और जो पूरा दिया जाता है तो क्षमा किस बात की की जातीहै ? और जो क्षमा की जाती है तो न्याय उड़ जाता है। ऐसा गड़बड़ाध्याय ईश्वर का कभी नहीं हो सकता किन्तु निर्बुध्दि छोकरों का होता है |

-और किया हमने दोज़ख को वास्ते काफिरों  के घेरने वाला स्थान।।और हर आदमी को लगा दिया हमने उसको अमलनामा उसका बीच गर्दन उसकी के, और निकालेंगे हम वास्ते उसके दिन क़यामत के एक किताब कि देखेगा उसको खुला हुआ।। और बहुत मारे हमने कुफ्ररनून से पीछे नूह के।। मं0 4। सि0 15। सू0 17। आ0 8। 13। 171

समी0 -यदि काफि़र वे ही हैं कि जो कुरान, पैग़म्बर और करान के कहे खुदा, सातवें आसमान और नमाज आदि को न माने और उन्हीं के लिये दोज़ख होवे तो यह बात केवल पक्षपात की ठहरे, क्योंकि कुरान  ही के मानने वाले सब अच्छे और अन्य के मानने वाले सब बुरे कभी हो सकते हैं? यह बड़ी लड़कपन की बात है कि प्रत्येक की गर्दन में कर्मपुस्तक। हम तो किसी एक की भी गर्दनमें नही देखते। यदि इसका प्रयोजन कर्मों  का फल देना है तो फिर मनुष्यों के दिलों, नेत्रों आदि पर मोहर रखना और पापों का क्षमा करना क्या खेल मचाया है ? क़यामत की रात को किताब निकालेगा खुदा  तो आजकल वह किताब कहा है ? क्या साहूकार की बही समान लिखता रहता है। यहाँ यह विचारना चाहिये कि जो पर्वू जन्म नहींतो जीवों के कर्म  ही नहीं हो सकतेतो फिर कर्म की रेखा  क्या लिखी ? और जो  बिना कर्म के लिखी तो  उन पर अन्याय किया,क्योंकि बिना अच्छ-े बुरे कर्मां के उनको दुःख सुख क्यों दिया ? जो  कहो कि खुद़ा की मरजी, तो भी उसने अन्याय किया, अन्याय उसीको कहते हैं कि बिना बुरे-भले कर्म किये दुःख-सुखरूप फल न्यूनाधिक देने  और उस समय खुदा  ही किताब बांचेगा वा कोई सरिश्तेदार सुनावेगा.जो खुदा  ही ने दीर्घकाल सम्बन्धी जीवों  को विना अपराध मारा तो वह अन्यायकारी हो गया। जो अन्यायकारी होता है वह खुदा नहीं हो सकता  |

-और दिया हमने समूद को ऊंटनी प्रमाण।। और बहका जिसको बहका सके।। जिस दिन बुलावेंगे हम सब लोगों को साथ पेशवाओं उनके के बस जो कोई दिया गया अमलनामा उसका बीच दहिने हाथ उसके के।। मं0 4। सि0 15।सू0 17। आ0 59। 64।711

समी0 -वाह जी! जितनी खुदा की आश्चर्य निशानी हैं उनमें से एक ऊंटनी भी खुदा के होने में प्रमाण अथवा परीक्षा में साधक है। यदि खुदा ने शैतान को बहकाने का हुक्म दिया तो खुदा ही शैतान का सरदार और सब पाप कराने वाला ठहरा, ऐसे को खुदा कहना केवल कम समझ की बात है। जब क़यामत को अथार्त प्रलय ही में न्याय करन-े कराने के लिये पैग़म्बर और उनके उपदेश मानने वालों को खुदा बुलावेगा तो जब तक प्रलय न होगा तब तक सब दौड़ा सुपुर्द रहैं और दौड़ासुपुर्द सब को दुःखदायक है ,जब तक न्याय न किया जाय। इसलिये शीघ्र न्याय करना न्यायाधीश का उत्तम काम है। यह तो पोपांबाई का न्याय ठहरा। जैसे कोई न्यायाधीश कहे कि जब तक पचास वर्ष तक के चोर और साहूकार इकट्ठेन हों,तब तक उनको दंड वा प्रतिष्ठा न करनी चाहिये। वैसा ही यह हुआ कि एकतो पचास वर्ष तक दौड़ासुपुर्द रहा और एक आज ही पकड़ा गया। ऐसा न्याय काम का नहीं हो सकता। न्याय तो वेद और मनुस्मृति का’ देखो, जिसमें क्षण मात्र भी विलम्ब नहीं होता और अपने2 कर्मानुसार दंड वा प्रतिष्ठा सदा पाते रहते हैं। दूसरा पैग़म्बरों को गवाही के तुल्य रखने से ईश्वर की सर्वज्ञता की हानि है। भला! ऐसा पुस्तक ईश्वरकृत और ऐसे पुस्तक का उपदेश करने वाला ईश्वर कभी होसकता है ? कभी नहीं |

गुमराही अल्लाह

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गुमराही अल्लाह

कह निश्चय अल्लाह गुमराह करता है जिसको चाहता है और मार्ग दिखलाता है तर्फ अपनी उस मनुष्य को रुजू करता है।मं0 3। सि0 13। सू0 13।।आ0 27

समी0- जब अल्लाह गुमराह करता है तो खुदा  और शैतान में क्या भेद हुआ ? जब कि शैतान दूसरों को गुमराह अर्थात् बहकाने से बुरा कहाता है तो खुदा  भी वैसा ही काम करने से बुरा, शैतान क्यों नहीं ? और बहकाने के पाप से दोज़खी क्यों नहीं होना चाहिये ?

इसी प्रकार उतारा हमने इस कुरान  को अर्बी में जो पक्ष करेगा तू उनकी इच्छा का पीछे इसके आई तेरे पास विद्या से। बस सिवाय इसके नहीं कि ऊपर तेरे पैग़ाम पहुँचाना  है और ऊपर हमारे है हिसाब लेना।। मं0 3। सि0 13। सू0 13। आ037। 40

समी0-कुरान किधर की ओर से उतारा ? क्या ख़ुदा ऊपर रहता है ? जो यहबात सच्च है तो वह एकदेशी होने से ईश्वर ही नहीं हो सकता,क्योंकि ईश्वर सब ठिकाने एकरस व्यापक है। पैग़ाम पहुंचाना हल्कारे का काम है और हल्कारे की आवश्यकता उसी को होती है जो मनुष्यवत् एकदेशी हो  और हिसाब लेना-देना भी मनुष्य का काम है, ईश्वर का नहीं क्योंकि,वह सर्वज्ञ है | यह निश्चय होता हैकि किसी अल्पज्ञ मनुष्य का बनाया कुरान है |

और किया सूर्य चन्द्र को सदैव फिरने वाले।। निश्चय आदमी अवश्यअन्याय और पाप करने वाला है।। मं0 3। सि0 13। सू0 14। आ0 33।34

समी0- क्या चन्द्र-सूर्य सदा फिरते और पृथिवी नहीं फिरती ? जो पृथिवी नहीं फिरे तो कई वर्षों का दिन रात होवे। और जो मनुष्य निश्चय अन्याय और पाप करने वाला है तो कुरान से शिक्षा करना व्यर्थ है, क्योंकि जिनका स्वभाव पाप ही करने का है तो उनमें पुण्यात्मा कभी न होगा और संसार में पुण्यात्मा और पापात्मा सदा दीखते हैं, इसलिये ऐसी बात ईश्वरकृत पुस्तक की नहीं हो सकती |

बस ठीक करूं मैं उसको और फूंक दूं बीच उसके रूह अपनी से, बस गिर पड़ो वास्ते उसके सिजदा करते हुए।। कहा ऐ रब मेरे, इस कारण कि गुमराहकिया तूने मुझको, अवश्य जीनत दूंगा मैं वास्ते उनके बीच पृथिवी के, और गुमराह करूंगा।। मं0 3। सि0 14। सू0 15। आ0 29। 391

समी0 –जो खुदा ने अपनी रूह आदम साहेब में डाली तो वह भी खुदा हुआ और जो वह खुदा न था तो सिजदा अर्थात् नमस्कारादि भक्ति करने में अपना शरीक क्यों किया ? जब शैतान को गुमराह करने वाला खुदा ही है तो वह शैतान का भी शैतान बड़ा भाई गुरु क्यों नहीं ? क्योंकि तुम लोग बहकाने वाले को शैतानमानते हो तो खुदा ने भी शैतान को बहकाया और प्रत्यक्ष शैतान ने कहा कि मैं बहकाऊंगा फिर भी उसको दण्ड देकर क़ैद क्यों न किया ? और मार क्यों नडाला |

छली मुहम्मद

mera neta chor hai

छली  मुहम्मद 

-आरै उस मनुष्य  से अधिक पापी कौन है जो  अल्लाह पर झूठ बाँध  लेता है आरै कहता है कि मरेी ओर  वही की गई  परन्तु वही उसकी ओर नहीं की गई  और जो

कहता है कि में  भी उतारूंगा  कि जैसे अल्लाह उतारता है । म0ं 2। सि0 7। स0ू 6। आ0 93

समी0-इस बात से सिद्ध  होता है कि जब मुहम्मद साहेब कहते थे कि मेरे पास खुदा  की ओर से आयतें आती हैं  तब किसी दूसरे  ने भी महुम्मद साहबे के तुल्य  लीला रची होगी कि मेरे पास भी आयतें उतरती हैं, मुझको भी पैग़म्बर मानो। इसको हठाने और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये मुहम्मद साहेब ने यह उपाय किया होगा |

-अवश्य हमने तुमको उत्पन्न किया, फिर तुम्हारी सूरतें बनाई, फ़रिश्तों से’ कहा कि आदम को सिजदा करो, बस उन्होंने सिजदा किया,परन्तु शैतान सिजदा करने वालों में से न हुआ।। कहा जब मैने तुझे  आज्ञा दी फिर किसने रोका कि तूने  सिजदा न किया, कहा मैं उससे अच्छा हू,तूने मुझको  को आग से आरै उसको मिट्टी से उत्पन्न किया।। कहा बस उसमें से उतर, यह तेरे योग्य नहीं है कि तू उसमें अभिमान करे।। कहा उस दिन तक ढील दे कि कबरों में  से उठाये जावें।। कहा निश्चय तू ढील दिये गयों से है।। कहा बस इसकी कसम है कि तूने मुझको गुमराह किया, अवश्य मैं उनके लिये तेरे  सीधे मार्ग पर बैठूंगा ।। और प्राय तू उनको धन्यवाद  करने वाला न पावेगा।। कहा उससे दुर्दशा के साथ निकल, अवश्य जो कोई उनमें से तेरा पक्ष करेगा तुम सबसे दोज़ख को भरूंगा।। मं0 2। सि0 8। सू0 7। आ011- 183

समी0-अब ध्यान देकर सुनो खुदा और शैतान के झगड़े को। एक फरिश्ता जैसा  कि चपरासी हो, था। वह भी खुदा  से न दबा और खुदा उसके आत्मा को पवित्र न कर सका, फिर ऐसे बाग़ी को जो पापी बनाकर ग़दर करने वाला था उसको खुदा ने छोड़ दिया। खुदा की यह बडी़ भूल है शैतान तो सबको बहकाने वाला और खुदा शैतान को बहकाने वाला होने से यह सिद्धहोता है कि शैतान का भी शैतान खुदा है क्योंकि शैतान प्रत्यक्ष कहता है कि तूने मुझे गमुराह किया। इससे खुदा में पवित्रता भी नहीं पाई जाती और सब बुराइयों का चलाने वाला मूल कारण खुदा हुआ । ऐसा खुदा  मुसलमानों का ही हो सकता है अन्य श्रेष्ठ विद्वानों का नहीं और फरिश्तों से मनुष्यवत वार्तालाप करने से देहधारी अल्पज्ञ न्याय रहित मुसलमानों का खुदा है इसी से विद्वान् लोग इस्लाम के मजहब को प्रसन्न नहीं करते |

क्या क़ुरान विश्वासी शिक्षक हो सकता है ?

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क्या क़ुरान विश्वासी शिक्षित हो सकता है ?

-और वह जो लड़का, बस थे मां बाप उसके ईमान वाले, बस डरे हम यह कि पकड़े उनको सरकशी में और कुफ्र में।। यहाँ तक कि पहुंचा  जगह डूबने सूर्य  की, पाया उसको डूबता था बीच चश्मे कीचड़ के। कहा उननेऐजुलकफ्ररनैननिश्चय याजूजमाजूजफि़साद करने वाले हैं बीच पृथिवी के।। मं0 4। सि0 16। सू018। आ0 80। 88।944

समी0 -भला! यह खुदा  की कितनी बेसमझ है। शंका  से डरा कि लड़के के मां-बाप कहीं मेरे मार्ग से बहका कर उलटे न कर दिये जावें। यह कभी ईश्वर की बात नहीं हो सकती। अब आगे की अविद्या की बात देखिये कि इस किताब का बनाने वाला सूर्य को एक झील में रात्रि को डूबा जानता है, फिर प्रातःकाल निकलता है, भला ! सूर्य तो पृथिवी से बहुत बड़ा है, वह नदी वा झील वा समुद्र में कैसे डूब सकेगा ! इससे यह विदित हुआ कि कुरान के बनाने वाले को भूगोल खगोल की विद्या नहीं थी। जो होती तो ऐसी विरुद्ध बात क्यों लिख देते ? और इस पुस्तक के मानने वालों को भी विद्या नहीं है। जो होती तो ऐसी मिथ्या बातों से युक्त पुस्तक को क्यों मानते ? अब देखिये ख़ुदा का अन्याय ! आप ही पृथिवी का बनाने वाला राजा न्यायाधीश है और याजूजमाजूज को पृथिवी में फ़साद भी करने देता है। यह ईश्वरता की बात से विरुद्ध है। इससे ऐसी पुस्तक को जंगली लोग माना करते हैं, विद्वान् नहीं |

-और याद करो बीच किताब के मर्यम को, जब जा पड़ी लोगों अपनेसे मकान पूर्वी में।। बस पड़ा उनसे उधर पर्दा, बस भेजा हमने रूह अपनी को अर्थात् फ़रिश्ता, बस सूरत पकड़ी वास्ते उसके आदमी पुष्ट की।। कहने लगी निश्चय मैं शरण पकड़ती हूँ रहमान की तुझसे, जो है तू परहेज़गार।। कहने लगा सिवाय इसके नहीं कि मैं भेजा हुआ हूँ मालिक तेरे के से, तो कि दे जाऊं मैं तुझको लड़का पवित्र।। कहा कैसे होगा वास्ते मेरे लड़का नहीं हाथ लगाया मुझ को आदमी ने, नहीं मैं बुरा काम करने वाली।। बस गर्भित हो गई साथ उसके और जा पड़ी साथ उसके मकान दूर अर्थात् जंगल में।। मं0 4। सि0 16। सू0 19। आ016-20। 223

समी0 -अब बुद्धिमान विचार लें कि फ़रिश्ते सब खुदा की रूह हैं तो खुदा से अलग पदार्थ नहीं हो सकते। दूसरा यह अन्याय कि वह मर्यम कुमारी के लड़का होना, किसी का संग करना नहीं चाहती थी।परन्तु खुदा के हुक्म से फ़रिश्ते ने उसको गर्भवती किया, यह न्याय से विरुद्ध बात है। यहाँ अन्य भी असभ्यता की बातें बहुत लिखी हैं उनको लिखना उचित नहीं समझा |

स्त्री और इस्लाम

burqa slaves

स्त्री और इस्लाम

-प्रश्न करते हैं तुझसे रजस्वला को कह वो अपवित्र हैं पृथक् रहो ऋतु समय में उनके समीप मत जाओ जब तक कि वे पवित्र न हों, जब नहा लेवें उनके पास उस स्थान से जाओ खुदा  ने आज्ञा दी।। तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारे लिये खेतियाँ हैं बस जाओ जिस तरह चाहो अपने खेत में।। तुमको अल्लाह लग़ब;बेकार,व्यर्थ शपथ में नहीं पकड़ता।। मं0 1। सि0 2। सू0 2। आ0 222- 2241

समी0-जो यह रजस्वला का स्पर्श संग न करना लिखा है, वह अच्छी बात है। परन्तु जो यह स्त्रियों को खेती के तुल्य लिखा और जैसा जिस तरह से चाहो, जाओ यह मनुष्यों को विषयी करने का कारण है। जो खुदा  बेकार शपथ पर नहीं पकडत़ा तो सब झूठ बोलगें, शपथ तोडंग़े। इससे खुदा झूठ  का पव्रर्तक होगा |

 

घमण्डी अल्लाह

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घमण्डी  अल्लाह

-उन लोगों  का रास्ता कि जिन पर तूने निआमत की।। और उनका मार्ग मत दिखा कि जिनके ऊपर  तूने ग़ज़ब अर्थात् अत्यन्त क्रोध  की दृष्टि की और न गुमराहों का मार्ग हमको दिखा।। मं0 1। सि0 1। सू0 1। आ0 6।7

समी0- जब मुसलमान लोग पूर्वजन्म और पूर्वकृत पाप-पुण्य नहीं मानते तो किन्हीं पर ‘‘निआमत’’ अर्थात् फ़जल वा दया करने और किन्हीं पर न करने से खुदा पक्षपाती हो जायगा, क्योंकि बिना पाप-पुण्य, सुख-दुःख देना केवल अन्याय की बात है। और बिना कारण किसी पर दया और किसी पर क्रोध दृष्टि करना भी स्वभाव से बहिः है। क्योंकि बिना भलाई-बुराई के’ वह दया अथवा क्रोध नहीं कर सकता और जब उनके पूर्व संचित  पुण्य-पाप ही नहीं, तो किसी पर दया और किसी पर क्रोध करना नहीं हो सकता | और इस सूरत की टिप्पन पर-‘‘यह सूरः अल्लाह साहेब ने मनुष्यों के मुखसे कहलाई कि सदा इस प्रकार से कहा करें’’, जो यह बात है तो ‘‘अलिफ बे’ आदि अक्षर भी खुदा  ही ने पढ़ाये होंगे जो कहो कि नहीं,तो बिना अक्षर ज्ञान के इस सूरः को कैसे पढ़ सके? क्या कण्ठ ही से बुलाए और बोलते गये ? जो ऐसा है तो सब कुरान  ही कण्ठ से पढ़ाया होगा। इससे एसेा समझना चाहिये कि जिस पस्तक मे पक्षपात की बात पाई जाये वह पस्तक ईश्वर कृत नहीं हो  सकता | जसैा कि अरबी भाषा में  उतारने से अरबबालों का इसका पढऩा सुगम, अन्य भाषा बोलने वालों को कठिन होता है, इसी से खुदा  में पक्षपात आता है। और जैसे परमेश्वर ने सृष्टिस्थ सब देशस्थ मनुष्यों पर न्याय दृष्टि से सब देश भाषाओं से विलक्षण संस्कृत-भाषा कि जो सब देशवालों के लिये एक से परिश्रम से विदित होती है, उसी में वेदों का प्रकाश किया है, करता तो कुछ भी दोष नहीं होता |

-यह पुस्तक कि जिसमें सन्देह नहीं, परहेज़गारों को मार्ग दिखलाती है।।जो कि ईमान लाते हैं साथ ग़ैब ;परोक्ष के, नमाज पढ़ते, और उस वस्तु से जो हमने दी, खर्च करते हैं।। और वे लोग जो उस किताब पर ईमान लाते हैं, जो तेरी ओर’वा तुझसे पहिले उतारी गई, और विश्वास कयामत पर रखते हैं।। ये लोग अपने मालिक की शिक्षा पर हैं और ये ही छुटकारा पानेवाले हैं।। निश्चय जो काफि़र हुए, और उन पर तेरा डराना न डराना समान है, वे ईमान न लावेंगे।।अल्लाह ने उनके दिलों, कानों पर मोहर कर दी और उनकी आखों पर पर्दा है और उनके वास्ते बड़ा अजाब है।। मं1। सि0 1। सूरः2। आ0 2-71

समी0-क्या अपने ही मुख से अपनी किताब की प्रशंसा करना खुदा  की दम्भ की बात नही? जब ‘परहेज़गार’ अर्थात् धार्मिक लोग हैं  वे तो स्वतः सच्चेमार्ग में हैं, और जो झूठे मार्ग पर हैं, उनको यह कुरान मार्ग ही नहीं दिखला सकता फिर किस काम का रहा ? क्या पाप-पुण्य और पुरुषार्थ के विना खुदा अपने ही खजाने से खर्च करने को देता है ? जो देता है तो सबको क्यों नहीं देता ? और मुसलमान लोग परिश्रम क्यों करते हैं ?और जो बाइबिल इन्जील आदि पर विश्वास करना योग्य है तो मुसलमान इन्जील आदि पर ईमान जैसा कुरान पर है, वैसा क्यों नहीं लाते ? और जो लाते हैं तो कुरान का होना किसलिये ? जो कहें कि कुरान में अधिक बातें हैं तो पहिली किताब में लिखना खुदा  भूल गया होगा। और जो नहीं भूला तो कुरान का बनाना निष्प्रयोजन है। और हम देखते हैं तो बाइबल और कुरान की बातें कोई2 न मिलती होंगी, नहीं तो सब मिलती हैं। एक ही पुस्तक जैसा कि वेद है क्यों न बनाया ? क़यामत पर ही विश्वास रखना चाहिये अन्य पर नहीं ? क्या ईसाई और मुसलमान ही खुदा  की शिक्षा पर हैं, उनमें कोई भी पापी नहीं है ? क्या जो ईसाई और मुसलमान अधर्मी हैं, वे भी छुटकारा पावें और दूसरे धर्मात्मा भी न पावें तो बड़े अन्याय और अन्धेर की बात नहीं है ?और क्या जो लोग मुसलमानी मत को न माने  उन्हीं को काफि़र कहना वहएकततर्फीडिगरी नहीं है ? जो परमेश्वर ही ने उनके अन्तःकरण और कानों पर मोहर लगाई और उसी से वे पाप करते हैं तो उनका कुछ भी दोष नहीं। यह दोष खुदा  ही का है। फिर उन पर सुख-दुःख वा पाप-पुण्य नहीं हो सकता, पुनः उनको सज़ा जज़ा क्यों करता है ? क्योंकि उन्होंने पाप वा पुण्य स्वतंत्रता से नहीं किया |

-उनके दिलों  में रोग  है, अल्लाह ने उनको रोग बढ़ा दिया।।मं0 1। सि0 1।सू0 2। आ0 101

समी0- भला, विना अपराध खुदा  ने उनको रोग बढ़ाया, दया न आई, उन बिचारों को बड़ा दुःख हुआ होगा। क्या यह शैतान से बढ़कर शैतानपन का कामनहीं है ? किसी के मन पर मोहर लगाना, किसी को रोग बढ़ाना, यह खुदा  का काम नहीं हो सकता। क्योंकि रोग का बढ़ना अपने पापों से है |

 

विज्ञान और खुदा

 

 

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विज्ञान और खुदा

-चढत़े हैं फरिश्ते और रूह तर्फ़ उसकी वह अज़ाब होगा बीच उस दिन के कि है परिमाण उसका पचास हजा़र वर्ष । जब कि निकलेंगे वर्ष कबरों में से दौडत़े हुए  मानो कि वह बुतों के स्थानों की ओर दौड़ते हैं । म0ं 7। सि0 29। सू0 70। आ0 4। 431

समी0 -यदि पचास हज़ार वर्ष दिन का परिमाण है तो पचास हज़ार वर्ष की रात्रि क्यों नहीं ? यदि उतनी बड़ी रात्रि नहीं है तो उतना बड़ा दिन कभी नहीं हो सकता। क्या पचास हज़ार करोड़ वर्ष तक खुदा फ़रिश्ते और कर्मपत्र वाले खड़े वा बैठे अथवा जागते ही रहेंगे ? यदि ऐसा है तो सब रोगी होकर पुनः मर ही जायेंगे। क्या कबरों से निकल कर खुदा की कचहरी की ओर दौडेग़े ? उनके पास सामान  क़बरों में क्योंकर पहुंचेगे ? और उन विचारों को जो कि पुण्यात्मा वा पापात्मा हैं, इतने समय तक सभी को क़बरों में दौरे सुपुर्द कैद क्यों रक्खा ? और आजकल खुदा की कचहरी बन्द होगी और खुदा तथा फ़रिश्ते निकम्मे बैठे होंगे? अथवा क्या काम करते होंगे ? अपने2  स्थानों में बैठे इधर-उधर घूमते, सोते, नाच तमाशा देखते वा ऐश आराम करते होंगे। ऐसा अन्धेर किसी के राज्य में न होगा। ऐसी2बातों को  सिवाय जंगलियों के दूसरा कौन मानेगा ?

-रहे वे लोग जिन्होंने इमां लाये और उन्होंने अच्छे कर्म किये, वाही जन्नत वाले है, वे सदैव उसी में रहेंगे | सू o 20 | आ o 82 |

समी0 -यदि जीवों को खुदा ने उत्पन्न किया है तो वे नित्य, अमर कभी नहीं रह सकते। फिर बहिश्त में सदा क्योंकर रह सकेंगे ? जो उत्पन्न होता है वह वस्तु अवश्य नष्ट हो जाता है। आसमान को ऊपर तले कैसे बना सकता है ? क्यों कि वह निराकार और विभु पदार्थ है। यदि दूसरी चीज़ का नाम आकाश रखते हो तो भी उसका आकाश नाम रखना व्यर्थ है। यदि ऊपर तले आसमानों को बनाया है तो उन सब के बीच में चाँद सूर्य कभी नहीं रह सकते। जो बीच में रक्खा जाय तो एक ऊपर और एक नीचे का पदार्थ प्रकाशित हो दूसरे से लेकर सब में अंडाकार रहना चाहिये। ऐसा नहीं दीखता, इसलिये यह बात सर्वथा मिथ्या है |

-यह कि मसजिदें वास्ते अल्लाह के हैं, बस मत पुकारो साथ अल्लाहके किसी को।। मं0 7। सि0 29। सू0 72। आ0 18

समी0 -यदि यह बात सत्य है तो मुसलमान लोग ‘‘लाइलाहइल्लिलाःमुहम्मदर्रसूलल्लाः’ इस कलमे में खुदा के साथी मुहम्मद साहेब को क्यों पुकारते हैं ? यह बात कुरान से विरुद्ध है और जो विरुद्ध नहीं करते तो इस कुरान की बातको झूठ करते हैं। जब मसजि़दें खुदा के घर हैं तो मुसलमान महाबुत्परस्त हुए।

क्योंकि जैसे पुरानी, जैनी छोटी सी मूर्ति को ईश्वर का घर मानने से बुत्परस्त ठहरते हैं,ये लोग क्यों नहीं ?

-इकद्दा किया जावेगा सूर्य और चाँद ।। मं0 7। सि0 29। सू0 75। आ0 9

समी0 -भला सूर्य चाँद कभी इकट्ठे हो सकते हैं ? देखिये! यह कितनी बेसमझ की बात है। और सूर्य चाँद ही के इकट्ठे करने में क्या प्रयोजन था ? अन्य सब लोकों को इकट्ठे न करने में क्या युक्ति है ? ऐसी2 असम्भव बातें परमेश्वरकृत कभी हो सकती हैं ? विना अविद्वानों के अन्य किसी विद्वान् की भी नहीं होतीं |

-जब कि सूर्य लपेटा जावे।। और जब कि तारे गदले हो जावें।। औरजब कि पहाड़ चलाये जावें।। और जब आसमान की खाल उतारी जावे।। मं0 7।सि0 30। सू0 81। आ0 1। 2। 3। 11

समी0 -यह बड़ी बेसमझ की बात है कि गोल सूर्यलोक लपेटा जावेगा ? और तारे गदले क्यों कर हो सकेंगे ? और पहाड़ जड़ होने से कैसे चलेंगे ? और आकाश को क्या पशु समझा कि उसकी खाल निकाली जावेगी ? यह बड़ी ही बेसमझ और जंगलीपन की बात है।

-और जब कि आसमान फट जावे।। और जब तारे झड़ जावें। और जब दर्या चीरे जावें और जब कबरें जिलाकर उठाई जावें । मं0 7। सि0 30। सू0 82।आ0 1-4

समी0 -वाह जी कुरान के बनाने वाले फि़लासफ़र ! आकाश को क्यों कर फाड़ सकेगा ? और तारों को कैसे झाड़ सकेगा ? और दर्या क्या लकड़ी है जो चीर डालेगा ? और क़बरें क्या मुर्दे हैं जो जिला सकेगा ? ये सब बातें लड़कों के सदृश हें |

-क़सम है आसमान बुर्जों वाले की।। किन्तु वह कुरान है बड़ा।। बीचलौह महफूज़ के।। मं0 7। सि0 30। सू0 85। आ0 1। 21

समी0 -इस कुरान के बनाने वाले ने भूगोल-खगोल कुछ भी नहीं पढ़ा था। नहीं तो आकाश को किले के समान बुर्जो वाला क्यों कहता ?यदि मेषादि राशियों को बुर्ज कहता है तो अन्य बुर्ज क्यों नहीं ? इसलिये यह बुर्ज नहीं हैं,किन्तु सब तारे लोक हैं। क्या वह  कुरान खुदा के पास है ? यदि यह कुरान उसका किया है तो वहभी विद्या और युक्ति से विरुद्ध अविद्या से अधिक भरा होगा |

-निश्चय वे मकर करते हैं एक मकर।। और मैं भी मकर करता हूं एकमकर।। मं0 7। सि0 30। सू0 86। आ0 15। 16

समी0 -मकर कहते हैं ठगपन को, क्या खुदा भी ठग है ? और क्या चोरी काजबाव चोरी और झूठ का जवाब झूठ है ? क्या कोई चोर भले आदमी के घर में चोरी करे तो क्या भले आदमी को चाहिये कि उसके घर में जा के चोरी करे ? वाह! वाह जी!!  कुरान के बनाने वाले |

-इस तरह खुदा मुर्दों को जिलाता है और तुम को अपनी निशानियां दिखलाता है कि तुम समझो।। मं0 1। सि0 1। सू02। आ0 733

समी0- क्या मुर्दों को खुदा जिलाता था तो अब क्यों नहीं जिलाता ? क्या क़यामत की रात तक क़बरों में पड़े रहेंगे ? आजकल दौरा सुपुर्द हैं ? क्या इतनी ही ईश्वर की निशानियां हें पृथिवी, सूर्य, चन्द्रादि निशानियां नहीं हैं ? क्या संसारमें जो विविध रचना विशेष प्रत्यक्ष दीखती हैं,ये निशानियां कम हैं ?

-निश्चय हमने मूसा को किताब दी और उसके पीछे हम पैग़म्बर को लाये और मरियम के पुत्र ईसा को प्रकट मौजिज़े अर्थात् दैवीशक्ति और सामर्थ्य दिये उसके साथ रूहल्कुद्सरु के, जब तुम्हारे पास उस वस्तु सहित पैग़म्बर आया कि जिसको तुम्हारा जी चाहता नहीं, फिर तुमने अभिमान किया, एक मत को झुठलाया और एक को मार डालते हो।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 871

समी0 -जब कुरान में साक्षी है कि मूसा को किताब दी तो उसका मानना मुसलमानों को आवश्यक हुआ और जो2 उस पुस्तक में दोष हैं वे भी मुसलमानोंके मत में आ गिरे और ‘मौजिज़े’ अर्थात् दैवीशक्ति की बातें सब अन्यथा हैं, भोले भाले मनुष्यों को बहकाने के लिये झूठ-मूठ चला ली हैं, क्योंकि सृष्टिक्रम और विद्या से विरुद्ध सब बातें झूठी ही होती हैं जो उस समय ‘मौजिज़े थे तो इस समय क्यों नहीं ? जो इस समय भी नहीं तो उस समय भी न थे, इसमें कुछ भी सन्देहनहीं |

-और इससे पहिले काफि़रों पर विजय चाहते थे, जो कुछ पहिचाना था जब उनके पास वह आया झट काफि़र हो गये, काफि़रों पर लानत है अल्लाहकी।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ092

समी0 – क्या जैसे तुम अन्य मतवालों को काफि़र कहते हो वैसे वे तुम को काफि़र नहीं कहते हैं ? और उनके मत के ईश्वर की ओर से धिक्कार देते हैं फिर कहो कौन सच्चा और कौन झूठा ? जो विचार कर देखते हैं तो सब मतवालों में झूठ पाया जाता है और जो सच है सो सब में एक सा है, ये सब लड़ाइयां मूर्खता की हैं |

-अल्लाह सूर्य को पूर्व से लाता है बस तू पश्चिम से ले आ, बस जोक़ाफिर था हैरान हुआ, निश्चय अल्लाह पापियों को मार्ग नहीं दिखलाता।।-मं0 1। सि0 3। सू0 2। आ0 258

समी0-देखिये यह अविद्या की बात! सूर्य न पूर्व से पश्चिम और न पश्चिमसे पूर्व कभी आता जाता है, वह तो अपनी परिधि में घूमता रहता है।इससे निश्चितजाना जाता है कि कुरान के कर्ता को न खगोल और न भूगोल विद्या आती थी। जो पापियों को मार्ग नहीं बतलाता तो पुण्यात्माओं के लिये भी मुसलमानों के खुदाकी आवश्यकता नहीं, क्योंकि धर्मात्मा तो धर्म मार्ग में ही होते हैं।मार्ग तो धर्म से भूले हुए मनुष्यों को बतलाना होता है, सो कर्तव्य के न करने से कुरान के कर्ता की बड़ी भूल है |

-कहा चार जानवरों से ले उनकी सूरत पहिचान रख, फिर हर पहाड़ पर उनमें से एक2 टुकड़ा रख दे, फिर उनको बुला, दौड़ते तेरे पास चले आवेंगे।।-मं0 1। सि0 3। सू0 2। आ0 260

समी0-वाह2 देखो जी! मुसलमानों का खुदा भानमती के समान खेल कर रहा है ! क्या ऐसी ही बातों से खुदा की खुदाई है ? बुद्धिमान लोग ऐसे खुदा को तिलांजलि  देकर दूर रहेंगे और मूर्ख लोग फसेंगे, इससे खुदा की बड़ाई के बदले बुराई उसके पल्ले पड़ेगी |

-जिसको चाहै नीति देता है।। मं0 1। सि0 3। सू0 2। आ0 269

समी0-जब जिसको चाहता है,नीति देता है तो जिसको नहीं चाहता,उसको अनीति देता होगा। यह बात ईश्वरता की नहीं। किन्तु,जो पक्षपात छोड़ सबको नीति का उपदेश करता है,वही ईश्वर और आप्त हो सकता है, अन्य नहीं |

-जिसने तुम्हारे वास्ते पृथिवी बिछौना और आसमान की छत को बनाया।।मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 222

समी0- भला, आसमान छत किसी की हो सकती है? यह अविद्या की बात है। आकाश को छत के समान मानना हाँसी की बात है। यदि किसी प्रकार की पृथिवी को आसमान मानते हों तो उनकी घर की बात है |

 

क्या कुरान के अल्लाह को किसी की मदद लेनी पड़ती है ?

Mohammed and Gabriel

क्या कुरान के अल्लाह को किसी की मदद लेनी पड़ती है ?

क्या कुरान के अल्लाह को किसी को मदत लेना पड़ता है।मित्र ईश्वर सर्वशक्तिमान है, इस लिए ईश्वर को कोई प्रकार सहायता कि प्रोयोजन नेही होता, ईश्वर  अपने समर्थ से अपनी सभी कार्य खुद ही कर लेता है। जैसा सृष्टी, प्रलय, और जीवात्मा  के कर्म फल प्रदान करने मे ईश्वर को किसी के सहायता कि कोई प्रयोजन नही होता है।परन्तु कुरान के अल्लाह किसी के सहायता बिना खुद अपनी कार्य करने में सक्षम नही है। इस लिए कुरान के अल्लाह को सर्वदा फरिश्तो के सहायता लेना पड़ा। अल्लाह के लिए सबी फ़रिश्ते किस प्रकार मदतगार थे, इसका प्रमाण कुरान में अनेक जागा में मिलते है। उसमे से एक प्रमाण आप लोगो के सामने पेश कर रहा हूँ। और जरुरत पड़ने से आगे और दे दूंगा।
मित्र मुसलमान मित्र जन का कहना है अल्लाह सब का मदतगार है, पर खुद अल्लाह किसी का मदत नही लेता है। मुसलमान के ऐसी बात के लिए आप लोग जब किसी मुसलमान मित्र से पूछ लेंगे, जब अल्लाह किसी के कोई मदत नही लेता तो कुरान को कैसे उतारा गया था, ओ ही कुरान जिसे आप लोग कलामुल्लाह मानते है। सच कहता हूँ मित्र आप लोगो के पूछ ने से ही मुसलमान मित्र जनो का बोलती बंद हो जायगा जी। अब देखते है कुरान आया तो आया कैसे।
अल्लाह ने जिब्राइल को कुरान सुनाया और जिब्राइल गारे-हिरा नाम का एक गुफा में आकर पहले हजरत मोहम्मद का सीना चाक किया, यानि मोहम्मद साहब का दिल को निकाला, फेर उसे आवे जमजम से धोया और बाद में उसे मोहम्मद साहब के शरीर में रख कर सिल दिया।जिब्राइल पहले कुरान के पांच आयते लेके आया था, जिसका प्रमाण मैंने फोटो में दे राखा है। जिसका अर्थ है।
1. पड़ो अपने रब के नाम के साथ जिसने पैदा किया।
2. जमे हुए खून के एक लोथरे से इंसान कि रचना की।
3. पड़ो, और तुम्हारा रब बड़ा उदार है।
4.जिसने कलम के द्वारा ज्ञान कि शिख्सा दी।
5.इन्सान को वह ज्ञान दिया जिसे वह ना जानता था।
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अब जिब्राइल के इस कारनामा से कुछ सवाल सामने आ गाया है।
1.जब जिब्राइल को मुहम्मद साहब को पड़ाने के लिए ये सब करना पड़ा था, क्या किसी को पड़ाने के लिए उसका सीना चीर के दिल को निकाल के, जमजम के पानी में धोके, फीर उसे शारीर में राख के सिल देने से ही उसे पड़ाना कहता है ?
2.जब अल्लाह ने जिब्राइल को बिना किसी चीर फार के पड़ा सकते है तो मुहम्मद साहब को पड़ाने में अल्लाह को क्या परेशानी हुआ था ?
3.जब मुहम्मद साहब को जिब्राइल ने चीर फाड करके पड़ा दिया, तो कुरान किसका कालाम हुआ, जिब्राइल का या अल्लाह का ?
4.किसी के दिल निकाल के फेर उसकी शरीर में दिल लागाने समय ओ आदमी बेहोश हो जाता है, जिब्राइल उस समय पड़ाया था या बाद में पड़ाया था ?
5.क्या एक गुफा के अन्दर इस तरह से सुपर सर्जरी किया जा सकता है।
6.जिब्राइल ने मुहम्मद साहब को पड़ाने के लिए जो सुपर सर्जरी किया था, उस सर्जरी में कौन कौन सा यंत्र का इस्तेमाल किया गया था?
7.जिब्राइल को ऐसी सुपर सर्जरी करना कौन सिखाया था, क्या अल्लाह ने जिब्राइल को सिखाया था ?
8.अल्लाह जिब्राइल जैसे और कुछ फ़रिश्ते को धरती पे भेज देता तो आज कम से कम मुसलमानो को किसी भी सर्जरी में लाखो रूपया गावाना नेही पड़ते। मित्र जनो मैं तो सिर्फ इस्लाम के थोड़ा सा सच्चाई आप के सामने रख रहा हूँ, इस्लाम में ऐसी अनेक सच्चाई भरी पड़ा है।
हायरे बुद्धि  से विचार करने वाले मानव और कब तक तुम लोग ऐसी मुर्ख बनके रहोगे ?
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